एक व्यक्ति के मरने का समय आया तो स्वर्ग से देवदूत उसे लेने पहुंचे और बोले --- " चलिए ! हम आपको स्वर्ग ले जाने आए हैं l " उसने विनती की और बोला --- " हे देवदूतों ! आप कृपा करें , मेरे कुछ जरुरी कार्य शेष हैं , कृपा कर के मुझे एक वर्ष और जीने का अवसर दें l " उसके पुण्य कार्यों को देखते हुए देवदूतों ने कहा --- " ठीक है ! हम एक वर्ष बाद आयेंगे l " अब वह व्यक्ति यह सोचकर निश्चिन्त हो गया कि उसे तो मृत्यु के बाद स्वर्ग मिलेगा इसलिए उसने इस एक वर्ष में खूब मौज -मस्ती की , कोई पुण्य के कार्य नहीं किए , जीवन भर की अधूरी इच्छाएं पूरी करने में व्यस्त हो गया l देखते -देखते एक वर्ष बीत गया l एक वर्ष बाद उसे लेने यमदूत आए और बोले --- " चलो ! हम तुम्हे नरक ले जाने आए हैं l " वह व्यक्ति नरक का नाम सुनकर घबराया और बोला --- " मेरा स्थान तो स्वर्ग में नियत था , आप भूल कर रहे हैं l " यमदूत बोले --- " उस समय था , लेकिन इस एक वर्ष में तुमने कोई पुण्य नहीं किया और जो पिछले पुण्य थे वे सब इस एक वर्ष में तुमने भोग -विलास का जीवन जी कर समाप्त कर दिए इसलिए अब तुम्हारी बारी पाप भोगने की है l " आचार्य श्री कहते हैं --- 'पापों को एकत्रित कर स्वर्ग की कामना मत करो l सन्मार्ग पर चलो और सत्कर्म की पूंजी एकत्रित करते चलो तो धरती पर ही स्वर्ग जैसी सुख -शांति प्राप्त होगी l '
16 September 2023
WISDOM -----
आज संसार में अनेक बीमारियाँ हैं , उनके उपचार के लिए हर तरह की चिकित्सा उपलब्ध है l लेकिन इन सब बीमारियों , दुर्घटनाओं को जन्म देने वाली जो सबसे बड़ी बीमारी है , वह है --तनाव l हमारी रोजमर्रा की जो जिन्दगी है उसमें कहीं कोई कमी है जो तनाव को जन्म देती है l पं . श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं --- रोजमर्रा की जिंदगी में यदि सबसे ज्यादा किसी की उपेक्षा होती है , तो वह है --अंतरात्मा --- यह हम सबके जीवन का सार है l औसत आदमी अपनी इन्द्रिय लालसाओं को तृप्त करने , अपने अहं को प्रतिष्ठित करने , ईर्ष्या , द्वेष , संदेह आदि कुभाव के कारण अपनी अंतरात्मा की आवाज को नहीं सुनता , अपनी ही अंतरात्मा का सम्मान नहीं करता l आचार्य श्री कहते हैं ---आम इनसान अपनी जिंदगी को आधे -अधूरे ढंग से जीता है , दुनिया के सामने झूठी नकली जिंदगी जीता है l वह भय के कारण , समाज के डर की वजह से , समाज में अपने अच्छे होने का नाटक करता है , परन्तु समाज की ओट में चोरी छिपे अनेकों बुरे काम कर लेता है l अपने मन में बुरे ख्यालों व ख्वाबों में रस लेता है l वह इस सत्य को अनदेखा करता है कि ईश्वर सड़क , चौराहों और कमरे की बंद दीवारों के भीतर भी है l यहाँ तक कि हमारे अंतर्मन , हमारे विचार , भावनाएं सब पर ईश्वर की नजर है l हमारे मन के तार ईश्वर से जुड़े हैं l जो इस सत्य को जानते -समझते हैं वे सरलता से अपना जीवन जीते हैं , उनका जीवन एक खुली किताब होता है , जहाँ तनाव की कोई जगह ही नहीं है l