11 October 2020

WISDOM -----

  संत  रविदास  मीराबाई  के   मार्गदर्शक  और    कबीरदास  जी  के  समकालीन  थे  l  संत  रविदास जी  चर्मकार  का  कार्य  करते  थे  ,  परन्तु  उनका  व्यक्तित्व  इतना  उत्कृष्ट  था  कि  उस  समय  जात - पाँत   को  मानने  वाले  समाज  ने  भी   उन्हें  संत  की  पदवी  दी  और  उनकी  महानता  को  स्वीकार  किया  l   संत  रविदास  जी  अपने  कर्म  को  ही  भगवान  की  पूजा  मानते  थे  ,  उनका  कहना  था  कि   जो  व्यक्ति  अपना  कर्तव्य  कर्म  पूरे   मन  से  करता  है  ,  वही  सच्चा  धार्मिक  व्यक्ति  है  l   इनके  बारे  में  एक  प्रसिद्ध   किवदंती  है  ---  एक  बार  काशी   के  एक  पंडित जी   रविदास  जी  के  पास  गए  l   बातों - बातों   में  गंगा - पूजा  की  चर्चा  चल  पड़ी  l   रविदास  जी  ने  पंडित जी  से  कहा  --- " आप  कृपा  कर  के   मेरी  भी  सुपारी  गंगा  जी  में   चढ़ा  देना  l l "  पंडित जी  ने  हामी  भरते  हुए   उनकी  सुपारी  अपने   पास    रख  ली   l   दूसरे  दिन  जब  पंडित  जी  ने   गंगा  जी  में  रविदास जी  की  सुपारी  चढ़ानी  चाही  ,  तब  गंगा  माँ  ने  हाथ  ऊँचा  कर  के   उस  सुपारी   को साक्षात्  ग्रहण  कर  लिया   और  बदले  में  एक  सोने  का  कंगन  दिया  l   यह  देखकर  पंडित  जी  आश्चर्यचकित  रह  गए  l   उन्होंने  वह  कंगन  रविदास जी  को  न  देकर  राजा  को  भेंट    कर  दिया  ,  जिससे  राजा  प्रसन्न  हो  जाएँ  l   राजा  ने  उसे  रानी  को  दे  दिया  l  कंगन  बहुत  सुन्दर  था  ,  रानी  उसकी  जोड़ी  का  दूसरा  कंगन  पाने  की  जिद  करने  लगी  l   तब  राजा  ने  पंडित   को बुलवाया ,  पंडित  ने  घबरा  कर  सारी  सच  बात  बता  दी  l   अब  राजा  ने  संत  रविदास  जी  से  कहा  कि   वे  गंगा  माँ  से   कंगन  का  दूसरा  जोड़ा  मांगे  l   कहते  हैं  उसके  बाद  रविदास  जी  ने   अपनी  झोंपड़ी  में  एक  कठौती  में   गंगा  माता  से  प्रकट  होने  की  प्रार्थना  की  l   उनकी  श्रद्धा - भक्ति  से   प्रसन्न होकर   माँ  गंगा  उनकी  कठौती  में  आ  गईं   और  उन्हें  कंगन  का  दूसरा  जोड़ा  अपने  हाथों  से  दे  गईं  l   तभी  से  यह  कहावत  बन  गई  कि  '  मन  चंगा  तो  कठौती  में  गंगा  l  "

WISDOM -----

  भगवान  बुद्ध  के  जीवन   का प्रसंग  है --- सारनाथ  में  धर्मचक्र  प्रवर्तन   के  बाद   भगवान  बुद्ध   लोगों  को  धर्म  का  उपदेश  देने  के  लिए  निकले  l   उन्होंने  सभा - समितियाँ   आयोजित  कीं  और  आत्मिक  प्रगति  की  शिक्षा  देने  लगे  l   सभा - समितियों  में  दस - पांच  लोग  भी  नहीं  आते  l   पांच - सात  दिन  तक  वे  प्रयत्न  करते  रहे  l   इस  प्रयोग  की  विफलता  के  बारे  में   सोचते   हुए  बैठे  ही  थे   कि   उनके  सामने  कालपुरुष  प्रकट  हुआ   और  बोला  ---"   लोगों  से  कुछ  लो  ,  तभी  वे  आपसे  ज्ञान  प्राप्त  करेंगे  l  नहीं  लोगे  तो  उनका  अहं  आड़े  आएगा   और  वे  कुछ  भी  ग्रहण  नहीं  करेंगे  l   हैं  तो  वे  याचक  और  दीन   ही  ,  पर  अपने  आप  के  बारे  में    इस  तरह  का  आभास  नहीं  होने  देना  चाहते   l  "   कालपुरुष  के  इस  परामर्श  के  बाद  ही  महात्मा  बुद्ध  ने   अपने  हाथ  में  भिक्षापात्र  पकड़ा   और  राह  चलते  हुए   लोगों  के  द्वार  पर  जाकर  भिक्षा  मांगी  l   इसके  बाद  ही  उन्हें  धर्म  का  उपदेश  दिया  l