15 December 2020

WISDOM ------ कर्मफल का सिद्धांत अकाट्य है

    कबीरदास जी  कहते  हैं ---- ' कबीर  चन्दन  पर  जला ,  तीतर  बैठा  माहिं  l   हम  तो  दाझत  पंख  बिन  ,  तुम  दाझत  हो  काहिं  ll   कबीर  कमाई  आपनी ,  कबहु   न  निष्फल  जाय  l   सात  सिंधु  आड़ा  पड़े , मिले  अगाड़ी  आय   ll    अर्थात    जलते  हुए  चंदन   के  पेड़  पर  एक  तीतर  आकर  बैठ  गया   और  वह  भी  जलने  लगा  l   पेड़  कहता  है  ,  हम  तो  इसलिए  जल  रहे  हैं  क्योंकि  हमारे  पास  पंख  नहीं  हैं  ,  हम  उड़  नहीं  सकते  ,  पर  तुम  (तीतर )  तो  पंख  वाले  हो  ,  फिर   तुम क्यों  जलते  हो  ?  तीतर  उत्तर  देता  है   कि   अपना  किया  हुआ  कर्म  बेकार  नहीं  जाता  l   सात  समुद्र  की  आड़  में  रहें   तो  भी  आगे  आकर  मिलता  है   l  '  कर्मफल  को  बताने  वाली  एक  कथा  है  -----  नारद जी  एक  बार  भ्रमण   करते हुए  विष्णु  लोक  पहुंचे  l  भगवान  को  नमन  कर  उन्होंने  कहा ---- ' भगवन  !  आजकल  धरती  पर  तो   कर्मफल  विधान  के  विपरीत  परिणाम  देखने   को मिल  रहे  हैं  l   जिससे  मुझे  बड़ी  हैरानी  हुई  है  l '  भगवान  विष्णु  ने  कहा --- नारद जी  !  मुझे  विस्तार   से बताओ  कि   ऐसा   आपने  क्या  देखा  l '  नारद जी  ने  कहा --- ' भगवन  !  एक  बार  मैं  धरती  पर  भ्रमण   कर रहा  था   तब  मैंने  देखा  कि   एक  गाय  जंगल  में  कीचड़  में  धंस  गई  है   और  बाहर  नहीं  निकल  पा  रही  है  l   तभी  एक  चोर  वहां  से  निकला   और  गाय  को  बचाने   के  बजाय  वह  उस  पर  पैर   रखकर  निकल  गया  l   जैसे  ही  वह  आगे  बढ़ा  उसे   पेड़  के  नीचे   सोने  की  मोहरों  से  भरी  थैली  मिली   जिसे  पाकर  वह  बहुत  खुश  हुआ  l    फिर  मैंने  देखा  कि   उसी  मार्ग  से  एक  साधु  पुरुष  जा  रहे  थे  l   कीचड़  में  फँसी   गाय  को  देखकर   उनका  हृदय  करुणा   से भर  गया   और  कीचड़  में  उतर  कर  बड़ी  मेहनत  से  उन्होंने  गाय  को  बाहर  निकाला  l   गाय  को  बाहर  निकालते   समय  जैसे  ही  वे  आगे  बढ़े  तो   वहां पड़े  एक  पत्थर  के  टकराने  से  वे  गिर  पड़े  ,  जिससे  उनके  सिर   पर  गहरी  चोट  लग  गई  l   नारद  जी  बोले  -- ' भगवन  !  ऐसा  अनर्थ  कैसे  हुआ   ?  जो  चोर  था  उसे  सोने  की  मोहरें  मिली  और   गाय  की  मदद  करने  वाले  साधु   पुरुष को    सिर   में  चोट  लगी  l  '    भगवान  ने  कहा  --- ' पूर्व  में   किए   गए  एक  शुभ  कर्म  के  कारण  चोर  को  सोने  की  मोहरें  मिली  ,  लेकिन  उस  साधु  पुरुष  की  तो   उसके    पूर्व   प्रारब्ध  के   कारण  जंगल  में  मृत्यु  लिखी  थी  ,  जो  गाय  की  मदद  करने  के  कारण  टल   गई  l '     इस    कथा   से  हमें   यही  प्रेरणा  मिलती  है  कि   हमारे  द्वारा  किए   गए  शुभ  कर्म  कभी  निष्फल  नहीं  जाते  l   किसी  न  किसी  रूप  में  हमें  उनका  पारितोषिक  अवश्य   मिलता है   l