एक कथा है --- महर्षि व्यास जी के पुत्र शुकदेव जी पैदा होते ही जंगल चले गए l व्यास जी उनके पीछे भागे और बोले यह अवस्था तुम्हारी इसके लिए नहीं है , तुम्हे अभी गृहस्थ आश्रम के पूर्व पच्चीस वर्ष तक ब्रह्मचर्य का पालन करना है l तुम अभी से वीतराग मत बनो l तब शुकदेव जी ने व्यास जी को एक श्लोक सुनाया , उसका मर्म इस प्रकार है ------- " मान लीजिए आप ब्रह्मचर्य की बात कहते हैं तथा पच्चीस वर्ष तक बिना किसी कामना के जिन्दा रहना चाहिए तो सारे नपुंसक मुक्ति पा जाते l गृहस्थ से मुक्ति मिलती तो सारे पतंगे , मच्छर , मक्खी मुक्ति पा जाते l वानप्रस्थ के बाद मुक्ति मिलती तो चीते , बन्दर भालू मुक्ति पा जाते , क्योंकि ये सदैव वन में ही रहते हैं l यदि संन्यास से मुक्ति मिलती तो जितने भिखारी समाज में हैं , वे सभी मुक्ति पा जाते l इसलिए इन्हे तो आप मुक्ति का माध्यम मत बताइये l तब व्यासजी अपने बिद्वान पुत्र से पूछते हैं कि फिर मुक्ति कैसे मिलती है ? शुकदेव जी कहते हैं ----मुक्ति भगवान के परम पद का ध्यान करने से मिलती है l