धन जीवन में जरुरी है , लेकिन लोभ की कोई सीमा नहीं है l कोई व्यक्ति पचास व्यक्तियों से अधिक धनी है तो भी उसके मन में कसक होगी कि दूसरे पचास व्यक्ति उससे कहीं अधिक संपन्न हैं l उसे सबसे आगे निकल जाने की आकुलता होती है , इसलिए हर उचित , अनुचित और अनैतिक तरीके से वह धन - सम्पदा एकत्र कर लेता है l
धन - संपन्न व्यक्ति होने का अहंकार , उसके मानवीय गुणों को कम कर देता है l क्योंकि अहंकार सभी जगह पर अपना आधिपत्य स्थापित करना चाहता है l
कहते हैं सद्गुणों में विशेष आकर्षण होता है इसलिए बुरे से बुरा व्यक्ति भी समाज में स्वयं को बहुत शालीन , समाज सेवी , परोपकारी सिद्ध करना चाहता है l इसलिए ऐसे लोगों का दोहरा व्यक्तित्व होता है -- एक समाज के सामने बहुत दानी , परोपकारी , आदर्श व्यक्तित्व और दूसरी परदे के पीछे जहाँ अति धन कमाने की लालसा उसे नैतिक और मानवीय मूल्यों से गिरा देती है l संसार की अधिकांश समस्याएं ऐसे ही लोगों की अधिकता से उत्पन्न होती हैं l
संपन्नता जिस गति से बढ़ती है , फिर व्यक्ति हो या संस्था उसका अहंकार भी उतना ही बढ़ता जाता है l धन की ताकत बहुत होती है , उसके बल पर वे किसी भी देश की व्यवस्था को अपने अनुरूप नीति बनाने पर विवश कर देते हैं l यही वजह है आज संसार में शोषण व अन्याय में वृद्धि हुई है l
धन - संपन्न व्यक्ति होने का अहंकार , उसके मानवीय गुणों को कम कर देता है l क्योंकि अहंकार सभी जगह पर अपना आधिपत्य स्थापित करना चाहता है l
कहते हैं सद्गुणों में विशेष आकर्षण होता है इसलिए बुरे से बुरा व्यक्ति भी समाज में स्वयं को बहुत शालीन , समाज सेवी , परोपकारी सिद्ध करना चाहता है l इसलिए ऐसे लोगों का दोहरा व्यक्तित्व होता है -- एक समाज के सामने बहुत दानी , परोपकारी , आदर्श व्यक्तित्व और दूसरी परदे के पीछे जहाँ अति धन कमाने की लालसा उसे नैतिक और मानवीय मूल्यों से गिरा देती है l संसार की अधिकांश समस्याएं ऐसे ही लोगों की अधिकता से उत्पन्न होती हैं l
संपन्नता जिस गति से बढ़ती है , फिर व्यक्ति हो या संस्था उसका अहंकार भी उतना ही बढ़ता जाता है l धन की ताकत बहुत होती है , उसके बल पर वे किसी भी देश की व्यवस्था को अपने अनुरूप नीति बनाने पर विवश कर देते हैं l यही वजह है आज संसार में शोषण व अन्याय में वृद्धि हुई है l