लघु -कथा --- एक अत्याचारी राजा था , जो किसी से रुष्ट होने पर उसे बंदी बनाकर और अँधा कर के एक चौरासी कोस के जंगल में छोड़ देता था l उस जंगल के चारों ओर एक बड़ी व मजबूत दीवार बनी हुई थी l ज्यादातर लोग उस दीवार से सिर टकराकर मर जाते थे , पर उन्ही में से एक ऐसा ईश्वर भक्त था जिसे यह विश्वास था कि जिस ईश्वर ने यह स्रष्टि रची है , क्या उसके पास एक छोटे जंगल से निकलने का मार्ग नहीं होगा l इसी विश्वास के आधार पर वह रोज दीवार का सहारा लेकर गोल -गोल घूमा करता था और ऐसे ही एक दिन उसे दीवार के मध्य एक ऐसा छिद्र मिल गया जिससे बाहर निकला जा सकता था l इस प्रकार अपने निरंतर प्रयास और ईश्वर विश्वास ---इन दोनों के संयुक्त बल से वह बाहर निकलने में सफल हुआ l जीवन में सफलता के लिए निरंतर पूर्ण मनोयोग से प्रयास करने के साथ ईश्वर विश्वास भी जरुरी है , ईश्वर विश्वास से ही आत्मबल मिलता है l महाभारत में कर्ण युद्ध विद्या में अर्जुन से श्रेष्ठ था , महादानी और आत्म बल का धनी था , फिर भी अर्जुन से हार गया l ऐसा क्यों हुआ ? क्योंकि एक तो उसने अनीति और अधर्म का साथ दिया , अत्याचारी और अन्यायी जब डूबता है तो अपना साथ देने वाले सबको साथ लेकर डूबता है l दूसरा जो सबसे बड़ा कारण था ---- ऋषि कहते हैं ' नर और नारायण ' का जोड़ा ही जीतता है l अर्जुन को नर और कृष्ण को नारायण कहा गया है l जब अर्जुन निराश हो गया था तब भगवान ने गीता का उपदेश देकर उसे प्रेरणा दी उसके आत्मबल को जगाया , अर्जुन के जीवन रूपी रथ की बागडोर संभाली l कर्ण चाहे अर्जुन से श्रेष्ठ था लेकिन उसने अपने आपको ही सब कुछ माना , नारायण को अपना पूरक नहीं बनाया इसलिए उसे पूरक सत्ता का , ईश्वर का साथ नहीं मिल सका और वह पराजित हुआ l