9 January 2022

WISDOM------

 पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं  ----- " यदि  योगी  के  ह्रदय  में  अहिंसा  प्रतिष्ठित  हो  जाये   तो  उसके    सान्निध्य  में  प्राणी  अपने  प्राकृतिक  वैर  का  त्याग  कर  देते  हैं   किन्तु  मनुष्य  में  वैर   उसकी  मानसिक  विकृतियों  से    उपजा  है    l   इसलिए     ईसा  मसीह ,  सुकरात   और  महात्मा  गाँधी  जैसे  महान  पुरुष   जिनका  किसी  से  कोई  वैर  नहीं  था   ,    प्रकृति  और  प्राणियों  द्वारा  नहीं  ,  बल्कि  विकृत   मनुष्यों  द्वारा  मारे  गए   l '  ईर्ष्या , द्वेष    ऐसी  मानसिक   विकृति  है  कि   जब  यह  बहुत  गहन  हो  जाती  है  तो  मनुष्य   ,  ईश्वर  और  अवतार  को   भी    पहचान  नहीं  पाता   और  उनसे  भी  ईर्ष्या   करने  लगता  है  ,  उन्हें  हानि  पहुँचाने  की  कोशिश  करता  है  --------- भगवान  बुद्ध  का  एक  चचेरा  भाई  था  --देवदत्त   l   वह  भगवान  बुद्ध  से   गहरी  ईर्ष्या  करता  था   l   उसकी  हमेशा  यह  कोशिश  रहती  थी  कि   कब  उसे  मौका  मिले   और  कब  वह  तथागत  की  हत्या  कर  दे   l   कहा  जाता  है   कि   जब  बुद्ध   पहाड़ी  के  निकट  वृक्ष  के  नीचे  ध्यान  कर  रहे  थे   तो  देवदत्त  ने  उन  पर   एक  बड़ी  सी  चट्टान  लुढ़का  दी  l   पूरी  संभावना  थी  कि   बुद्ध  कुचल  जाते  ,  लेकिन  आश्चर्य   !  न  जाने  कैसे  चट्टान  ने  अपनी  राह  बदल  दी   और  तथागत  साफ  बच  गए  l   किसी  ने  पूछा  --- " भगवन  !  यह  आश्चर्य  कैसे  घटित  हुआ   ? "  तब  उत्तर  में   बुद्ध  ने  कहा  --- " एक  चट्टान  ज्यादा  संवेदनशील  है    देवदत्त  से  ,  चट्टान  ने  अपना  मार्ग  बदल  लिया   l  "  असुरता   ,  देवत्व  को  मिटाना  चाहती  है   लेकिन  अंत  में  जीत  देवत्व  की  ही  होती  है   l 

WISDOM -----

   गुरु  गोविंदसिंह  ने  अपने   ज्ञान ,   अपने  अनुभव  से  संसार  को  अनेक  शिक्षाएं  दीं  l   उनके  जीवन  का  एक  प्रसंग  है -----  गुरु  गोविंदसिंह  उन  दिनों  गोदावरी  के  तट   पर   नगीना  नाम  का  एक  घाट   बनवा  रहे  थे  l   दिनभर  उन  काम  में  व्यस्त  रहकर   वे  सायंकाल   प्रार्थना  कराते   और  लोगों  को  संगठन  तथा  बलिदान  का  उपदेश  दिया  करते  थे   l   उन   दिनों  उनके  पास  अनेक  शिष्य  भी  रहते  थे  ,  उनमे  एक  शत्रु  भी  छिपा  हुआ  था  ,  उसका  नाम  था  - अताउल्ला  खां  l  उसका  पिता  पैदे  खां   एक  युद्ध  में  गुरु जी  के  हाथ  से  मारा  गया  था   l  उसके  अनाथ  पुत्र  को   गुरु जी  ने  आश्रम  में  रखकर  पाल  लिया  था   किन्तु  उनकी  यही  दया  और  शत्रु  के  पुत्र  के  साथ  की  गई  मानवता   उनके  अंत  का  कारण  बन  गई   l   अताउल्ला  खां   हर  समय  इस  घात   में रहता  था  कि  कब  गुरु जी  को  अकेले  असावधान  पाए   और  मार  डाले  l   एक  दिन  उसने   पलंग  पर  सोते  हुए  गुरु जी  की  काँख   में   छुरा भौंक  दिया   l   गुरु जी  तत्काल  सजग  होकर   उठ  बैठे   और  वही  कटार   निकालकर   भागते  हुए  विश्वास  घाती   को  फेंककर  मारी  l   वह  कटार   उसकी  पीठ  में  धँस   गई   l   अताउल्ला  खां   वहीँ  गिरकर  ढेर  हो  गया  l   गुरु  के  घाव  पर  टाँके   लगा  दिए  गए  l   सांयकाल  उन्होंने   प्रार्थना  सभा   में  लोगों  को  बतलाया  कि   मेरी  इस  घटना  से  शिक्षा  लेकर   हर  सज्जन  व्यक्ति  को   यह नियम   बना  लेना  चाहिए   कि   यदि  शत्रु  पक्ष  को  ,  निराश्रय  की  स्थिति  में   सहायता   भी करनी  हो  तो   भी  उसे  अपने  पास   निकट  नहीं  रखना  चाहिए   और  उससे  सदा  सावधान    रहना  चाहिए   क्योंकि  कभी - कभी   असावधान  परोपकार  भी  अनर्थ  का  कारण  बन  जाता  है   l