10 May 2023

WISDOM ------

   लघु -कथा ---- ' कर्म  फल ----- बहुत  वर्ष  पूर्व  की  बात  है  , मथुरा  नगरी  में  धनासुर  नामक  एक  धनी  व्यक्ति  रहता  था  l  सुख -सुविधा  के  सभी  साधन   होते  हुए  भी  वह  बहुत  कंजूस  था  l  एक  दिन  उसे  समाचार  मिला  कि  व्यापार  के  लिए   निकला  उसका  जहाजी  बेड़ा   समुद्र  में  डूब  गया  l  उसके  अगले  ही  दिन  उसे  ज्ञात  हुआ  कि   उसके  गोदामों  में  आग  लग  गई  l  अभी  वो  इन  शोक  समाचारों  से  उबार  भी  नहीं  पाया  था  कि   उसके  महल  में  चोरी  हो  गई   और  उसका  सारा  खजाना  लूट  लिया  गया  l  धनासुर  के  दुःख  का  पारावार  न  रहा  l  अचानक  सम्पन्नता  छीन  जाने  से   उसकी  मानसिक  स्थिति   बिगड़  गई   और  वह  नगर  की  गलियों  में  विक्षिप्त  की  भांति  घूमने  लगा   l        ऐसी  ही  दशा  में  घूमते -घूमते   एक  दिन  उसकी  भेंट  मुनि  धम्म  कुमार  से  हुई  l  उनके  मुख  पर  एक  गंभीर  शांति  , धैर्य  एवं  मुस्कराहट  थी  l  धनासुर  ने  मुनि   से  पूछा  --- मुनिवर  !  मुझे  बताएं  कि  किन  कर्मों  के  कारण  मैं  इतने  अकूत  धन  का  स्वामी  बना   और  किन  कर्मों  के  कारण   कंगाल  होकर  इस  स्थिति  में  हूँ  l  "  मुनि  बोले --- ' वत्स  ! वर्षों  पूर्व  अम्बिका  नगरी  में  दो  भाई  रहा  करते  थे  l  बड़ा  भाई  धर्म , दान , पुण्य  के  मार्ग  पर  चलता  था   और  छोटा  भाई  सदैव  अधर्म ,  अनाचार  का  पथ  अपनाता  l  निरंतर  दान  करने  के  बाद  भी   बड़े  भाई  की  संपदा  में  निरंतर  वृद्धि  होती  गई    जबकि  कंजूसी  और  लालच  के  पथ  पर  चलने  के  कारण   छोटे  भाई  के  व्यापार  में  कोई  वृद्धि  नहीं  हुई ,  जितना  था  वैसा  ही  रहा  l    ईर्ष्यावश  छोटे  भाई  ने  बड़े  भाई  की  हत्या  करा  दी  l  कालान्तर  में  बड़ा  भाई   साधु  रूप  में  जन्मा   और  छोटे  भाई  का  जन्म  एक  धनी  परिवार  में  असुर  संस्कारों  के  साथ  हुआ  l  वो  छोटे  भाई  तुम  ही  हो  ,  जो  अपने  पूर्व  जन्म  के  पापों  का  दंड  भुगत  रहे  हो  l  "  धनासुर  ने  प्रश्न  किया  ---- " मेरे  बड़े  भाई  का  क्या  हुआ  ? "  मुनि  हँसे   और  बोले  ---- " तुम  अभी  उनसे  ही  बात  कर  रहे  हो  l  "  यह  सुनते  ही   धनासुर  का   ह्रदय  परिवर्तन  हो  गया  , वह  समझ  गया  कि  कर्मों  का  फल  अवश्य  मिलता  है  , उसके  लिए  चाहे  कितने  ही  जन्म  क्यों  न  लेने  पड़ें   l   इसलिए  तृष्णा , लालच , ईर्ष्या  से  दूर  रहकर  सन्मार्ग  को  चुनें  l  यह   विवेक  जाग्रत  होते  ही  उसने   मुनि  धम्म  कुमार  से  दीक्षा  ली  और  भिक्षु  बन  गया  l