26 October 2018

WISDOM ------ समझदारी के अभाव में नकारात्मकता बढ़ती है

  एक  बार  अमेरिकी  राष्ट्रपति   अब्राहम  लिंकन  ने  अपने  एक  सैनिक  अफसर  को  किसी  सहयोगी  व्यक्ति  के  साथ   उग्र  विवाद  में  उलझते   देखा ,  तो  उसे  सख्ती  से  डांटा  l  उनका  कहना  था ------------------- "  कोई  भी  व्यक्ति  जो  अपनी  क्षमता  को  पूरा  विस्तार  देने  के  लिए    प्रतिबद्ध  है  ,  उसके  पास व्यक्तिगत  कलह  के  लिए   समय  नहीं  होना  चाहिए  l  चाहे  इसके  लिए   उसे  अपने   सामान्य  या  निजी  अधिकारों  को  त्यागना   ही  क्यों  न  पड़े   l  "
  लेकिन  कोई  भी  अपने   छोटे -से -छोटे  अधिकार  का  भरपूर  उपयोग  करना  चाहता  है  ,  उसे  त्यागना  नहीं  चाहता  ,  इसलिए  विवादों  में  पड़  जाता  है   l 
  हम  जो  भी  निर्णय  लेते  हैं   या  जो  भी  चाहते  हैं  ,  उससे  सभी  सहमत  नहीं   होते  हैं    l   और  यह  सह्मति,   असहमति  कभी - कभी   या  अक्सर    आपस  में कलह  का  कारण  बन  जाती  है   l 
  बात  थोड़ी  सी  होती  है  ,  लेकिन  समझदारी  के    अभाव  में    वह  बहुत  विकृत  रूप  में  उभरकर   सामने  आती  है   l  इससे  न  केवल  समय  की  बरबादी  होती  है  ,  बल्कि  इससे  आस - पास  का   वातावरण  भी  नकारात्मक   तत्वों  से  भर  जाता  है   l 
 असहमति  होते  हुए  भी     सहमति  के   बिन्दुओं  को    खोजना     ,  कलह  को  न  होने  देने  का    सबसे   अच्छा    तरीका  है   l  

या देवी सर्वभूतेषु निद्रारूपेण संस्थिता l नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम: ll

  ऋषियों  का ,  आचार्य  का  मत है  कि    जो   व्यक्ति  प्रत्येक  रात्रि  को   सोते  समय   गायत्री  मन्त्र  का  जप  करे  ( भगवत्स्मरण )   करे   तो  उसके  जीवन  की  निद्रा   से  सम्बंधित  समस्याएं ,  अनिद्रा  आदि  व्याधियाँ,  बीमारियाँ  समाप्त  हो  जाती  हैं    और  अध्यात्म  के  क्षेत्र  में  भी  आगे  बढ़ते  हैं   l
  इस  सम्बन्ध  में  एक  कथा  है -----  एक  व्यापारी  था  ,  वह   व्यापार    के  सिलसिले  में   एक  नगर  से  दूसरे  नगर  जाता  था   l  इस  बार  वह  अमरकंटक  जा  रहा  था ,  रास्ते  में  सोच  रहा  था  -- " मैंने  जीवन पर्यंत  पाप  ही  पाप  किये  हैं  ,  मदिरापान , वेश्यागमन , मिथ्या भाषण  में  मैं  सबसे  आगे  रहा  l "  ऐसा  चिन्तन  करते  हुए  वह  अमरकंटक  पहुँच  गया   l  संयोगवश  उस  दिन शिवरात्रि  थी   l  मंदिरों  में  अभिषेक , पूजन ,  अर्चन   देखकर  उसे  विचित्र  अनुभव  हुए   क्योंकि  उसने  कभी  इस  तरह  के  कार्य  नहीं  किये  थे   l  यह  सब  देखकर  उसे  विलक्षण  शांति  का  अनुभव  हुआ   l  रात्रि  का  समय  था  ,  वह  मंदिर  के  बाहर  ही     जमीन  पर  लेट  गया   l    उसे  अपने  दूषित  कर्मों  पर  दुःख  हो  रहा  था  ,  साथ  ही  मंदिर  में  होने  वाले   अभिषेक , अर्चन  आदि  से  ईश्वर  का  पवित्र  नाम  उसके  कानों  से  ह्रदय  में  जा  रहा  था  l  शीघ्र  ही  उसे  गहरी  नींद  आ  गई  l  वहां  उसे  एक  काले नाग  ने  काट  लिया   l  लोगों  ने  उसकी  चेतना  लौटाने  के  लिए  अभिषेक  का  पवित्र  जल   उसके  मुँह  पर  छींटा, किन्तु  उसके  प्राण  निकल  चुके  थे  l
      चित्रगुप्त  महाराज  ने  उसके  कर्मों  का  लेखा  पढ़ते  हुए  यमराज  से  कहा  ---- "  यह  महान  पापी  है  ,  इसे  घोर  नरक  में  कष्ट  सहने  के  लिए  डाला  जाये  l  "  किन्तु  चित्रगुप्त  , यमराज  व  दूतों  को  बहुत  आश्चर्य  हुआ   कि  नरक  के  कष्टों  से  उसे  कोई कष्ट  ही  नहीं  हुआ  ,  वह  तो  शांत  और  सुरक्षित  है  l
उसी  समय  नारदजी  आ  गए  ,  उन्होंने कहा --- "   इसमें  आश्चर्य  की  कोई  बात  नहीं  है   l  उसने  निद्रा  में  भगवन   शिव  का  चिंतन   करते  हुए  प्राण  त्यागे ,   उसके  मन  में   अभिषेक , पूजन   अर्चन  के  पवित्र  भाव  के  साथ  अपने  दूषित  कर्मों  के  लिए   प्रायश्चित  भाव  होने  के  कारण  उसका  मन  पवित्र  है l  इसलिए  अब  उसे  नरक  का  कोई  कष्ट  नहीं  है   l  "  रात्रि  को  और  अपने  जीवन  की  अंतिम  निद्रा  को  संवार  लेने  के  कारण  उसका  कल्याण  हुआ  l 
  आचार्य  कहते  हैं -- ईश्वर  को    पवित्र  भावना   प्रिय  है ,  लेटे - लेट  भी  मानसिक  जप  किया  जा  सकता  है   l