युगों - युगों से मनुष्य का स्वाभाव अनेक तरह की चिंताओं से ग्रस्त रहा है l चिंता एक ऐसा रोग है , जो कभी भी हमारे विचारों में घुन की तरह लग जाता है l एक विचारक का कहना है ---' यदि चलने के लिए तैयार खड़े जहाज में सोचने - विचारने की शक्ति होती , तो वह सागर की उत्ताल तरंगों को देखकर डर जाता कि ये तरंगे उसे निगल लेंगी और वह कभी बंदरगाह से बाहर नहीं निकलता लेकिन जलयान सोच नहीं सकता , इसलिए उसे कोई चिंता नहीं होती कि जल में उतरने के बाद उसका क्या होगा , वह तो केवल चलता है l " आचार्य श्री लिखते हैं ---- इसी तरह यदि हम संकटों व परेशानियों के बारे में सोचकर घबराएंगे तो विकास के मार्ग पर हमारा एक कदम भी आगे बढ़ना दूभर हो जायेगा l इसलिए यदि मन आशंकाओं और नकारात्मक कल्पनाओं से भर रहा हो तो अकेले में बैठकर उन्हें सोचना नहीं चाहिए , तुरंत अपने मन को किसी कार्य में लगाना चाहिए ' व्यस्त रहें , मस्त रहें l '
27 July 2021
WISDOM -------
एक क्रांतिकारी को स्वतंत्रता संग्राम के दिनों में फाँसी की सजा दे दी गई l उनकी विधवा पत्नी के अतिरिक्त घर में एक युवा कन्या और थी l पैसे की कमी , संरक्षक का अभाव एवं विपन्नता अवरोध के रूप में सामने खड़े थे l ऐसे में एक शिक्षित नवयुवक आगे आया और क्रांतिकारी की बेटी से विवाह हेतु हाथ आगे बढ़ा दिया l अधिकारियों ने धमकी दी कि अब तुम्हारे पीछे भी पुलिस पड़ेगी l क्यों झंझट में पड़ते हो ? युवक डर गया l घटना एक संपादक के संज्ञान में आई l उनने अधिकारियों से जाकर चर्चा की , उन्हें समझाया , यदि आप किसी के आंसू पोंछ नहीं सकते तो रुलाने का भी अधिकार नहीं है l पुलिस अधिकारी शर्मिंदा हुआ , उसने क्षमा मांगी l बाद में उसने और संपादक महोदय ने मिलकर विवाह संपन्न कराया , सारा व्यय का भार भी स्वयं उठाया l विवाह में कन्या के के पिता की जिम्मेदारी निभाने वाले संपादक सज्जन थे --- श्री गणेश शंकर विद्दार्थी , जिन्हे अमर हुतात्मा की बाद में संज्ञा मिली l