25 October 2021

WISDOM -----

 ऋषि वचन  है -----' हित   चाहने  वाला   पराया  भी  अपना  है   और  अहित  करने  वाला   अपना  भी  पराया  है  l  रोग  अपनी  देह  में  पैदा  होकर  भी   हानि  पहुंचाता  है    और  औषधि  वन  में  पैदा  होकर  भी   हमारा  लाभ  ही  करती  है   l  "       ईर्ष्या -द्वेष , लोभ - लालच ,  कामना - वासना  , अहंकार    ये  सब  ऐसी  मानसिक  विकृतियां  हैं   जो  अपने  पराये  के  भेद  को  समाप्त  कर  देती  हैं   l   कुछ  पाप  तो  अनजाने  में  हो  जाते  हैं  लेकिन  इन  दुष्प्रवृतियों  से  ग्रस्त  व्यक्ति     जानबूझकर  पापकर्म  करता  है  l   अत्याचार  में  भी  एक  आकर्षण  होता  है  ,   ये  दुष्प्रवृत्तियाँ  ही  व्यक्ति  को  असुर  बना  देती  हैं  ,  यदि  ऐसे  व्यक्ति  के  अहंकार  पर  चोट  पहुँचती  है   तो अत्याचार  का  स्तर  कितना  होता  है  --- भगवान  कृष्ण  की  बाल्यावस्था  में   उन  पर  सबसे  ज्यादा  अत्याचार     मामा   कंस  ने  ही  किया  l   प्रह्लाद  को  उनके  पिता   हिरण्यकश्यप  ने  ही  सताया  l  महाभारत  में   दुर्योधन  ने   अपने  ही  भाइयों   पर  अत्याचार  किया  ,  उन्हें  वन  में  भटकने  को  विवश  किया  ,  अपनी  ही  कुलवधु     द्रोपदी  को  अपमानित  किया   l     यही  संसार  है   l    जो  पापकर्म  करता  है  , उसे  देर - सवेर   अपने   अपने  कर्मों  की  सजा  अवश्य  मिलती  है  ,  प्रकृति  में  क्षमा  का  प्रावधान  नहीं  है  l    जो  बुद्धि  और  विवेक  से   इन  अत्याचारियों  की   हर  चुनौती  का  सामना  करता  है    वह  अर्जुन  आदि  पांडवों  की  तरह    शक्तिशाली  होकर  जीवन  में  सफल  होता  है   l