20 January 2020

WISDOM ----

  बहुत  वर्ष  पहले    एक  मूर्तिकार  मूर्तियां  बनाता   और  उन्हें  बेचकर  गुजारा   करता   l  उसकी  मूर्ति  प्राय:  एक  रूपये  में  बिकती  l   लड़का  बड़ा  हुआ  तो  मूर्तिकार  ने   उसी  धंधे  में  उसे  लगाया  l   लड़का  कुशाग्र  बुद्धि  था  , जल्दी  ही  अच्छी  मूर्तियां  बनाने  लगा    और  वे  बाप  की  अपेक्षा  दूने   दाम  में  यानि  दो  रूपये  में  बिकने  लगीं  l  इतने  पर  भी  बाप  ने  अपना  नित्य  कर्म  जारी  रखा  l   वह  लड़के  की  मूर्तियों  को  बड़ी  बारीकी  से  देखता   और  उनमे  जो  नुक्स  होता  उसे  सुधारने  की  सलाह  देता  l   लड़के  के  अहंकार  को  चोट  लगी  ,  उसकी मूर्तियां  दूने   दाम  में  बिकने  लगीं   थीं  l   तब  भी  प्रशंसा  मिलने  के  स्थान  पर     उसके  कार्य  में   पिता  द्वारा  मीन  मेख  ही  निकाली   जाती  थी   l   अपने  को  दुःख  लगने  की  बात  उसने  अपने  पिता   पर  प्रकट  की   और  कहा   मेरी  मूर्तियां  इतनी  सुन्दर  हैं  ,  आपकी  मूर्तियों  से  ज्यादा  दाम  में  बिकती  हैं ,  फिर  भी  आप  कमी  निकालते  हैं  ,  मुझे  बहुत  दुःख  होता  है  l
  यह  सुनकर  पिता  को  बहुत  दुःख  हुआ  ,बोला --- ' बेटे  !  तेरी  प्रगति  अब  रुक  गई  l   दो  रूपये  से  अधिक  मूल्य  की   मूर्ति  अब  न  बना  सकेगा  l   यह  भूल  मुझसे  बचपन  में  हुई  थी   और  एक  रूपये  की   मूर्ति  बनाने  के  बाद  और  अधिक  प्रगति  न  कर  सका  l   वही  भूल  अब  तुम  कर  रहे  हो  l  लड़के  ने  अपनी  भूल  समझी   l     पिता  की  सीख  मानकर  वह  पहले  से  अच्छी  मूर्तियां   बनाने  लगा  l   गलतियों  को  स्वीकार  करना  और   उन्हें  सुधारना ,   यही  अनवरत  प्रगति  का  राह  मार्ग  है