दुर्गा सप्तशती में कथानक है ----- माँ दुर्गा सभी दैत्यों को मार गिराती हैं , परन्तु महिषासुर ही एक ऐसा दैत्य है , जो मरता नहीं है , माता के चरणों में शरणागति को प्राप्त करता है l यहाँ महिषासुर कामवासना का प्रतीक है जो मरता नहीं है , माँ के चरणों में , माँ की शरण में जाकर भक्ति के रूप में रूपांतरित हो जाता है l पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं ---- " वासना का समाधान केवल उसके रूपांतरण में ही निहित है और भक्ति वासना का दिव्य रूपांतरण है l "
12 October 2021
WISDOM ------
पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं ---- " यदि आप आज किन्ही कठिनाइयों में हैं तो इसका कारण ईश्वर नहीं , वरन आपके ही कुछ दोष हैं , जिन्हें आप भले ही जानते हो या न जानते हो l पाप एवं दुष्कर्म ही एकमात्र दुःख का कारण नहीं होते l अयोग्यता , मूर्खता , निर्बलता , निराशा , फूट एवं आलस्य भी ऐसे दोष हैं , जिनका परिणाम पाप के ही समान और कई बार उससे भी अधिक दुखदायी होता है l " आचार्य श्री लिखते हैं ---- " आप कठिनाइयों से छुटकारा पाना चाहते हैं तो अपने भीतरी दोषों को ढूंढ डालिए और उन्हें निकल बाहर करने में जुट जाइये l दुर्गुणों को हटाकर उनके स्थान पर आप सद्गुणों को अपने अंदर जितना स्थान देते जायेंगे , उसी अनुपात के अनुसार आपका जीवन विपत्ति से छूटता जायेगा l " आचार्य श्री लिखते हैं ----- " इस संसार में कर्म ही एकमात्र सत्य है l कर्मानुसार जीव की गति होती है , कर्मानुसार भोग बनता है और उस भोग को भोगने के लिए जीव उस भोग भूमि में जन्म लेता है l यदि जीवन को श्रेष्ठ करना है तो कर्म को ठीक करना होगा l श्रेष्ठ कर्म से पुण्य और दुष्कर्म से पाप बनता है l प्रकृति न तो पाप के अतिरेक को बर्दाश्त करती है और न प्रबल पुण्य को सहन करती है l वह दोनों का परिणाम प्रदान करती है ---- पापी को भारी यातना एवं यंत्रणा का शिकार होना पड़ता है और पुण्यवान को सुख - ऐश्वर्य का भोग भोगना पड़ता है l अत: मनुष्य को निष्काम कर्म कर के इन दोनों अवस्थाओं को पार कर लेना चाहिए l