28 January 2021

WISDOM ------

    सिकंदर  एक  ऐसा  व्यक्ति  था  ,  जिसके  पास  किसी  भी  चीज  की  कमी  नहीं  थी  ,  लेकिन  वह  हीनता  की  ग्रंथि  का  शिकार  था   और  इसी  मनोग्रंथि  के  कारण   पुरे  विश्व  को  जीतने  की   महत्वाकांक्षा  मन  में  संजोये  था  l   अपनी  विश्वविजय  यात्रा  पर  निकलने  से  पहले   वह  डायोजिनीस   नामक  फकीर   से  मिलने  गया  ,  जो  हमेशा  नग्न  और  परमानंद   की  अवस्था  में  रहते  थे   l   सिकंदर  को  देखते  ही  डायोजिनीस  ने  पूछा ---- " तुम  कहाँ  जा  रहे  हो   ? " सिकंदर  ने  कहा --- " मुझे  पूरा  एशिया  महाद्वीप  जीतना  है   l  "                                      डायोजिनीस ----- "उसके  बाद  क्या  करोगे  ? "    सिकंदर ---- " उसके  बाद  भारत  जीतना  है  l "              डायोजिनीस ----- " उसके  बाद  ? "         सिकंदर ----- " शेष  दुनिया  को  जीतूंगा  l "                            डायोजिनीस ----  " और  उसके  बाद  l  "    सिकंदर  ने  खिसियाते  हुए  उत्तर   दिया --- " उसके  बाद  मैं  आराम  करूँगा  l  "       डायोजिनीस  हँसने   लगे  और  बोले ----- " जो  आराम  तुम  इतने  दिनों  बाद  करोगे  ,  वह  तो  मैं  अभी  भी  कर  रहा  हूँ  l   यदि  तुम  आख़िरकार  आराम  ही  करना  चाहते  हो  तो   इतना  कष्ट  उठाने   की क्या  आवश्यकता   ?  तुम  भी  यहाँ  पर  आराम   कर सकते  हो  l  "  सिकंदर  सोचने  लगा   उसके  पास  सब  कुछ  है  ,  पर  शांति  नहीं   और  डायोजिनीस  के  पास  कुछ  नहीं  ,  पर  उसका  मन  शांति  और  आनंद  से  भरा  हुआ  है  l   पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं ---- '  जिनका  मन  मनोग्रंथियों  से  मुक्त  होता  है  वे  कहीं  भागते  नहीं  ,  किसी  को  जीतते  नहीं   ,  वह  स्थिर  होते  हैं  ,  स्वयं  को  जीतते  हैं   और  धीरे - धीरे  उनका  मन  शांति  और  आनंद  से  भर  जाता  है   लेकिन  जिनका  मन  मनोग्रंथियों  से  घिरा  होता  है  ,  वे  बेचैन , अशांत  व  परेशान     रहते  हैं   l   ऐसे  व्यक्ति  चाहे  पूरा  विश्व  भ्रमण  कर  लें  ,  ढेर  सारी   सम्पदा  एकत्र   कर  लें  ,  लेकिन  फिर  भी   वे अपने  मन  के  अँधेरे  को   दूर  नहीं  कर  पाते   l "

WISDOM ------

  पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं  ----- " आकस्मिक  विपत्ति  का  सिर   पर  आ  पड़ना   मनुष्य  के  लिए  सचमुच  बड़ा  दुखदायी  है  l  इससे  उसकी  बड़ी  हानि  होती  है  ,  किन्तु  उस  विपत्ति  की  हानि  से  अनेकों  गुनी  हानि  करने  वाला  एक  और  कारण  है  ,  वह  है  विपत्ति  में  घबराहट  l   विपत्ति  कही  जाने  वाली  मूल  घटना   चाहे  वह  कैसी  ही  बड़ी  क्यों  न  हो  ,  किसी  का  अत्यधिक  अनिष्ट  नहीं  कर  सकती  ,  परन्तु  विपत्ति  की  घबराहट   ऐसी  दुष्ट  पिशाचिनी  है   कि   जिसके  पीछे  पड़ती  है   उसके   गले से   खून  की  प्यासी  जोंक  की  तरह  चिपक  जाती  है   और  जब  तक  उस   मनुष्य को  पूर्णतया  नि:सत्व  नहीं  कर  देती  ,  तब  तक  उसका  पीछा  नहीं  छोड़ती  l  l  "      इसलिए  विपत्ति  आने  पर  हमें  धैर्य  से  काम  लेना  चाहिए   l   स्वामी  रामतीर्थ  कहते  हैं  ---- "    धरती    को  हिलाने   के  लिए   धरती   से    बाहर  खड़े  होने  की  आवश्यकता  नहीं  है  ,  आवश्यकता  है  ---- आत्मा  की  शक्ति  को  जानने   और जगाने  की   l   आत्म  शक्ति  का  ही  दूसरा  नाम  है  आत्मविश्वास  है  l  "     आत्मविश्वास  ही  ईश्वरविश्वास  है  l