श्रीमद भगवद्गीता में भगवान कहते हैं ---- 'गहना कर्मणोगति l , कर्म की गति बड़ी गहन है l कर्म अविनाशी है ,इसका बीज कभी नष्ट नहीं होता l सद्कर्म से पुण्य और दुष्कर्म से पाप का विधान है l कर्म का फल मिलता अवश्य है , भले ही इसमें देर हो जाये l महारानी द्रोपदी यज्ञ से उत्पन्न हुईं थीं l द्रोपदी सहित सभी पांडवों को भगवान कृष्ण का सान्निध्य प्राप्त था लेकिन फिर भी द्रोपदी को बहुत इंतजार करना पड़ा l दु:शासन ने भरी सभा में उसे अपमानित किया था , इस पापकर्म की सजा उसे मिलनी थी l यह देखने के लिए और उसके रक्त से अपने केश धोने के लिए द्रोपदी को तेरह वर्ष इंतजार करना पड़ा l केवल दु:शासन ही नहीं सभी कौरवों ने पांडवों पर अत्याचार किए l जब पाप सामूहिक होते हैं तब उनका दंड भी सामूहिक होता है l सारे पापी ईश्वरीय विधान के अनुसार एक जगह जुट जाते हैं , उनके पापों के बोझ से चाहे वह कोई वंश हो , कोई संस्था हो , कोई संगठन , कोई समाज हो उसका अस्तित्व ही समाप्त हो जाता है l मनुष्य अपनी मानसिक कमजोरियों के आगे लाचार है l यह जानते हुए भी कि पाप कर्म की सजा अवश्य मिलेगी , फिर भी पाप कर्म करना नहीं छोड़ता l कितने ही लोग भयंकर बीमार हो जाते हैं , जब तकलीफ होती है तो प्रार्थना करते हैं कि ठीक हो जाएँ तो कोई गलती नहीं करेंगे , लेकिन स्वस्थ होते ही फिर गलतियाँ करने लगते हैं l जिनके भीतर विवेक है वे अपनी गलतियों से सीखते हैं , उनको सुधारने का और उन्हें पुन: न दोहराने का संकल्प लेते हैं और इस तरह महानता के स्तर को प्राप्त करते हैं l