22 August 2020

WISDOM ------

 पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं ---- " कहावत  है  कि   अपनी  अक्ल  और  दूसरों  की  संपत्ति   चतुर  को  चौगुनी   और  मूर्ख   को  सौ   गुनी  दिखाई  पड़ती  है  l   संसार  में  व्याप्त  इस   भ्रम  को  महामाया  का   मोहक  जाल   ही  कहना  चाहिए   कि    हर  व्यक्ति   अपने  को  पूर्ण  निर्दोष  एवं   पूर्ण   बुद्धिमान   मानता   है   l  न  तो  उसे  अपनी  त्रुटियाँ   सूझ  पड़ती  हैं   और  न  अपनी  समझ  में   कोई  दोष  दिखाई   देता  है  l  इस  एक  ही  दुर्बलता  ने  मानव  जाति   की  प्रगति  में   इतनी  बाधा  पहुंचाई  है  ,  जितनी  संसार  की  समस्त  अड़चनों  ने  मिलकर   भी  नहीं  पहुंचाई  होगी  l   "

आचार्य  श्री आगे  लिखते  हैं ---- " अध्यात्म - विद्द्या   का प्रथम  सूत्र  यह  है   कि प्रत्येक  भली - बुरी  परिस्थिति  का   उत्तरदायी   हम  अपने   आप   को    मानें   l   बाह्य  समस्याओं  का  बीज   अपने  में  ढूंढें   और  जिस  प्रकार  का  सुधार   बाहरी  घटनाओं  , व्यक्तियों  और  परिस्थितियों   में   चाहते   हैं ,  उसी  के  अनुरूप   अपने  गुण  , कर्म , स्वाभाव  में  हेर - फेर  प्रारम्भ  कर  दें  l  "

वैचारिक   प्रदूषण   से  भरे    इस  समाज  में   कम - से - कम   अपने  चिंतन  को  ऊर्जावान  बनाये  रखें   l   अपना  सुधार  ही   संसार  की  सर्वश्रेष्ठ  सेवा  है   l