आज संसार में अशांति का सबसे बड़ा कारण है --- मत्स्य न्याय l जो शक्तिशाली है वह चाहता है कि केवल उसका ही अस्तित्व रहे , शेष सब उसकी कठपुतली बन कर रहें l यह स्थिति छोटे से बड़े स्तर तक है l इसी का परिणाम है कि हम अपनी ही संस्कृति को भूल रहे हैं l किसी भी राष्ट्र के उत्थान के लिए जरुरी है कि लोग स्वाभिमानी हों , उनमे विवेक हो l हम हमेशा आपस में ही लड़ते रहे इसलिए दूसरे देश की शिक्षा , चिकित्सा , संस्कृति हम पर हावी हो गई l स्वार्थी तत्व तो हमेशा से ही अपनी दुकान बचाने में लगे रहते हैं l हर व्यक्ति जागरूक होकर अपने जीवन को अच्छा बनाये l आज के समय में जब चारों ओर स्वार्थ , भ्रष्टाचार जैसी नकारात्मक प्रवृतियां हैं , यह जरुरी है कि हम किसी लालच में नहीं आएं l बहेलिया लालच देकर ही पक्षियों को अपने जाल में फँसा लेता है l
25 May 2021
WISDOM ------- मानवीय देह को अमर बनाने के प्रयत्न इस संसार में अति प्राचीन काल से ही हो रहे हैं लेकिन क्या मनुष्य ईश्वरीय विधान को बदल सका है ?
पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी ने लिखा है ---- ' अमृत की खोज के साथ ' मृत्यु ' की खोज स्वयं होती चली जाती है l जिस प्रकार आजकल के वैज्ञानिकों ने यूरेनियम धातु के प्रयोग से उस 'अणु शक्ति ' को प्राप्त कर लिया है , जिससे आप चाहे तो संसार में प्रलय कर दें और चाहें इस पृथ्वी को सुवर्ण मंडित बनाकर मनुष्यों को देवताओं के सामान अजर - अमर बना दें l उसी प्रकार प्राचीन भारतीय वैज्ञानिकों ने भी पारद के ऊपर प्रयोग कर के ऐसी विधियां निकाली थीं , जिनसे तांबे का सोना बनाना संभव था , साथ ही मनुष्य अपने भौतिक शरीर को पूर्णत: नहीं तो अधिकांश में अमर भी बना सकता था l " आचार्य श्री आगे लिखते हैं --- ' महत्वपूर्ण बात यह है कि सुवर्ण बनाने के लिए औषधियों का प्रयोग तांबा आदि धातुओं पर किया जाता था , पर अब अमृत की खोज करने के लिए तो उनका प्रयोग मानव देह पर ही किया जाना आवश्यक था l ' ' अमृत ' की खोज अत्यंत प्राचीन काल से ही आकर्षक विषय है , केवल भारत ही नहीं अन्य देशों में भी लोग इस खोज के लिए पागल होकर घूमते रहे हैं l l " अब यह वैज्ञानिक के हृदय की संवेदना पर निर्भर है कि वह अमृत की खोज के लिए अज्ञात जड़ी - बूटियों आदि अनेक अज्ञात पदार्थों का सेवन और उनके प्रभाव की जांच वह स्वयं की देह पर करता है या निर्दोष और अज्ञानी मनुष्यों की देह पर करता है l प्राचीन भारत के महान वैज्ञानिक सिद्ध नागार्जुन ने संसार की कायापलट करने के लिए ' अमृत ' की खोज करने का निश्चय किया और इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए एक बड़ी प्रयोगशाला बनाकर जड़ी - बूटियों द्वारा पारद -संबंधी परीक्षण आरम्भ किये l सिद्ध नागार्जुन सौराष्ट्र के अंतर्गत ' ढांक ' नामक नगर के अधिपति थे , पर उनकी रूचि राज्य शासन की अपेक्षा स्वर्ण और अमृत की खोज की तरफ विशेष रूप से थी l उन्हें इसमें बहुत सफलता भी मिली l किसी घटिया धातु को स्वर्ण में बदल देना उनके लिए साधारण बात थी l इसलिए जब उनके मंत्रियों ने उनसे कहा --- महाराज ! आपने अपनी समस्त शक्तियों को ' अमृत ' की खोज में लगा दिया है इससे राज्य -कार्य की उपेक्षा हो रही है प्रादेशिक सामंत स्वेच्छाचारी हो गए हैं , उनने कर देना बंद कर दिया है और विदेशियों के आक्रमण का भय उत्पन्न हो गया है l ' मंत्रियों की बात सुनकर नागार्जुन ने कहा ---- ' जिन दो विपत्तियों का भय तुमने प्रदर्शित किया , उनकी मुझे कोई चिंता नहीं है l यदि सामंतों से कर मिलना बंद हो जाये तब भी मेरा खजाना स्वर्ण से भरा रह सकता है और यदि कोई विदेशी मेरे राज्य पर आक्रमण करने का साहस करेगा , तो मैं सेना के बजाय थोड़ी सी औषधि से ही उसको नष्ट करने की सामर्थ्य रखता हूँ l " मंत्रियों के आग्रह पर उन्होंने युवराज के मस्तक पर राजमुकुट रख दिया , उसे गद्दी पर बैठाकर स्वयं निश्चिन्त होकर परिक्षण में लग गए l नागार्जुन ने अपने प्रयोग के लिए दूर देशों और पर्वतों से तरह - तरह की नई जड़ी बूटियाँ इकट्ठी करनी आरम्भ की l पर अज्ञात जड़ी - बूटियों का सेवन और उनके प्रभाव की जांच करना खतरे से खाली न था इसलिए नागार्जुन उनका प्रयोग अपनी देह पर करने लगे l उन्होंने अपने शरीर को साधना द्वारा इतना योग्य बना लिया कि परिक्षण के भले बुरे प्रभाव को सहन कर सकें , शस्त्र और विष आदि से उन्हें कोई हानि न हो l उनकी सहन शक्ति चरम पर पहुँच गई थी l एक दिन युवराज उनकी प्रयोगशाला में आया , उन्होंने अपने पुत्र को आशीर्वाद दिया और प्रयोगशाला को दिखाते हुए कहा ---- " भगवान धन्वन्तरि की कृपा से अमर बनाने वाली समस्त औषधियां मिल गई हैं और अब केवल उचित मात्रा में विधिपूर्वक उनका योग करना ही शेष रह गया है l भगवान ने चाहा तो संसार शीघ्र ही दरिद्रता और मृत्यु के भय से मुक्त होगा l " अपने पिता की सफलता से युवराज प्रभावित हुआ किन्तु उसे यह भय हो गया कि इस कार्य के बाद नागार्जुन उससे राज्य सत्ता वापस लेंगे l उसने अपने इस भय को अपने घनिष्ठ मित्रों से कहा तो उन्होंने उसे इस भय से छुटकारा पाने की सलाह दी l अंत में सबने षड्यंत्र कर ऐसी योजना बनाई जिससे नागार्जुन अपनी प्रयोगशाला सहित विनष्ट हो गया l नागार्जुन की महान वैज्ञानिक खोजों का प्रमाण उसके ' रसोद्धार तंत्र ' नामक ग्रन्थ में मिलता है , जिसे आज भी आयुर्वेद जगत में अद्वितीय माना जाता है l जो लोग पारद की भस्म बनाने में सफल हुए , वे उसके प्रयोग से अमर नहीं तो दीर्घ जीवन की प्राप्ति में समर्थ हो सके l