तृतीय सिख गुरु अमरदास जी ने बासठ वर्ष की उम्र तक कोई गुरु नहीं किया l उन्हें जब यह ज्ञात हुआ कि गुरु के बिना ज्ञान नहीं होता तो उन्होंने गुरु अंगद देव जी से दीक्षा ली l वे बड़े भोर उठकर तीन कोस दूर नदी से गुरु के स्नानार्थ जल ले आते l एक अँधेरी रात में वे जल लेकर लौट रहे थे तो रास्ते में जुलाहे की खड्डी से उनका पाँव टकरा गया और वे गिर पड़े l जुलाहा जाग उठा और पत्नी से बोलै --- " देख तो कौन गिर पड़ा खड्डी में ? "
जुलाहिन ने कहा ---- " अरे कौन होगा , वही अनाथ अमरु जो आधी रात में गुरु की खिदमत के लिए उठ जाता है l " प्रात:काल गुरु अंगद देव जी ने यह वार्ता सुनी l उन्होंने सिखों के दरबार में रात की यह घटना बताई और अमरदास जी को गले लगाकर बोले ---- " यह अमरु अनाथ नहीं है , बल्कि सिखों का स्वामी है l सेवा धर्म का पालन करने के कारण यह गुरु गद्दी का अधिकारी है l "
जिस स्थान पर गुरु अमरदास ठोकर खाकर गिरे थे , वहां आज भी विशाल गुरुद्वारा उनकी निष्ठा का यश सुनाता हुआ खड़ा है l
जुलाहिन ने कहा ---- " अरे कौन होगा , वही अनाथ अमरु जो आधी रात में गुरु की खिदमत के लिए उठ जाता है l " प्रात:काल गुरु अंगद देव जी ने यह वार्ता सुनी l उन्होंने सिखों के दरबार में रात की यह घटना बताई और अमरदास जी को गले लगाकर बोले ---- " यह अमरु अनाथ नहीं है , बल्कि सिखों का स्वामी है l सेवा धर्म का पालन करने के कारण यह गुरु गद्दी का अधिकारी है l "
जिस स्थान पर गुरु अमरदास ठोकर खाकर गिरे थे , वहां आज भी विशाल गुरुद्वारा उनकी निष्ठा का यश सुनाता हुआ खड़ा है l