मधुसूदन सरस्वती भारत के ऐसे प्रकांड पंडितों में गिने जाते हैं , जिनने काशीधाम में बैठकर सारी विश्व - वसुधा को अपने ज्ञान और भक्ति से प्रभावित किया l अपने गुरु विश्वेश्वर सरस्वती के आदेश पर यमुना तट पर आसन जमाया l इसी बीच एक अलौकिक घटना घटी l सम्राट अकबर की राजमहिषी शूल रोग से बहुत त्रस्त थीं l एक रात उनने स्वप्न में देखा कि यमुना किनारे एक संन्यासी तपस्या कर रहे हैं और उनकी औषधि मिलते ही वे स्वस्थ हो गईं l उनने सम्राट को बताया l अकबर ने पता लगाया l समाचार सही था l एक तरुण तपस्वी चारों ओर से बालू से ढका तप कर रहा था l राजमहिषी वहां गईं और अपने रोग के बारे में तरुण तपस्वी मधुसूदन सरस्वती को बताया l वे बोले ----- " माँ , तुम घर जाओ , तुम शीघ्र ही रोग मुक्त हो जाओगी l " ऐसा ही हुआ l भेंट में मिली दौलत उन्होंने स्वीकार नहीं की l इसके बदले संन्यासियों की रक्षा करने की बात कही l इसके बाद नागा संन्यासियों ने आत्मरक्षा का प्रशिक्षण मधुसूदन के मार्गदर्शन में लिया और शासन ने भी उनकी रक्षा की l
3 November 2020
WISDOM ----- शक्तियों का सदुपयोग जरुरी है
पुराणों में एक कथा है --- श्रुतायुध के पास शंकर जी के वरदान से प्राप्त एक अमोघ गदा थी l उसके तप से प्रसन्न होकर भगवान ने यह गदा उसे इस शर्त पर दी थी कि वह उसका अनीतिपूर्वक प्रयोग न करे , यदि वह ऐसा करेगा तो वह लौटकर उसी का विनाश कर देगी l महाभारत युद्ध में श्रुतायुध को अर्जुन से लड़ना पड़ा l युद्ध प्रबल वेग से होने लगा और दोनों ही अपना रणकौशल दिखाने लगे l सारथी का कार्य करते हुए भगवान कृष्ण किसी बात पर हँस पड़े l श्रुतायुध को लगा कि वे उसकी कुरूपता पर हँस रहे हैं l उसने आवेश में आकर अपनी अमोघ गदा श्रीकृष्ण पर फेंक चलाई l उसे यह भी भान न रहा कि उसके साथ क्या शर्त जुड़ी हुई है l गदा कृष्ण तक न पहुंची और बीच से ही वापस लौटकर श्रुतायुध पर गिर पड़ी l उसका शरीर क्षत - विक्षत होकर भूमि पर गिर पड़ा l धृतराष्ट्र को दिव्य दृष्टि से देखा हुआ यह समाचार सुनाते हुए संजय बोले -- ' राजन ! मनुष्य को समस्त शक्तियां श्रुतायुध की गदा की तरह सद्प्रयोग के लिए मिली हैं , जो उन्हें अनीतिपूर्वक प्रयोग करते हैं , वे अपने पाप से उलटे ही आहत होकर इसी तरह विनाश को प्राप्त होते हैं l