पं . श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं --- ' मानव जीवन काल और कर्म का संयोग है l हम सब को जो जीवन मिला है , वह काल का सुनिश्चित खंड है l इसी काल खंड में हमें कर्म करने हैं और भोगने हैं l काल का जो वर्तमान खंड है उसमें हम कर्म करने के लिए स्वतंत्र हैं l इस अवधि में हम जो भी कर्म करते हैं उनका प्रभाव केवल वर्तमान काल तक ही सीमित नहीं रहता , वे हमारे भूतकाल और भविष्य को भी प्रभावित करते हैं l यदि भूतकाल में हमसे कुछ गलतियाँ हो गईं , कुछ अपराध हो गए तो वर्तमान के शुभ कर्मों से उनका प्रायश्चित और परिमार्जन किया जा सकता है l और हमारे वर्तमान के ये शुभ कर्म हमारे उज्ज्वल भविष्य का निर्माण करने में भी समर्थ हैं l ' आचार्य श्री आगे लिखते हैं ---- जो जीवन के इस सच से सुपरिचित हैं , वे जीवन के प्रत्येक क्षण का सदुपयोग करते हैं और शुभ कर्मों के संपादन में संलग्न रहते हैं लेकिन जो अशुभ कर्मों की डगर पर चल पड़ता है , उसके लिए आदिशक्ति के महाकाली स्वरुप में विनाश प्रकट हो जाता है l " दुर्योधन आदि कौरवों ने सारा जीवन छल , कपट , षड्यंत्र किया , वे फरेबी , झूठे व अहंकारी थे l उनके जीवन का उदेश्य अपने को स्थापित करना और दूसरों को परेशान करना था l वे घोर अधर्मी थे इसलिए महाभारत के युद्ध में महा पराक्रमी भीष्म , द्रोणाचार्य और कर्ण जैसे महारथी भी दुर्योधन को विनाश की नियति से उबार नहीं सके , कौरव वंश का अंत हो गया l इसलिए हमें इस सत्य को स्वीकार करना चाहिए कि हमारे मन के तार ईश्वर से जुड़े हैं , हमारे हर कर्म पर उनकी नजर है l ईश्वर केवल हमारे कर्मों को ही नहीं जानते बल्कि हमारे मन में क्या चल रहा है , हमारी भावना क्या है , हम क्या सोच रहे हैं , इन सब की हर पल की खबर ईश्वर को है l
30 December 2022
29 December 2022
WISDOM ----
लघु -कथा --- एक बार एक राजा ने मंत्री ने प्रश्न किया कि , क्या गृहस्थ में रहकर भी ईश्वर को प्राप्त किया जा सकता है ? मंत्री ने कहा --हाँ ऐसा संभव है लेकिन इस प्रश्न का उत्तर समझकर , सही तरीके से एक महात्मा दे सकते हैं जो गोदावरी नदी के पास एक घने वन में रहते हैं l राजा अपने प्रश्न का उत्तर पाने के लिए दूसरे दिन मंत्री को साथ लेकर महात्मा से मिलने चल दिए ल दो -चार कदम चलकर मंत्री ने राजा से कहा --- " महाराज ! ऐसा नियम है कि जो महात्मा से मिलने जाता है , वह रास्ते में चलते हुए कीड़े -मकोड़ों को बचाता चलता है l यदि एक भी कीड़ा पांव से कुचल जाए तो महात्मा जी श्राप दे देते हैं l राजा ने मंत्री की बात स्वीकार कर ली और खूब ध्यानपूर्वक आगे की जमीन देख -देखकर पांव रखने लगे l इस प्रकार सावधानी पूर्वक चलते हुए वे महात्मा जी के पास पहुंचे l महात्मा ने दोनों को सम्मान पूर्वक बैठाया और राजा से पूछा ---l राजन ! आपने रास्ते में क्या -क्या देखा l राजा ने कहा --- भगवान ! मैं तो आपके श्राप के डर से रास्ते भर कीड़े - मकोड़ों के देखता और उन्हें बचाता आया l इसलिए मनेर ध्यान दूसरी ओर गया ही नहीं l रास्ते के द्रश्यों के बारे में मुझे कुछ मालूम नहीं l " महात्मा ने कहा --- " यही तुम्हारे प्रश्न का उत्तर है l जिस तरह मेरे श्राप से डरते हुए तुम यहाँ तक आए , उसी तरह ईश्वर के दंड से डरना चाहिए l कीड़ों को बचाते हुए जैसे चले , उसी प्रकार दुष्कर्मों से बचते चलना चाहिए l रास्ते में अनेक द्रश्यों के होते हुए भी वे दिखाई न पड़ें l उनके आकर्षण में उलझो नहीं l जिस सावधानी से तुम मेरे पास आए हो उसी सावधानी के साथ जीवन क्रम चलाओ तो गृहस्थ में रहते हुए भी ईश्वर को प्राप्त कर सकते हो l " राजा को अपने प्रश्न का उत्तर मिल गया और उसने महात्मा जी के बताए मार्ग पर चलने का प्रयास शुरू किया l
26 December 2022
WISDOM ---
जब संसार में पाप बहुत बढ़ जाता है और उससे भी बढ़कर जब गलत कार्य करने वालों को समाज मान्यता देता है , उनको सम्मान देता है , उनसे संरक्षण प्राप्त करता है तब प्रकृति न्याय करती है l प्राकृतिक प्रकोप , आपदाएं , भूकंप , तूफान , महामारी आदि के विज्ञानं कितने भी कारण बताए लेकिन ये प्रकृति द्वारा दिया गया सामूहिक दंड विधान है l इसलिए हमारे ऋषियों ने सत्कर्म करने पर जोर दिया है l श्रेष्ठ कर्मों से , मन्त्र -जप आदि करने से प्रकृति को पोषण मिलता है और सत्कर्म ढाल बनकर व्यक्ति की रक्षा करते हैं l
WISDOM
लघु -कथा --- युवराज भद्र्बाहू अत्यंत सुन्दर थे , उन्हें इस सुन्दरता का अभिमान भी था l एक बार वे मंत्री पुत्र सुकेश के साथ भ्रमण पर निकले l एक स्थान पर शवदाह हो रहा था l राजकुमार ने पूछा --- " यह क्या हो रहा है ? " सुकेश ने कहा --- " यहाँ मृत व्यक्ति का डाह संस्कार हो रहा है l " राजकुमार ने कहा --- " अवश्य ही वह कुरूप होगा l " सुकेश ने कहा --- 'नहीं , मरने पर पोरात्येक व्यक्ति का शरीर सड़ने -गलने लगता है , इसलिए उसे जला देना पड़ता है l ' यह सुनकर भद्रबाहु का सुन्दरता का दर्प चूर -चूर हो गया और वह उदास रहने लगे l राजा और राजगुरु ने उनकी उदासी दूर करने की बहुत कोशिश की किन्तु कोई सफलता हाथ न लगी l राजगुरु युवराज को महा आचार्य के पास ले गए ल महाचार्य ने युवराज से कहा --- " तुम इस शरीर के अंतिम परिणाम की चिंता से व्यथित हो ? आज तुम जिस भवन के स्वामी हो उसके जीर्ण होने पर तुम अन्यत्र निवास करोगे l यही नियम शरीर पर भी लागू होता है l यदि यह शरीर जीर्ण हो जाये तो इसमें रहने वाली आत्मा शरीर त्याग देती है और तब इस शरीर को नष्ट कर दिया जाता है l आत्मा के विकास हेतु यह शरीर उपकरण मात्र है उसके लिए चिंतित न हो l श्रेष्ठ और शुभ कर्मों से जीवन को सार्थक करो l "
25 December 2022
WISDOM -----
' मृत्यु अटल सत्य है ' लेकिन संसार का प्रत्येक प्राणी चाहे वह पशु -पक्षी हो , कीट -पतंगे हो , जल , थल और नभ में रहने वाला कोई भी प्राणी हो सबको अपने शरीर से बहुत मोह होता है , कोई मरना नहीं चाहता l मनुष्य तो एक बुद्धिमान प्राणी है , वह चाहे कितना भी बीमार हो , गरीब हो , शरीर सूख गया हो लेकिन कोई मरना नहीं चाहता , सब जीना चाहते हैं l संसार में आकर्षण बहुत है और ' मोह ' है अपने से और अपनों से l पुराण की एक कथा है ----- महाराज प्रद्युम्न का रोग बहुत बढ़ गया , उनका अंत निकट आ गया , सभी वैद्य निराश होकर अपने घर लौट गए l राज परिवार बहुत परेशान था , कैसे भी हो राजा को बचाया जाये l प्रधान सचिव ने परामर्श कर आचार्य पुरन्ध्र को बुलवाया l आचार्य ने महाराज का पूर्ण परिक्षण किया और कहा कि अब उनमे जीवन के कोई लक्ष्ण शेष नहीं हैं l लेकिन राज परिवार हठ करने लगा कि आप तो सिद्ध पुरुष हैं , कैसे भी महाराज को बचाइए ! आचार्य ने बहुत समझाया कि आज बच भी गए तो यह जर्जर शरीर कब तक चलेगा , एक दिन तो जाना ही है l फिर यह शरीर छूता तो एक नया शरीर मिलेगा l आचार्य के उपदेश को किसी ने नहीं सुना , समझा ! तब आचार्य ने कहा --- हाँ , एक उपाय है , प्रधान सचिव , आप प्रयत्न करें तो महाराज के प्राण अभी बच सकते हैं l ' उन्होंने कहा --- आगया दें , हम महाराज के लिए सब कुछ करने को तैयार हैं l ' तब आचार्य ने कहा ---- " महाराज को अभी मर जाने दो l थोड़ी देर में ही राजोद्यान में आम का एक वृक्ष है , ये उसमे काष्ठ -कीट के रूप में जन्म लेंगे l आप उसे जा कर मार देना तो महाराज पुन: जीवित हो उठेंगे l " सब लोग बहुत प्रसन्न हुए और आचार्य के गुण गाने लगे l इस बीच महाराज को प्राणांत हो गया l शव को ढककर प्रधान सचिव राजोद्यान पहुंचे l थोड़ी ही देर में आचार्य ने जैसा बताया था वैसा ही एक कष्ट कीड़ा दिखाई दिया , प्रधान सचिव उसे पकड़ने के लिए पेड़ पर चढ़े l लेकिन कीड़ा अपनी जान बचाने के लिए एक डाल से दूसरी पर जाता रहा और फिर इस पेड़ से दुसरे पेड़ पर छलांग लगा ली l प्रधान ने बहुत पीछा किया लेकिन पकड़ न सके , निराश हो गए l आचार्य ने कहा --- कीड़े को अपने शरीर से इतना मोह है कि वह इसे त्यागकर राजा बनना नहीं चाहता l आचार्य ने अपनी दिव्य शक्ति से उसके मन की बात पता की और कहा कि यह कीड़ा अपने शरीर में प्रसन्न है , उसे इससे मोह है , उसे अपने कीट समुदाय में भी सब सुख हैं , भोग विलास सब है , वह इसे त्यागना नहीं चाहता इसलिए जान बचाने के लिए भाग रहा है l आचार्य ने कहा --इसी तरह हम भी एक अच्छे और नए जीवन के लिए भी डरते हैं , शरीर को त्यागना नहीं चाहते है l आचार्य की बात सुनकर सबका मोह टूटा और मृत्यु को अटल मानकर वे दाह -संस्कार की तैयारी में जुट गए l
24 December 2022
WISDOM -----
पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं --- " हिरन , हाथी , पतंगा , मछली और भौंरा ये अपने -अपने स्वाभाव के कारण पांच विषयों में से केवल एक से आसक्त होने के कारण मृत्यु को प्राप्त होते हैं , तो इन पांच विषयों में जकड़ा हुआ असंयमी पुरुष कैसे बच सकता है l असंयमी की दुर्गति निश्चित है l " श्रीमद्भगवद्गीता में भगवान कहते हैं ---- " जैसे जल में चलने वाली नाव को वायु हर लेती है , वैसे ही विषयों में विचरती हुई इन्द्रियों में से मन जिस इन्द्रिय के साथ रहता है , वह एक ही इंद्रिय इस आयुक्त पुरुष की बुद्धि को हर लेती है l ' आचार्य श्री , लिखते हैं --- इसका अर्थ यह हुआ कि मनुष्य को बहुत सावधान रहना चाहिए l एक ही इंद्रिय काफी है , जो मनुष्य को पतन की ओर ले जा सकती है l द्वापर युग में एक असुर था , जिसका नाम था शम्बरासुर l शम्बरासुर ने भगवान श्रीकृष्ण के बड़े पुत्र प्रद्युम्न जो कामदेव के अवतार थे , उनका हरण कर लिया था l रति भी उनके यहाँ कैद थी l शंबरासुर पाककला में निपुण स्त्रियों का ही अधिकतर हरण करता था l उसे खाने का बड़ा शौक था l वह चाहता था कि उसकी पाकशाला में बढ़िया स्वादिष्ट खाना बने और उसे खिलाया जाये l वह किसी स्त्री की खूबसूरती को नहीं देखता था और न ही उन्हें हाथ लगाता था l उस स्त्री का पाक कला में पारंगत होना जरुरी था l प्रद्युम्न ने उसे मारकर अगणित स्त्रियों को मुक्त किया l मात्र एक इंद्रिय ही उस असुर के पतन का कारण बनी --- सुस्वादु आहार का सेवन , दिन -रात उसी का चिन्तन l प्रत्येक मनुष्य को स्वयं अपना ही परीक्षण करना चाहिए l आचार्य जी लिखते हैं ---' अपनी दुष्प्रवृतियों को नियंत्रित कर लेना ही साधना है l '
22 December 2022
WISDOM ----
जब संसार में धर्म एक व्यवसाय बन जाता है तब सामान्य जन -जीवन दुःख , तनाव , चिंता , बीमारी , महामारी जैसी समस्याओं से चारों ओर से घिर जाता है l धर्म के नाम पर लड़ाई -झगडे करते रहने से बुद्धि कुंद हो जाती है l जीवन के और भी बहुत से पहलू हैं जिनमे थोड़ा -बहुत सुधार कर के स्वस्थ जीवन जिया जा सकता है l पढना - लिखना , डिग्री होना एक अलग बात है , लेकिन विवेक होना बड़ी बात है और विवेकहीन व्यक्ति भेड़चाल चलता है l धर्म के संबंध में एक दुःखद बात यह भी है कि धर्म केवल पाखंड बन गया है l धर्म का असली मर्म नैतिकता , मानवीयता , सत्य , ईमानदारी , प्रेम , करुणा आदि सद्गुणों को लोग भूल गए हैं इसीलिए संसार में युद्ध , आतंक , लूट , हत्या , आत्महत्या , विवाद आदि बढ़ गए हैं l ------ कांचीपुरम में किसी ने विनोबा जी से कहा कि यहाँ एक ऐसा समुदाय है , जो ईश्वर को नहीं मानता l वे कहने लगे --- " इसमें कौन सी नई बात है ! ऐसे आदमी सारे देश में हैं , सारी दुनिया में हैं l हमें इसकी कोई परवाह नहीं करनी चाहिए , क्योंकि वे लोग भगवान को भले ही नहीं माने, भगवान तो उनको मानता है l बच्चा माँ को भूल जाये तो कोई बात नहीं l माँ बच्चे को भूल जाये , तो बड़ी बात है l आगे वे कहते हैं कि --- " जो यह कहते हैं कि हम भगवान को नहीं मानते , वे यह तो कहते हैं कि हम सज्जनता को मानते हैं , मानवता को मानते हैं l हमारे लिए तो इतना ही बहुत है l मानवता को मानना और ईश्वर को मानना हमारी द्रष्टि में एक ही बात है l जो भगवान को मानते हैं , देखना चाहिए कि वे मानवता , करुणा , दया , सेवा में कितना विश्वास रखते हैं l मूल्यांकन इसी आधार पर होना चाहिए l विज्ञान ने इतनी तरक्की कर ली कि अब मनुष्य स्वयं को ही भगवान समझने लगा है , चाहे जिस आकार -प्रकार की सब्जी , फल उगा ले , चिकित्सा के आधुनिक तरीकों से सबको स्वस्थ कर दे लेकिन ऐसा समझना मनुष्य की सबसे बड़ी भूल है l भोजन सामग्री , मिटटी सब रासायनिक पदार्थों से प्रदूषित हो गई l अब किसी की सामान्य मृत्यु हो , यह तो सुनने में नहीं आता l जो भी मरता है वह किसी न किसी बीमारी या हादसे से ही मृत्यु को प्राप्त होता है l यह चिन्तन का विषय है कि यह कैसी उपलब्धि है ?
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21 December 2022
WISDOM ----
ज्योतिर्मठ के शंकराचार्य के शिष्य कृष्ण बोधाश्रम 120 वर्ष जीवित रहे l एक बार वे प्रवास पर थे l उस इलाके में लगातार चार साल पानी नहीं गिरा था l कुएं , तालाबों का पानी सूख गया था l सभी आए और कहा --- महाराज जी ! उपाय बताएं l " वे बोले --- पुण्य होंगे तो भगवान प्रसन्न होंगे l " लोगों ने पूछा --- 'क्या पुण्य करें ? तो वे बोले ---" सामने तालाब है , उसमें थोडा ही पानी है इस कारण मछलियाँ मर रही हैं l " लोग बोले --- " हमारे लिए पानी नहीं हैं है , मछलियों को पानी कहाँ से दे. l " महाराज ने कहा --- " कहीं से भी लाओ और तालाब में डालो l सभी ने तालाब में पानी डालना शुरू किया l तीसरे दिन बादल आए और महीने भर तक मूसलाधार पानी बरसा l
20 December 2022
WISDOM ----
एक बादशाह अपने गुलाम के साथ नाव में यात्रा कर रहा था l गुलाम ने कभी नौका में सफ़र नहीं किया था , इसलिए उसे कुछ अटपटा लग रहा था वह उन्मत्त बन्दर की भांति नाव में उछल -कूद मचा रहा था l इससे सभी लोग परेशान हो रहे थे l मल्लाह ने उसे कई बार समझाया कि इस तरह नाव डूब सकती है लेकिन उसकी समझ में कुछ न आया नाव में एक दार्शनिक भी था , उसने बादशाह से कहा --" जहाँपनाह , आप इजाजत दें तो मैं इस गुलाम को भीगी बिल्ली बना सकता हूँ l " बादशाह ने तत्काल अनुमति दे दी l दार्शनिक ने दो यात्रियों का सहारा लिया और उस गुलाम को नाव से उठाकर नदी में फेंक दिया l गुलाम को तैरना नहीं आता था , जब डूबने लगा तो उसने नाव के खूंटे को कसकर पकड़ लिया l कुछ देर बाद दार्शनिक ने उसे खींचकर नाव में चढ़ा लिया l वह गुलाम अब कोने में जाकर ऐसे चुपचाप बैठ गया मानो भीगी बिल्ली हो l नाव के यात्रियों और बादशाह को भी गुलाम के इस संयमित व्यवहार पर आश्चर्य हुआ l बादशाह ने दार्शनिक से पूछा --- 'यह पहले उन्मत्त बन्दर की भांति हरकतें कर रहा था , अब इतना सयाना बनकर कैसे बैठा है l दार्शनिक ने जवाब दिया --- " स्वयं आपत्ति और दुःख का स्वाद चखे बिना किसी को पराये दुःख और विपत्ति का एहसास नहीं होता l इस गुलाम को जब मैंने पानी में फेंक दिया और इसके मुंह में पानी भरने लगा तब इसे पता चला कि नाव डूब गई तो सब यात्रियों की क्या हालत होगी l
WISDOM
दूध ने पानी से कहा --- बन्धु, किसी मित्र के बिना मेरा ह्रदय सूना है l आओ मैं तुम्हे ह्रदय से लगा लेना चाहता हूँ l पानी ने कहा --- भाई , तुम्हारी बात तो मुझे पसंद है , पर यकीन नहीं होता कि अग्नि परीक्षा के समय भी तुम मुझसे अलग न होगे l दूध ने वचन दिया --ऐसा ही होगा और दोनों में मित्रता हो गई , ऐसी कि उनके पृथक स्वरुप को पहचानना कठिन हो गया l अग्नि हर रोज परीक्षा लेती है और पानी को जलाती है , पर दूध है कि वह हर बार मित्र की रक्षा के लिए अपने आप को जला देता है l दूध और पानी जैसा मेल ही मनुष्य के पारिवारिक और सामाजिक जीवन को सफल बनाता है l
19 December 2022
WISDOM -----
पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं ---- ' संकीर्ण स्वार्थ , वासना और अहं से युक्त अनैतिक जीवन भय का प्रमुख कारण है l ' पद -प्रतिष्ठा , धन , वैभव जिनके पास है वे सबसे ज्यादा भयभीत हैं l मनुष्य का मन एक दर्पण है l बहुत कुछ हासिल करने के लिए वह जो तरीके अपनाता है या जाने -अनजाने उससे जो भूलें हो जाती हैं उन्हें वह संसार से चाहे छुपा ले , लेकिन उसकी आत्मा उन गलतियों के लिए उसे सदा कचोटती रहती है l यह भय उसका अपने आप से है कि जैसा उसने किया , कहीं वैसा उसके साथ न हो जाये l प्रकृति का न्याय है l एक और भय है --वह है ---- खोने का भय l पद , प्रतिष्ठा , धन - वैभव आदि को अपने पास बनाये रखने के लिए व्यक्ति न जाने क्या -क्या यत्न करता है l इन सबसे बढ़कर है --मृत्यु का भय l इस भय का कोई अर्थ नहीं है क्योंकि यह तो निश्चित है , ईश्वर ने सबको गिनकर श्वास दी हैं , इन्हें कम या अधिक नहीं किया जा सकता l एक कथा है ---- एक राजा को सदा यह भय सताता रहता था कि कहीं कोई शत्रु उस पर हमला न कर दे l इसलिए उसने किले के चारों ओर बड़ी -बड़ी दीवारों का निर्माण कराया , जिनके बीच में गहरी खाइयाँ थीं l सुरक्षा का घेरा इतना मजबूत बनाया कि कोई शत्रु उसे मारने के लिए प्रवेश न कर सके l अपनी उपलब्धि पर कुलगुरु की स्वीकृति प्राप्त करने के लिए उसने उनको महल में आमंत्रित किया l कुलगुरु ने पूरा महल देखा , फिर राजा से बोले ---- " राजन ! यह तो ठीक है कि अब इस महल में कोई शत्रु प्रवेश नहीं कर सकता , परन्तु मृत्यु को आने -जाने के लिए द्वार की आवश्यकता नहीं होती l उसका आना रोकने के लिए तुमने क्या व्यवस्था की है ? निरंतर सत्कर्म करो और सन्मार्ग पर चलो l यही सत्कर्म ढाल बनकर व्यक्ति की रक्षा करते हैं l " अब राजा को अपनी भूल समझ में आई कि बाहर के उपाय तो मात्र मन की सांत्वना के लिए हैं l
WISDOM -----
संसार में अनेक जाति , अनेक धर्म और अनेक संस्कृतियाँ हैं और आज सभी अपने अस्तित्व के लिए प्रयत्नशील हैं l संसार की अनेक सभ्यता , संस्कृति समय के साथ काल के गाल में समां गईं लेकिन भारतीय संस्कृति अभी तक जीवित है l इसे नष्ट करने के अनेकों प्रयास किए गए लेकिन हमारे पास नैतिक बल था , श्रेष्ठ चरित्र था इसलिए यह संस्कृति जीवित रही लेकिन अब प्रचार -प्रसार के साधनों के कारण आसुरी तत्वों को इस देश के चरित्र पर आक्रमण करने का सुनहरा मौका मिल गया l ये आसुरी तत्व संसार में कहीं भी हो सकते हैं जो अच्छाई को बर्दाश्त नहीं करते और मनुष्य की मानसिक कमजोरियों जैसे लोभ , लालच , तृष्णा , महत्वकांक्षा, कामना आदि का सहारा लेकर उसके नैतिक बल को कम कर देते हैं l जागरूक रहकर ही अस्तित्व की रक्षा संभव है , भगवान बार -बार अवतार नहीं लेते l
18 December 2022
WISDOM ----
पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं ---- " संवेदना की गहरी नींव में संबंधों का भव्य महल खड़ा होता है l मानव जीवन में पनपने वाला संबंध भावनाओं के तल पर उपजता है l भावनाओं की परिष्कृति एवं स्थिरता संबंधों को स्वस्थ एवं सुद्रढ़ बनाती है l यदि संबंध अच्छे होते हैं तो जीवन की सुन्दरता , खूबसूरती बढ़ जाती है और यदि संबंधों में कटुता पनपती है तो जीवन नरकतुल्य और अर्थहीन लगता है l " आचार्य श्री लिखते हैं --- 'आज भावनाओं की सार्थकता खो गई है , आज का सबसे बड़ा दुर्भिक्ष भावनाओं के क्षेत्र का है l इसी के कारण जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में समस्याएं उत्पन्न हुई हैं l " आज की संस्कृति भोग प्रधान है l मनुष्य का लालच , कामनाएं , वासना , तृष्णा , महत्वाकांक्षा आदि मानसिक विकार अपने चरम पर हैं जिसके नीचे भावनाएं कुचल गई हैं l भौतिक प्रगति तो बहुत हुई लेकिन चेतना के स्तर पर मनुष्य पशु और कहीं तो नर पिशाच है l भावनाएं जाति , धर्म , प्रेम विवाह , अरेंज मैरिज , अंतर्जातीय विवाह आदि के कारण परिष्कृत या विकृत नहीं होतीं l माता -पिता बहुत सोच समझकर अपनी पुत्री का विवाह करते हैं , तब भी घरेलु हिंसा , उत्पीड़न , दहेज़ हत्या , चारित्रिक कमियां आदि अनेक जटिल समस्याएं संतान के जीवन में आती हैं l भावनाओं का सीधा संबंध विचारों से है l आज सम्पूर्ण समाज का वातावरण जहरीला हो चुका है l फिल्मों के माध्यम से जो अश्लीलता और अपराध के नए -नए तरीके समाज के सामने आते हैं उससे क्या बच्चे और क्या वृद्ध सबके विचार विकृत हो गए हैं l प्रौढ़ हों या वृद्ध हों , उन्हें लगता है जीवन कब हाथ से फिसल जाये , कितना सुख और भोग लें l उनमें त्याग की भावना ही नहीं है l बच्चों और युवाओं को दिशा कौन दे l आचार्य श्री लिखते हैं ---- चिन्तन परिक्षेत्र बंजर हो जाने के कारण कार्य भी नागफनी और बबूल जैसे हो रहे हैं l ' समस्या का समाधान भी हमारे ही पास है -- जब हम विदेशियों की नक़ल करने के बजाय अपनी संस्कृति , अपने आचार -विचार , अपना रहन -सहन और शिक्षा , चिकित्सा , कृषि आदि सभी क्षेत्रों में जब हम अपनी संस्कृति , अपनी मिटटी के अनुरूप कार्य करेंगे तभी स्वस्थ और सुन्दर समाज का निर्माण होगा l
16 December 2022
WISDOM -----
हमारे महाकाव्य हमें जीवन जीना सिखाते हैं l महर्षि वाल्मीकिजी ने रामायण की रचना की l वे त्रिकालदर्शी थे , वे जानते थे कि सोने की लंका में रहने वाले रावण के परिवार की जो समस्या है , वह कलियुग में घर -घर में होगी l हम इनका जितना अध्ययन करेंगे , हमें जीवन जीने के विभिन्न सूत्रों का ज्ञान होगा l रामायण का प्रसंग है ---- जब विभीषण ने रावण को समझाया कि माँ सीता स्वयं जगदम्बा है , रावण का यह हठ उचित नहीं है l तब रावण ने भरी सभा में विभीषण को लात मारी , अपमानित किया l फिर विभीषण ने रावण को त्याग दिया और भगवान राम की शरण में आ गया l आज के युग में हम देखते हैं कि भाई -भाई में विवाद है , पारिवारिक विवादों के केस से ही अदालतें भरी हैं , घरेलू हिंसा , उत्पीड़न है , जीवन सुरक्षित नहीं है , अब मनुष्य , मनुष्य से ही भयभीत है l ऐसे में विभीषण का चरित्र हमारी आँखें खोलने के लिए है l यह प्रसंग हमें शिक्षा देता है कि जो अत्याचारी है , अन्यायी है उसे त्याग दो फिर चाहे वह रिश्ते में कोई भी हो l जिस व्यक्ति के पास अपार सम्पदा है , विद्वान् भी है लेकिन वह अत्याचारी है , दूसरे की पत्नी पर कुद्रष्टि रखता है l वन के कष्टों में भी राम -सीता प्रेम से रहते थे , रावण ने उन्हें एक दूसरे से दूर कर दिया , ऐसे अत्याचारी का त्याग करना ही उचित है l आज तो अत्याचार के विभिन्न रूप , विभिन्न तरीके समाज में हैं इसलिए जागरूक रहकर ऐसे रावण को त्याग देना जरुरी है l विभीषण का चरित्र एक बात और सिखाता है कि जब दसों दिशाओं में रावण का अत्याचार है , आतंक है , तब जाएँ तो जाएँ जहाँ ? एकमात्र ईश्वर की शरण में रहो , अपने आत्मविश्वास को जगाओ l जो ईश्वर की शरण में रहेगा उसका राजतिलक होगा और जो अत्याचारी , अन्यायी का साथ देगा उसकी दुर्गति और अंत निश्चित है l सूपर्णखा रावण का आदेश मानकर राम , लक्ष्मण को लुभाने गई तो अपने नाक , कान कटवा बैठी , पापी का साथ देने से दुर्गति हुई l विभीषण का चरित्र हमें सिखाता है कि जागरूक रहकर और समय पर सही निर्णय लेकर हम भविष्य में आने वाली विभिन्न समस्याओं से स्वयं को सुरक्षित कर सकते हैं l
WISDOM----
पं.श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं --- विनम्रता व्यक्ति को ग्रहणशील , संवेदनशील बनाती है l विनम्रता से व्यक्ति का विवेक जाग्रत होता है , वह औचित्य् पूर्ण कार्य कर पाता है l विनम्रता से ही व्यक्ति के अंदर सद्गुणों का समावेश होता है l ' ये सद्गुण ही व्यक्ति को महानता के पथ पर ले जाते हैं l पुराण की एक कथा है ----- किसी समय भीलों की शबर जाति में कृपालु नाम का व्यक्ति था जो ' वृक्ष नमन ' मन्त्र विद्या जानता था l यह मन्त्र उसके अलावा केवल उसके पुत्र को ही पता था l उसकी विद्या में ऐसा प्रभाव था कि खजूर के ऊँचे -ऊँचे वृक्ष भी झुक जाते थे और उनका रस वह सरलता से एकत्र कर लेता था l एक दिन महाभारत के रचयिता महर्षि वेदव्यास ने उसे इस विद्या का प्रयोग करते देख लिया तो उनके मन में इस मन्त्र को जानने की जिज्ञासा हुई l वे कृपालु के नजदीक गए ताकि उससे नम्रता से मन्त्र सीख लें लेकिन कृपालु उन्हें देखकर भाग गया l वे उसके पीछे उसके घर गए तो वह वहां से भी भागने लगा l व्यास जी समझ गए कि कृपालु उन्हें मन्त्र नहीं देना चाहता और सामने आने से कतरा रहा है l इसलिए वह शांत भाव से वापस लौटने लगे l कृपालु के बेटे को उन पर दया आ गई और उसने कुछ कर्मकांड कर के उन्हें वह मन्त्र सिखा दिया l रास्ते में व्यास जी ने नारियल के वृक्ष को लक्ष्य कर के मन्त्र जपा तो वह वृक्ष झुक गया , उन्होंने एक नारियल तोड़ लिया फिर ऐसा मन्त्र जपा कि वह वृक्ष फिर अपनी जगह पर हो जाये l कृपालु जब घर लौटा तो उसके पुत्र ने उसे बताया कि उसने वह मन्त्र उन्हें सिखा दिया l इस पर कृपालु नाराज होकर कहने लगा --- " मूर्ख है तू ! वेदव्यास जी इतने बड़े महापुरुष हैं
13 December 2022
WISDOM
पं . श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं ---" मनुष्य को सदा अपना विवेक जाग्रत रखना चाहिए l दूसरों की नक़ल कर , बिना अपनी बुद्धि लगाए , वैसा ही करने वाला सदा उपहास का पात्र बनता है l " विज्ञानं ने सारी दुनिया को एक मंच पर ला दिया है l इसके फायदे भी हुए हैं लेकिन जहाँ विवेक का इस्तेमाल नहीं हुआ वहां नुकसान भी बहुत हुआ है l भारतीय संस्कृति जो चरित्र और नैतिक मूल्यों पर टिकी थी , उसका ही पतन हो रहा है l बुद्धिमत्ता इसमें है कि हम अपनी पहचान को बनाये रखें और दूसरे का जो श्रेष्ठ है उसे अपनाएं l विवेकहीन नक़ल कर के कहीं के नहीं रह जाते l ---- दो गधे बोझा उठाये चले जा रहे थे l एक की पीठ पर नमक की और दूसरे की पीठ पर रुई की बोरियां लदी थीं l रास्ते में एक नदी पड़ी l नदी के ऊपर रेत की बोरियों का कच्चा पुल बना था l जिस गधे की पीठ पर नमक की बोरी थीं उसका पैर फिसल गया और वह नदी में गिर पड़ा l नदी में गिरते ही नमक पानी में घुल गया और उसका वजन हल्का हो गया l वह यह बात दूसरे गधे को बड़ी प्रसन्नता से बताने लगा l दूसरे गधे ने सोचा कि बढ़िया युक्ति है , ऐसे तो मैं भी अपना भार हलका कर सकता हूँ और उसने बिना सोचे -समझे पानी में छलांग लगा दी किन्तु रुई के पानी सोख लेने के कारण भार कम होने की जगह बहुत बढ़ गया l ' नक़ल में अक्ल की जरुरत होती है l
12 December 2022
WISDOM -----
आचार्य गुरुकुल में शिष्यों को पढ़ा रहे थे l एक शिष्य ने प्रश्न किया --- " गुरूजी ! धन , कुटुंब और धर्म में कौन सच्चा सहायक होता है ? " आचार्य बोले --- " वत्स ! धन वह है , जिसे मनुष्य जीवन भर प्रिय समझता है , लेकिन उसकी मृत्यु के बाद धन उसके साथ एक कदम की भी यात्रा नहीं करता l कुटुंब यथा संभव सहायता तो करता है , परंतु उसका सहयोग भी शरीर रहते तक ही है l मात्र धर्म ही ऐसा है , जो लोक और परलोक दोनों में मनुष्य का साथ देता है और उसे दुर्गति से बचाता है l यद्यपि मनुष्य जीते जी इसकी उपेक्षा करता है , तब भी यही धर्म मनुष्य को चिरस्थायी सुख -शांति प्रदान करता है l " यहाँ धर्म का अर्थ वह धर्म नहीं जिसके नाम पर लोग लड़ते हैं l स्वार्थी तत्वों ने धर्म को अपनी स्वार्थ पूर्ति का जरिया बना लिया इसलिए धर्म ही विकृत हो गया l यदि हमें धर्म को समझना है तो भगवान राम और रावण के युद्ध को देखें एक ओर आसुरी तत्वों का प्रतीक रावण था और दूसरी ओर मर्यादापुरुषोत्तम राम थे l महाभारत में कोई साम्प्रदायिकता नहीं थी , वह अधर्म के नाश और धर्म व न्याय की स्थापना के लिए युद्ध था l जिसमे सत्य ,न्याय और सन्मार्ग पर चलने वाले और सच्चे धर्म के प्रतीक पांडव थे तो दूसरी ओर छल , कपट , षड्यंत्र , अपनों का ही हक छीनना , अहंकार से ग्रस्त अधर्मी कौरव थे l यदि संसार में शांति चाहिए तो रामायण और महाभारत की शिक्षाओं को लोगों को जानना होगा और गीता के व्यवहारिक ज्ञान से जीवन जीने की कला सीखनी होगी l
11 December 2022
WISDOM ----
पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं --- अपने दोष बताने वाले से क्रुद्ध न हों , उसका कारण समझें और उस दोष को दूर करें उस में अपना हित ही है l वे आगे लिखते हैं --- बड़ों की सीख याद रखने वाला अनर्थ से बच जाता है l ' एक कथा है ---- सम्राट वृष मातंग साधुता और शील में अद्वितीय थे लेकिन उन्हें क्रोध बहुत जल्दी आता था l एक बार उनकी परिचारिका ने उनकी सेवा परिचर्या करने से इनकार कर दिया और बोली -- " आपके शरीर से दुर्गन्ध आती है l " सम्राट क्षण भर को क्रोध से उबल पड़े पर तभी उन्हें अपने आचार्य के ये वचन याद आ गए --- " प्रशंसा और निंदा को समभाव से ग्रहण करने वाला ही सच्चा योगी होता है l " अत: वे अपने क्रोध को पी गए और मन में यह निश्चय किया कि यदि शरीर में कोई कमी है तो उसे दूर करेंगे l अपनी निंदा सुनकर हमारे मन में हीन भावना नहीं आनी चाहिए और न ही क्रोधित होना चाहिए l सम्राट ने वैद्यों को बुलाया और दुर्गन्ध का कारण पूछा l शरीर की परीक्षा हुई , पता चला कि उनके दांत में भयंकर रोग हो गया है l यदि एक दो दिन में चिकित्सा नहीं हुई तो वह असाध्य हो जायेगा l समय पर चिकित्सा हुई वे स्वस्थ और दुर्गन्ध रहित हो गए l
WISDOM
एक बार सम्राट अशोक के शासनकाल में अकाल पड़ा l जनता भूख और प्यास से त्रस्त हो उठी l राजा ने तत्काल राज्य में अन्न के भंडार खुलवा दिए l सुबह से लेने वालों का ताँता लगा रहता l एक दिन संध्या हो गई l जब सब लेने वाले निपट गए तो एक बहुत कमजोर बूढ़ा आया और उसने अन्न माँगा l बाँटने वाले तब तक थक चुके थे , उन्होंने उसे डांटकर कहा --' कल आना , अब खैरात बंद हो गई l ' तभी एक ह्रष्टपुष्ट नवयुवक आया और बाँटने वालों से कहा --- " बेचारा बूढ़ा है , शरीर से दुर्बल होने के कारण सबसे पीछे रह गया l इसे अन्न दे दो l " उसकी वाणी का प्रभाव था कि बाँटने वालों ने उसे अन्न दे दिया l उस नवयुवक की सहायता से उसने गठरी बाँध ली l लेकिन उठे कैसे ? तब वही नवयुवक बोला --- 'लाओ , मैं ही पहुंचा देता हूँ l ' गठरी उठाकर चलने लगा l बूढ़े का घर थोड़ी दूर पर ही रह गया था , तभी एक सैनिक टुकड़ी वहां से निकली l टुकड़ी के नायक ने घोड़े पर से उतरकर गठरी ले जाने वाले का फौजी अभिवादन किया l नवयुवक ने संकेत से आगे कुछ बोलने से मना कर दिया l बूढ़े की समझ में कुछ -कुछ आ गया , वह वहीँ खड़ा हो गया और बोला -- " आप कौन हैं , सच -सच बताइए ? " वह व्यक्ति बोला --- " मैं एक नौजवान हूँ और तुम वृद्ध हो दुर्बल हो l बस , इससे अधिक परिचय व्यर्थ है l चलो बताओ तुम्हारा घर किधर है ? ' अब तक बूढ़ा पूरी तरह से पहचान चुका था , वह उनके पैरों पर गिर पड़ा और क्षमा मांगते हुए बोला -- 'प्रजापालक ! आप सच्चे अर्थों में प्रजापालक हैं l "
9 December 2022
WISDOM -----
कर्म करने का व्यक्ति को अधिकार है लेकिन वह उसके परिणाम से बच नहीं सकता l महाभारत का प्रसंग है ---- दुर्योधन के कहने पर दु:शासन ने द्रोपदी का चीर हरण किया l स्वयं भगवान कृष्ण ने द्रोपदी के चीर को अनंत कर दिया l दु:शासन में दस हजार हाथियों का बल था , वह थक गया , पस्त होकर गिर पड़ा , अपने उद्देश्य में वह तनिक भी सफल नहीं हो पाया l भगवान चाहते तो उसी समय दुर्योधन और दु:शासन का अपने सुदर्शन चक्र से अंत कर देते लेकिन यहाँ ईश्वर ने बताया कि पापियों को दंड तो अवश्य मिलता है , यह कब मिलेगा इसका ईश्वरीय विधान के अनुसार समय निश्चित हैं l द्रोपदी जब भी भगवान को अपने खुले केश दिखाती और कृष्ण जी से कहती -- हे माधव -! वह वक्त कब आएगा जब मैं अपने इन खुले केशों को बांधुंगी l तब कृष्ण जी यही कहते कि केवल दुर्योधन और दु:शासन के अंत के लिए ही अवतार नहीं लिया , अवतार का उद्देश्य है --अधर्म का अंत और धर्म की स्थापना l दैवीय विधान के अनुसार ही सबको अपने कर्मों का फल मिलेगा l पापियों को फलते -फूलते देख सामान्य जन का कर्म विधान से विश्वास हट जाता है और वह भी पाप और अनीति की राह पर चलने लगता है l संसार में ऐसे असंख्य उदाहरण देखकर हमें कर्म फल विधान पर विश्वास रखकर सदा सत्कर्म करने चाहिए l
8 December 2022
WISDOM
लघु -कथा ---- एक ऊंट बड़ा आलसी था l चरने के लिए जंगल जाना और परिश्रम करना उसे बहुत बुरा लगता था l एक बार महादेव और पार्वती वहां से निकले तो ऊंट उनके सामने गरदन झुककर खड़ा हो गया l महादेव जी ने कहा --- 'कहो क्या बात है , क्या चाहते हो ? ' ऊंट ने कहा --. भगवन ! यदि आप प्रसन्न हों तो मेरी गरदन एक योजन लम्बी कर दीजिये जिससे मैं एक ही स्थान पर बैठा -बैठा दूर तक के वृक्षों को चर लिया करूँ , इधर -उधर जाने का कष्ट मुझे न उठाना पड़े l ' महादेव जी ऊंट पर बहुत झल्लाए और उसे समझाया ---" आलस्य का पोषण करने वाला वरदान मांगता है , यह तो तेरे नाश का कारण बन जायेगा l उचित परिश्रम कर के कमाई गई वस्तुएं ही सुखदायक होती हैं l " लेकिन ऊंट ने कुछ भी नहीं समझा , वह गरदन झुकाए एक पैर से खड़ा रहा l पार्वती जी को उस पर दया आई , उन्होंने कहा --आप हजारों प्राणियों को नित्य ही वरदान देते हो , इसे भी दे दीजिए l महादेव जी ने देखा कि यह ऊंट बड़ा जिद्दी है , कुछ समझना नहीं चाहता तो उन्होंने भी कह दिया ' तथास्तु ' l अब ऊंट की गर्दन एक योजन लम्बी हो गई और चैन से उसका समय काटने लगा l लेकिन समय जाते देर नहीं लगती l वर्षा शुरू हुई , कहाँ तक वह पानी में भीगता सो एक लम्बी गुफा में उसने अपनी लम्बी गर्दन को किसी तरह टिका दिया l उसी समय एक श्रगाल भी भीगता हुआ उस गुफा में आ गया l वह भूखा था , उसने समझा यह मांस का इतना बड़ा लट्ठ पड़ा है l वह बहुत खुश हुआ और मजे से उस मान को खाने लगा l एक योजन लम्बी गर्दन को इतनी आसानी से गुफा से निकालना संभव नहीं था , ऊंट वैसे ही आलसी था जब तक प्रयास करता सियार ने उसकी गरदन को फाड़कर दो टुकड़े कर दिए l ऊंट मर गया और सियार को बहुत दिनों का भोजन मिल गया l आलसी और अकर्मण्य व्यक्ति बिना परिश्रम किए बड़ी सम्पदाएँ चाहते हैं l यदि किसी प्रकार वे उन्हें मिल भी जाएँ तो अंत में वे दुःख दायक ही होती हैं l
7 December 2022
WISDOM ----
पं . श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं --- ' सामान्य जन प्रेरणा तभी लेते हैं , जब आदर्शों की चर्चा करने वाले , नीतिवेत्ता , नियम बनाने वाले स्वयं भी उनका पालन करें " आज संसार में एक -से -बढ़कर -एक उपदेश देने वाले , प्रवचन करने वाले हैं , जिन्हें सुनने के लिए हजारों , लाखों की भीड़ तो इकट्ठी हो जाती है लेकिन उनके उपदेशों का असर किसी पर भी नहीं होता l इसका कारण यही है कि उनमे से कुछ को छोड़ कर शेष सब उपदेश तो अच्छा देते हैं लेकिन उनकी असलियत सिर्फ ईश्वर ही जानते हैं , उनके उपदेश और आचरण में बहुत अंतर है l यही कारण है कि संसार में इतनी अशांति , इतना तनाव है l संसार को सही राह दिखाने की जिम्मेदारी ईश्वर ने जिनको सौंपी है उनकी राह ---- ? एक इतिहास का प्रसंग है ------ सम्राट बिंबसार का शासनकाल था l एक साल लू बहुत चली , प्रजा के झोंपड़े फूस के बने थे l लोग लापरवाही करने लगे ,इस कारण अग्निकांड की घटनाएँ बहुत अधिक होने लगीं और शासन द्वारा दी जाने वाली सहायता राशि का खरच भी बढ़ गया l लोगों की लापरवाही रोकने के लिए राजाज्ञा प्रसारित हुई कि जिसका घर जलेगा उसे एक वर्ष तक शमशान में रहने का दंड भुगतना पड़ेगा l लोग चौकन्ने हो गए l एक दिन राजा के भूसे के कोठे में आग लगी और देखते ही देखते वह जल गया l समाचार मिलने पर दरबार से राजा को श्मशान में रहने की आज्ञा हुई l दरबारियों ने समझाया कि ---- " नियम तो प्रजा जनों के लिए होते हैं , राजा तो उन्हें बनाता है इसलिए वे उस पर लागू नहीं होते l " परन्तु बिंबसार ने किसी की न मानी और वे एक वर्ष तक फूस की झोंपड़ी बनाकर श्मशान में रहने लगे l समाचार फैला तो सतर्कता सभी ने अपनाई और अग्निकांड का सिलसिला समाप्त हो गया l
3 December 2022
WISDOM
लघु -कथा ---- एक वृक्ष पर उल्लू बैठा था , उसी पर आकर एक हंस भी बैठ गया और स्वाभाविक रूप से बोला --- आज सूर्य प्रचंड रूप से चमक रहे हैं इससे गर्मी तेज हो गई है l उल्लू ने कहा ---सूर्य कहाँ है ? गरमी तो अंधकार बढ़ने से होती है , जो इस समय भी हो रही है l उल्लू की आवाज सुनकर एक बड़े वट वृक्ष पर बैठे अनेक उल्लू वहां आकर हंस को मूर्ख बताने लगे और सूर्य के अस्तित्व को स्वीकार न कर हंस पर झपटे l हंस अपने प्राण बचाकर बचाकर भाग खड़ा हुआ l उल्लू को दिन में दिखाई नहीं देता इसलिए वह अंधकार को ही सत्य मानता है l आज की स्थिति कुछ ऐसी ही है l सच्चाई , ईमानदारी और विवेक की बात करने वालों का बहिष्कार किया जाता है और जो अनैतिक , अमर्यादित कार्य करते हैं , या गलत कार्य करने वालों का सहयोग करते हैं उनको महत्त्व दिया जाता है l समस्या में ही समाधान निहित है l जिस दिन सरोवर से बहुत सारे हंस उड़कर वृक्ष पर बैठे हंस के पास आ जायेंगे और अपने हंस की बात का समर्थन करेंगे , अपनी विवेक शक्ति से प्रतिपक्षी को निरुत्तर कर देंगे उस दिन सत्य की जीत होगी l
2 . एक मनुष्य ने किसी महात्मा से पूछा , महात्मन ! मेरी जीभ तो भगवान का नाम जपती है , पर मन उस ओर नहीं लगता l महात्मा बोले -- भाई ! हमारा यह शरीर ईश्वर की दी हुई विभूति है l इस बात की प्रसन्नता मनाओ कि कम से कम जीभ तो भगवान का नाम लेती है , एक अंग ने तो उत्तम मार्ग पकड़ा है l धीरे -धीरे प्रयास करते रहो और सत्कर्म करो तो एक दिन मन भी निश्चित रूप से ठीक रास्ते पर आ जायेगा l शुभारम्भ छोटा भी हो तो भी निरंतर प्रयास से सफलता मिलती है l
2 December 2022
WISDOM ----
एक चोर संत नानक के पास पहुंचा और अपनी चोरी की बुरी आदत से छुटकारा पाने का उपाय पूछा l नानक ने जोई उपाय बताये वे उससे निभते न थे l एक के बाद एक उपाय बदलते -बदलते जब बहुत दिन बीत गए और किसी से भी वह आदत न छूटी तब उन्होंने चोर से कहा कि तुम अपने पाप सबके सामने प्रकट करने लगो l चोर का बार -बार आना और पूछना समाप्त हो गया l पाप प्रकट करने से उसे लज्जा आती थी , सो उसने चोरी करना ही बंद कर दिया l
1 December 2022
WISDOM -----
ऋषियों का वचन है ---- ' उदय होता सूर्य भी रक्त होता है और अस्त होते समय भी रक्त रहता है l उसी तरह बुद्धिमान सज्जनों का रूप भी विपत्ति में और संपत्ति में एक जैसा रहता है l ' संसार में जो व्यक्ति सुख -दुःख के चक्र को नहीं समझते वे सुख आने पर अहंकारी हो जाते हैं और दुःख आने पर हताश -निराश हो जाते हैं , उनका आत्मविश्वास ही समाप्त हो जाता है , आत्महत्या कर लेते हैं l लेकिन जो इस सत्य को जानते हैं कि गहरी रात के बाद सुबह अवश्य होगी , उसे कोई रोक नहीं सकता , वे अपने आत्मविश्वास पर दृढ रहते हैं , उन्हें ईश्वरीय सत्ता पर विश्वास होता है और दुःख के कठिन समय में आने वाले सुनहरे पल की तैयारी करते हैं l महाभारत का प्रसंग है ---- जब पांडवों को जुए में हारने के बाद बारह वर्ष का वनवास और एक वर्ष का अज्ञातवास मिला तब अर्जुन ने दिव्यास्त्र प्राप्त करने के लिए कठोर तपस्या की , शिवजी से 'पाशुपत अस्त्र ' प्राप्त किया तब देवराज इंद्र जो अर्जुन के पिता थे अपने साथ कुछ समय के लिए स्वर्गलोक ले गए , वहां उनका मन बहलाने के लिए अप्सराओं के नृत्य का आयोजन किया l स्वर्ग की सबसे सुन्दर अप्सरा उर्वशी उन पर आसक्त हो गई और उसने अर्जुन से प्रेम -याचना की लेकिन अर्जुन ने उर्वशी की याचना को अस्वीकार कर दिया और कहा कि आपके सौन्दर्य में मैंने अपनी माँ के दर्शन किए l उर्वशी को यह अपना अपमान लगा और उसने क्रोधित होकर अर्जुन को नपुंसक होने का श्राप दे दिया l तब देवराज इंद्र ने उनकी तपस्या और श्रेष्ठ चरित्र के आधार पर कहा कि यह श्राप केवल एक वर्ष के लिए जब वह चाहेंगे तब लागू होगा l यह शाप अज्ञातवस् की अवधि में पांडवों के लिए वरदान बन गया , अर्जुन ने ब्रह्न्न्ला बनकर राजा विराट की पुत्री उत्तरा और उसकी सहेलियों को नाच , गाना -बजाना सिखाया l कहाँ अर्जुन जिसके गांडीव की टंकार से धरती हिल जाती थी , विपदा के समय ऐसा रूप धरना पड़ा l महारानी द्रोपदी ने ऐसे कठिन समय में राजा विराट के रनिवास में नौकरानी बन कर सैरंध्री नाम रखकर सबकी सेवा की l वहां का सेनापति कीचक जो रानी का भाई था , रनिवास में आता -जाता था , उसकी कुद्रष्टि द्रोपदी पर थी l एक दिन जब उससे जान बचाकर द्रोपदी राजसभा की ओर भागी तब कीचक भी उनके पीछे भागा और भरी सभा में उसने द्रोपदी को ठोकर मारी , अपशब्द कहे l महारानी होकर कितना अपमान ! समय विपरीत था इसलिए सहना पड़ा l धीरे -धीरे कष्ट के दिन बीत गए l कष्ट , मान -अपमान हम सबके जीवन में आता रहता है इसलिए हमें अपने सारे रिश्तों के साथ एक रिश्ता भगवान से भी रखना चाहिए , इससे हमें शक्ति और सद्बुद्धि मिलती है l