पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं ----- " संसार के मनुष्य किसी सफल मनोरथ और सौभाग्यशाली व्यक्ति के बाहरी रूप को देखकर यह अभिलाषा तो करते हैं कि हम भी ऐसे ही बन जाएँ , पर इस बात पर बहुत कम ध्यान देते हैं कि इस स्थिति को प्राप्त करने के लिए पहले उन्होंने त्याग , तपस्या , कष्ट सहन , एकांतवास आदि का जीवन व्यतीत कर के अपने आचरण को सुदृढ़ बनाया है l लोग वृक्ष के पके मधुर फलों को देखते हैं , पर इस पर विचार नहीं करते कि इसको लगाने और वर्षों तक खाद - पानी देकर रक्षा करने में कितना परिश्रम करना पड़ा है l "