6 July 2018

WISDOM ----- किसी भी कर्म के पीछे जो भावनाएं हैं , उनका महत्व है

भावनाएं  यदि  निम्न  कोटि  की   हों  तो  यह  आदमी  को   दुःखी , दरिद्र ,  पतित  और  पापी  बना  देती  हैं    लेकिन  यदि  भावनाएं  उच्च स्तरीय  हों   तो  वह  मनुष्य   के  भविष्य  का  निर्माण  करती  हैं ,  मनुष्य  को  शांति  और  शक्ति   के   ऊँचे  स्तर  पर  ले  जाती  हैं  ,   आदमी  को  संत , महापुरुष , ऋषि  और  देव मानव  बना  देती  हैं   l 
   एक   पुरानी    कथा  है ----------    एक  शहर   में  एक  ही  दिन  दो  मौतें  हो  गईं  l    एक  संन्यासी  थे  और  एक   नर्तकी   l  शहर  में  दोनों  का  निवास  आमने - सामने  था  l  संयोग  की  बात  दोनों  एक  ही   घड़ी  में  संसार  छोड़कर  चल  दिए  l   जैसे  ही  उनकी  मृत्यू  हुई   उन्हें  ले  जाने  के  लिए  ऊपर  से  दूत  आये  l  वे  दूत  नर्तकी  को  स्वर्ग  की  ओर  और  संन्यासी    नरक  की   ओर  ले  चले  l   संन्यासी   धैर्य  न  रख  सका , बोला ---- "  यह   क्या   अंधेरगर्दी  है , तुम   नर्तकी  को   स्वर्ग    की  ओर   और  मुझे  नरक  की  ओर   ले   जा  रहे  हो  l  "  संन्यासी  ने  उन्हें  नीचे  धरती  की  ओर  देखने  को  कहा ,  जहाँ  उसके  मृत  शरीर  को   फूलों  से  सजाया  गया  था  और  बैंड की  धुन  पर राम - नाम  गाते  हुए   उसे  शमशान  की  ओर  ले  जा  रहे  थे  l  संन्यासी  बोला -- " देखो ,  तुमसे  समझदार    धरती  के  लोग  हैं  जो   मुझ  पर   न्याय  कर  रहे  हैं  l  "
  दूत  हंसने  लगे   और  बोले ---- "  वे  बेचारे  तो  केवल  वही  जानते  हैं ,  जो  बाहर  था  l  ये  व्यवहार  तो  देख  पाते  हैं  लेकिन  अंत:करण  को  नहीं   जान  पाते  l   जबकि  असली  सवाल    व्यवहार  का  नहीं  ,  चरित्र  और  चिंतन  का  है   l  शरीर  का नहीं  मन  का  है   l  इन  लोगों  ने  वाही  जाना  ,  जो  तुम  दिखाते     रहे ,  जो  तुमने  लोगों  के  सामने  किया    , परन्तु  जो  तुम  सोचते  रहे ,  मन  की  दीवारों  के  भीतर  करते  रहे  ,  उसे  ये  सब  जान  नहीं  पाए  l --  सच  तो  यही  है  कि  शरीर  से  तुम  संन्यासी  थे    पर  तुम्हारा  मन  सदा  नर्तकी  में  अनुरक्त  रहा  l  तुम्हारे  मन  में   वासना  थी  ,  तुम  सोचते  रहते  थे  कि नर्तकी  के  घर  में  कितना  सुन्दर  संगीत  और  नृत्य  चल  रहा  है   और  मेरा  जीवन  कितना  नीरस  है  l     
   जबकि  नर्तकी  निरंतर  यही  सोचती  रही   कि  संन्यासी  का  जीवन  कितना  पवित्र  और  आनंदपूर्ण  है   l  जब  तुम  भजन  गाते  थे   तो    वह  बेचारी   अपने  पापों  की  पीड़ा  से   विगलित  होती  ,   रोती  थी   l   पतित  जीवन    जीते  हुए  भी   उसके  मन  में  ईश्वर  का  चिंतन  और  भक्ति  गीत  ,  भजन  गूंजते  थे   l   अपने  तथाकथित  ज्ञान  के  कारण  तुम  अहंकारी  थे    किन्तु  नर्तकी    के  चित  में   न  अहंकार   था  , न  वासना  l   उसका  चित  परमात्मा  के  चिंतन ,  प्रेम  और  प्रार्थना  से  परिपूर्ण  था   l  
भावनाओं  की   श्रेष्ठता  और  पवित्रता  के  कारण  वह  स्वर्ग  की  अधिकारिणी  है   और  भावनाओं  की  निकृष्टता    के  कारण  तुम  नरकगामी  हो   l