11 April 2024

WISDOM -----

   पं . श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं ----- "  सांसारिक  रिश्तों  को  निभाते  समय  अपना  एक  रिश्ता  भगवान  से  बना  लेना  चाहिए  l  इनसान  से  रिश्ते  और  भगवान  से   रिश्ते  में   यही  फर्क  है  कि   इनसान  किसी  दूसरे  इनसान  की   छोटी  सी  गलती  को  भी  जीवन  भर  याद  रखता  है  ,  जबकि   भगवान  उस  इनसान  की  जीवन  भर  की  गलतियों  को  भुलाकर   उसके  अच्छे  कर्मों   पर  ध्यान  देते  हैं  l  "   ईश्वर  से  रिश्ता  हमें  एक  अनोखी  ताकत  देता  है   कि  सारा  संसार  हमारे  विरुद्ध  हो  जाये   लेकिन  यदि  ईश्वर  हमारे  साथ  है   तो  संसार  की  कोई  भी  ताकत  हमारा  कुछ  नहीं  बिगाड़  सकती   l   ईश्वर  विश्वास  में  अनोखी  शक्ति  है   l  इस  कलियुग  में   जब  रिश्तों  में   धोखा  ,  छल ,कपट , षड्यंत्र  , स्वार्थ  , धन -संपदा  के  लिए  खींचातानी, मुकदमेबाजी     है   तो  रिश्तों  की  अहमियत  ख़तम  हो  गई  है   फिर  बहुत  से  लोग  ऐसे  भी  हैं   जो  अपने  अहंकार  के  पोषण  के  लिए    रिश्तों  को  इस  तरह  बाँध  कर  रखना  चाहते  हैं   ताकि  उनके  संभ्रांत  होने  के  पीछे  छिपी  कालिख  समाज  के  सामने  न  आ  जाये   l  परिवार  में   होने  वाली  हिंसा , उत्पीड़न , शोषण ,   अपने  ही  परिवार  के  सदस्य  को  अपना  प्रतिस्पर्धी  मानकर   उसे  चैन  से  जीने  न  देना ,  उसका  सुख -चैन   छीनना ----- यह  सब  सांसारिक  रिश्ते  में   ही  होता  है  l  ईश्वर  से  रिश्ते  में  शांति  है , सुकून  है  ,  ईश्वर  हमारे  जीवन  में  दखल  नहीं  देते  ,  वो  हमेशा  हमें  चुनाव  करने  की  स्वतंत्रता  देते  हैं  l  हमारे  सामने  अच्छाई - बुराई , सकारात्मक - नकारात्मक   दोनों  तरह  के  मार्ग  हैं  , चयन  हमें  करना  है   फिर  जैसी  हमारी  राह  होगी  हमारे  कर्म  होंगे  वैसा  ही  परिणाम  हमारे  सामने  आएगा  l  ईश्वर  से  रिश्ते  की  सघनता  ही  भक्ति  है   और  यह  भक्ति  जंगल  में  रहना  नहीं  है  , संसार  में  रहकर  सफलतापूर्वक  , शांति  व  सुकून  का  जीवन  जीना  है  l   भक्त  प्रह्लाद  की  कथा  है  ---  वे  भक्त  होने  के  साथ  राजा  भी  थे  ,  उनके  पास  बुद्धियोग  का  बल  था  l  बुद्धियोग  एक  तरह  की  भावनात्मक  योग्यता  है   जिसमें  व्यक्ति  अपनी  कुशल  और  कुशाग्र  बुद्धि  से   अपनी  भावनाओं  का  सही  उपयोग  व  नियोजन  कर  पाता  है  l   एक  बार  उनके  दरबार  में   दो  माताएं  एक  बच्चे  को  लेकर  आईं   और  दोनों  ही  कहने  लगीं  कि  वे  ही  इसकी  माँ  हैं  , दोनों  ने  ही  पक्के   सबूत   दिए  l  सब  मंत्रीगण  सोच  में  पड़  गए  , निर्णय  महाराज  प्रह्लाद  को  करना  था   कि  असली  माँ  कौन  है  ?   राजा  प्रह्लाद  ने  प्रभु  का  स्मरण  किया   और  घोषणा  की  कि   इसी  क्षण  इस  बच्चे  के  दो  टुकड़े  कर  दिए  जाएँ   और  दोनों  माताओं  को  एक -एक  टुकड़ा  दे  दिया  जाये  l  यह  सुनकर  सारी  सभा  स्तब्ध  रह  गई  l  तभी  दोनों  माताओं  में  से  एक  माता   रोते  हुए  बोली ---- '  महाराज  !  आप  ऐसा  न  करें  l  इसे  ही  यह  बच्चा  दें  दे  l  यह  बच्चा  मेरा  नहीं  है  , मैं  इसकी  माँ  नहीं  हूँ  , आप  इसे  ही  यह  बच्चा  दे  दें  l  '   इस  दौरान  दूसरी  महिला  कुछ  न  बोली   l    इसके  बाद  महराज  ने  अपना  निर्णय  सुनाते  हुए  कहा ---- "   यह  बच्चा  इस  रोने   वाली   माता  का  है  , इसे  बच्चा  दे  दिया  जाये   और  दूसरी  महिला  को  बंदी  बना  लिया  जाये   जो  दूसरों  की  भावनाओं  को  छलने  का  प्रयास  कर  रही  है  l  "  महाराज  प्रह्लाद  को  पता  था   कि  माँ  का  ह्रदय  बच्चे  के  लिए  कितना  व्याकुल  होता  है  वह  चाहती  है  कि   उसका  बच्चा   स्वस्थ  और  सकुशल  रहे  l  जिसके  ह्रदय  में  बच्चे  के  लिए  संवेदना  नहीं  , वह  माँ  नहीं  है  l