1 March 2020

वैज्ञानिक युग / पत्थर - युग

  असुरता  कितनी  नृशंस  हो  सकती  है  ,  आये  दिन  इसके  उदाहरण  हमें  देखने  को  मिल  सकते  हैं  l   इतिहास  का  पन्ना  तो  इससे  भरा  पड़ा  है  l   यह  बर्बरता  सामूहिक  रूप  से  बड़े  पैमाने  पर    और  मात्र  सनक  की  पूर्ति  के  लिए  भी  की  जाती  है   l   छूट - पुट   लड़ाई - झगड़ों  से  लेकर    विश्व  युद्ध  तक  में    जितनी  भी  क्रूरताएं  हुईं    और  विनाश  लीलाएं  रची  गईं   उन  सबके  मूल   में    असुरता  ही  प्रधान  रही  l   क्रूर  कृत्य  में  संलग्न  व्यक्तियों  का  चिंतन  भी    अन्याय  एवं   अनाचारपूर्ण  होता  है   l   चिंतन  के  अनुरूप  आसुरी  तत्व  उन  पर  हावी  हो  जाते  हैं   l
जब  क्रूरता  का  भूत   किसी  पर  सवार  होता  है  तो  वह  उसे  कुछ  भी  कर  गुजरने  की  प्रेरणा  देता  है  ,  पर  अंत  में   वह  भी  उस   क्रूर  प्रवाह  का  शिकार  हुए  बिना  नहीं   रह   पाता  l   इतिहास  में  इसके  अनेकों  जग  प्रसिद्ध   उदाहरण  है   l
  इसलिए  हमारे  ऋषियों  का , आचार्यों  का  कहना  है    कि   चिंतन - चेतना  को  परिष्कृत  किये  बिना   समाज  का  कल्याण  और  संसार  में  शांति   संभव  नहीं  है   l   ' बड़ा  आदमी ' बनने  से  पहले   इनसान   बनना     जरुरी  है   l 
   आज  मनुष्य  ' पत्थर - युग '  में  पहुँच  कर  आदि - मानव  बन  गया   l