27 October 2022

WISDOM ----

   कबीरदास जी  का  दोहा  है ---- धीरे -धीरे  रे  मना ,  धीरे  सब  कुछ  होय  l  माली  सींचै  सौ  घड़ा , ऋतु  आए  फल  होय   l    अर्थात  माली  किसी  पौधे  को  सौ  घड़े  पानी  से  भी  सींचे  ,  पर  उसमें  फल  तो  समय  आने  पर  ही  होंगे  l    आचार्य श्री  लिखते  हैं  --"- सत्कर्मों  का  बीज  बोते  ही  हमें  फल प्राप्ति  नहीं  हो  सकती  ,  समय  आने  पर  ही  हमें  सत्कर्मों  का  फल  मिलता  है  l  इसलिए  हमें  कुशल  किसान  की  तरह   सत्कर्मों  की  खेती  निरंतर  करनी  चाहिए  l  " एक  कथा  है -----  देव  नामक  एक   लड़का  बहुत  गरीब  था  ,  जीविका  और  स्कूल  की  फीस  भरने  के  लिए  वह  फेरी  लगाता  था  l  एक  दिन  वह  दिन  भर  घूमा  लेकिन  उसका  कोई  सामान  नहीं  बिका  l  वह  बहुत  थक  गया   और  उसे  बहुत  भूख  भी  लागी  l  बहुत  व्याकुल  था  वह  ,  कुछ  खाना  मांगने  के  लिए  उसने  एक  घर  का  दरवाजा  खटखटाया  l  एक  लड़की  बाहर  आई   l  संकोचवश  उसने  खाना  तो  नहीं  माँगा  , एक  गिलास  पानी  माँगा  l   उसे  देखकर  लड़की  समझ  गई  कि  वह  बहुत  भूखा  है , वह  एक  बड़ा  गिलास  दूध  भरकर  ले  आई  l  लड़के  ने  दूध  पी  लिया  और  इसके  पैसे  के  लिए लिए  पूछा  l  लड़की  ने  मना  कर  दिया  कि  हम  इस  तरह  पैसे  नहीं  लेते  l  लड़का  धन्यवाद  देकर  चला  गया  l  वर्षों  बीत  गए  l  वह  लड़की  गंभीर  रूप  से  बीमार  पड़ी  , स्थानीय  चिकित्सक  सफल  नहीं  हुए  तो  उसे  शहर  के  बड़े  अस्पताल  भेज  दिया  l  वहां  विशेषज्ञ  चिकित्सक  को  बुलाया  गया  ,  उन्होंने  उस  लड़की  को  देखा  , रोग  की  जांच  की  , उनकी  मेहनत  रंग  लाई  और  कुछ  ही  दिनों  में  वह  पूर्ण  स्वस्थ  हो  गई  l  उसने  किसी  सहायक  से  कहकर  अस्पताल   के  कार्यालय  से  बिल  बिल  मंगवाया  l  बिल  को  देखकर  लड़की  को  लगा  कि  वह  बीमारी  से  तो  बच  गई  लेकिन  अब  बिल  कैसे  भरेगी  ?   तभी  उसकी  द्रष्टि  बिल  के  कोने  पर  लिखे  एक  सन्देश  पर  गई  ,  वहां  पर  लिखा  था  ---- ' आपको  भुगतान  करने  की  कोई  आवश्यकता  नहीं  l  एक  गिलास  दूध  द्वारा  इस  बिल  का  भुगतान  वर्षों  पहले  किया  जा  चुका  है  l  '  उसे  याद  आया  कि  वर्षों  पहले  उसने  जिस  बालक  को  एक  गिलास  दूध  देकर  उसकी  सहायता  की  थी  ,  उसी  ने  उसे  संकट  से  बचाया  है  l   हमें  सत्कर्मों  का  सुफल  अवश्य  मिलता  है  चाहे  वह  संसार  में  कहीं  से  भी  मिले  l  

WISDOM ----

   एक  बार  एक  अपराधी  पकड़ा  गया  , उसे  फाँसी  की  सजा  मिली  l  फाँसी  की  कोठरी  में  जाने  से  पूर्व  , वह  राजा  को  बुरी -बुरी  गाली  और  दुर्वचन  कहने  लगा  l  वह  विदेशी  था  , उसकी  भाषा  को   सभा  के  एक -दो  सरदार  ही  जानते  थे  l   राजा  ने  विदेशी  भाषा  जानने  वाले  एक  सरदार  से  पूछा  --- " यह  अपराधी  क्या  कह  रहा  है  ? "  उसने  उत्तर  दिया  --- " आपकी  प्रशंसा  करते  हुए  ,  अपनी  दीनता  बताता  हुआ  ,  यह  दया  की  प्रार्थना  कर  रहा  है  l "  इतने  में  दूसरा  सरदार  उठ  खड़ा  हुआ  ,  उसने  कहा --- " नहीं  सरकार  !  यह  झूठ  बोलता  है  l  अपराधी  ने  आपको  गाली  दी  है  और  दुर्वचन  बोले  हैं  l  राजा  तो  विदेशी  भाषा  जानता  न  था   और  कोई  तीसरा  आदमी  फैसला  करने  वाला  नहीं  था  l  इसलिए  सत्य  का  कैसे  पता  चले  ?  राजा  ने  स्वयं  विचार  किया   और  पहले  सरदार  को  ही  सत्यवादी  कहा   तथा  अपराधी  की  सजा  कम  कर  दी   l  दूसरे  सरदार  से  राजा  ने  कहा --- "  चाहे  तुम्हारी  बात  सत्य  अवश्य  ही  हो  ,  पर  उसका  परिणाम  दूसरों  को  कष्ट  मिलना   तथा  हमारा  क्रोध  बढ़ाना  है  ,  इसलिए  वह  सत्य  होते  हुए  भी  असत्य  जैसी  है  l     और  इस  पहले  सरदार  ने   चाहे  असत्य  ही  कहा  हो  ,  पर  उसके  फलस्वरूप   एक  व्यक्ति  के  जीवन  की  रक्षा  होती  है   तथा  हमारे  ह्रदय  में  दया  उपजती  है   , इसलिए  वह  सत्य  के  ही  समान  है  l "