8 October 2018

WISDOM ---- पृथ्वी पर सद्गुण देह छूटने के बाद भी अमर रहता है l

  एक  बार  मालवा  के  राजा  भोज  अपने  रथ  से  उद्दान  की  और  जा  रहे  थे  ,  रास्ते  में  योगी  एवं  तपस्वी  गोविन्द  को  देखकर  उन्होंने   रथ  को  रोकने  का  आदेश  दिया   और  रथ  से  उतारकर  उनका  अभिवादन  किया  l  गोविन्द  ने  राजा  के  अभिवादन  का  उत्तर  न  देकर   अपनी  दोनों  आँखें  मूंद  लीं   l   गोविन्द  की  प्रतिक्रिया  से   विस्मित  राजा  ने  कहा  --- हे  महा तपस्वी  !  आपने  हमें  आशीर्वाद  देना  तो  दूर  ,  अपनी  आँखें  ही  बंद  कर  लीं   l  ऐसी  क्या भूल  हो  गई  हमसे    ?  कृपा  कर  के  स्पष्ट  करें  l 
  गोविन्द ने कहा --- "  सत्य  को  सह  पाना  बहुत  कठिन  होता  है  l  मैं  सत्य  वचन  कहता   हूँ   l  "
  राजा  भोज  ने  कहा --- "  आप  सत्य  कहें ,  मैं  सुनने  को  उत्सुक  हूँ  l  '
   महा तपस्वी ,  गायत्री  के  सिद्ध  साधक  गोविन्द  ने  कहा  ---- " राजन  ! लोकोक्ति   है  कि  प्रात:  किसी  कृपण  का  मुंह  देखकर  नेत्र  बंद  कर  लेना  चाहिए  ,  इसी  कारण  मैंने  अपनी  आँखें  मूंद  लीं  l  "
  अपनी  गलती  सुनना  भी  अत्यंत  साहस  का  काम  है   l  राजा  के  माथे  पर  पसीना  आ  गया  l  किसी  तरह  अपने    को  संयत  कर  राजा  भोज  ने  कहा --- : " हमने  तो  कईयों  को   दान  किया  , फिर  हम  कृपण  कैसे  हो  गए  l  ? "
  गोविन्द  ने  कहा --- "  आपने  जो  दान  दिया  वह  अपने  अहंकार  की  तुष्टि  के  लिए  दिया    जबकि  दान   किसी  सत्पात्र  को   उदारता  के  साथ  दिया  जाता  है   l  आपके  दिए  दान  में   उदारता  के  स्थान  पर अहंकार  का  पुट  है  l   आपने  दान  उसको  दिया   जिसे  उसकी  आवश्यकता  नहीं  थी ,  केवल  चाटुकारों  को  आपने  दान दिया   l    आप  राजा  हैं ,  राजा  प्रजा  का    भगवान  होता  है  l  जो  राजकोष  का  उपयोग  केवल   अपने   सुख - भोग ,  वासना - तृष्णा  की  पूर्ति  के  लिए  करता  है   , एक  दिन  उसका  पतन  सुनिश्चित  है   फिर  चाहे  वह   कितना  ही  धनबल , जन बल  और  बाहुबल  से  संपन्न  क्यों  न  हो  l  अत:  ऐसे  राजा  का  मुंह  नहीं  देखना  चाहिए  ,  इसीलिए  हमने  अपनी  आँखे  मुंद  लीं   l  "
  गोविन्द   बोल  रहे  थे  और  राजा  का  ह्रदय  सत्य  के  इन  बाणों  से  बिंधता  जा  रहा  था   l  गोविन्द  आगे  बोले ---- "  महाराज  ! प्रगल्भ  की  विद्दा , कृपण  का  धन  और  कायर  का  बहुबल  ---- ये  तीनो   व्यर्थ  हैं  , पर  सदगुण  देह   छूटने  के  बाद  भी   अमर  रहते    हैं   l 
तपस्वी  गोविन्द  के   वचन  सुन  कर  राजन  के  जीवन  को  एक  दिशा  मिली   l   उसने  अपने  धन  का  अधिकतम  उपयोग   प्रजा  के  हित में , जन कल्याण  में  किया  और  इतिहास  में  अमर  हो  गया  l