4 July 2020

WISDOM -----

  संस्कृत  भाषा  में  एक  सुभाषित  है  कि  ' धनवान  अथवा  राजा   तो  अपने  देश  में  ही  पूजा  जाता  है  l   पर  विद्वान्  सर्वत्र  पूजनीय  होता  है  l
उस  समय  जब  भारतवर्ष  पूर्ण  रूप  से  अंग्रेजों  के   आधीन  था   और  गोरी  जातियां   यहाँ  के  निवासियों  को  काला  कहकर   उपेक्षा  की  दृष्टि  से  देखती  थीं  ,  पर  उसी  जाति   का  होने  पर  भी   रवीन्द्रनाथ   टैगोर   दुनिया  के  जिस  भी  देश  में  गए  ,  वहां  उनका  एक  देवदूत   अथवा  राजा - महाराजाओं  जैसा  स्वागत  किया  गया  l  चीन , जापान , ईरान   आदि  सभी  देशों  ने  उन्हें  प्यार  व   सम्मान   दिया  l  इटली  पहुँचने  पर  वहां  के  तानाशाह  मुसोलिनी  ने  कहा  --- ' मैं  आपकी  रचनाओं  को  बड़े  प्रेम  से  पढ़ता   हूँ   और  मुझे  वे  पसंद  आती  हैं  l '
 श्री  रवीन्द्रनाथ  टैगोर  ने  1904  में  एक  ' स्वदेशी  समाज ' की  स्थापना  की   थी  l  इसके  सदस्य  प्रतिज्ञा  करते  थे  कि   वे  स्वदेशी  वस्तुओं  का  ही णप्रयोग  करेंगे  l  शिक्षा , साहित्य , समाज  आदि   सभी  विषयों  में  ' स्वदेशी ' की  भावना  को  प्रधानता  देंगे  l  महात्मा  गाँधी  का  भी  यही  विचार  था   कि   जीवन  की  दो   सबसे  बड़ी   और  दैनिक  आवश्यकताएं  --- भोजन  और  वस्त्र  के  संबंध   में  मनुष्य  पूर्ण   स्वावलम्बी   हो  सके   तो  उसके  कष्टों   और  परेशानियों  का  बहुत  कुछ  अंत  हो  सकता  है   l   स्वदेशी  मन्त्र  मानव  जीवन  को  सुखी  बनाने  का  राजमार्ग  है  l   इसका  असली  तात्पर्य  है  --- स्वावलम्बी  होना  l  हम  अपने  जीवन  निर्वाह  की   सामान्य  आवश्यकताओं  की  पूर्ति  के  लिए    दूसरों  पर  जितना  कम    आश्रित  होंगे   उतना  ही  हमारा  जीवन  सुखी  हो   सकता  है   l