4 October 2019

WISDOM ----

  श्री  भगवान  ने  गीता  में  कहा  है ---- ' मैं  काल  हूँ  l '    व्यक्तिगत  जीवन  में    यदि  कर्म  अशुभ  होता  है   तो  काल  रोग , शोक , पीड़ा  व  पतन   बनकर  प्रकट  होता  है   l  यदि  सामूहिक  जीवन  में  अशुभ  कर्म  होता  है   तो  काल  प्राकृतिक  आपदाओं  ,  युद्ध  की  विभीषिकाओं   का  रूप  लेकर  आता  है  l  ऐसी  स्थिति  में   महामारी , भूकंप ,  बाढ़ , सूखा ,  अकाल   और  ऐसे  ही  अनेक  उपद्रव  बन  जाता  है  काल   ! 
  कर्म  करना  तो  व्यक्ति  के  हाथ  में  है ,  लेकिन  इनके  परिणाम  काल  ही  तय  करता  है  l
    काल  का  एक  अर्थ  मृत्यु  भी है   l  कोई  भी  उससे  बच  नहीं  पाता  l
  सूफी  फकीर  शेख  सादी  के  वचन  हैं  ----  " बहुत  समय  पहले  दजला  के  किनारे    किसी  एक  खोपड़ी  ने    कुछ बातें   एक  राहगीर  से  कहीं  थीं  l "  वह  बोली  थी ---- " ऐ  मुसाफिर  !  जरा  होश  में  चल  l  मैं  भी  कभी  भारी  दबदबा   रखती  थी  l  मेरे  ऊपर  हीरे , मोती ,  मूंगों  से  जड़ा  बेशकीमती  ताज  था  l  फतह  मेरे  पीछे - पीछे  चली   और  मेरे  पांव  कभी  जमीन  पर  न  पड़ते    थे  l  होश  ही  न  था  कि  एक  दिन  सब  कुछ  खतम  हो  गया  l पल  भर  में  जीवन  के  सारे  सपने  विलीन  हो  गए   l  यथार्थ  से  तब  रूबरू  हुआ   और  पाया  कि  कीड़े  मुझे  खा  रहे  हैं     और  आज  हर  पाँव   मुझे  बेरहम   ठोकर  मारकर  आगे  निकल  जाता 
 है     l  तू  भी  अपने  कानों  से  गफलत  की  रुई    निकाल  ले  ,  ताकि  तुझे  मुरदों  की  आवाज  से  उठने  वाली  नसीहत  हासिल  हो  सके   l "