महर्षि अरविन्द ने भारत के संदर्भ में कहा था ---- " भारत की कमजोरी का प्रमुख कारण दासता , गरीबी और धर्म नहीं , बल्कि वह है --- विचार शक्ति का ह्रास और अज्ञान का विस्तार l हमें भारत की वास्तविक आत्मा को जाग्रत करना चाहिए l "
श्री अरविन्द का यह कथन आज सम्पूर्ण विश्व पर लागू होता है l कोई विचार किस तरह समाज पर हावी हो जाता है और फिर एक निश्चित अवधि के बाद उसका दुष्परिणाम संसार के सामने आता है l इसका उदाहरण है --- ' चार्वाक दर्शन ' -- इस साहित्य ने उधार लेकर घी पीने की सीख दी , जिसे माध्यम वर्ग ने बहुत ख़ुशी से स्वीकार किया l इसकी दूसरी प्रमुख बात यह है कि सम्पति अर्जित करने के लिए मेहनत और ईमानदारी की आवश्यकता नहीं , बल्कि अपने दिमाग का प्रयोग कर के कम - से - कम समय में अमीर हुआ जा सकता है l इसी का परिणाम हुआ की विश्व में शेयर मार्केट चल पड़ा है l
ये विचार सारे संसार में छा गए l भारत , अमेरिका आदि विभिन्न देशों में लोगों ने बैंकों से भारी लोन लेकर घर , कार आदि विभिन्न सुविधाएँ जोड़ लीं l शुरू में तो सब कुछ बहुत अच्छा लगा , लेकिन वर्तमान समय जब संसार में करोड़ों लोग बेरोजगार हो गए तो ऐसे उधार में दबे हुए मध्यम वर्ग की स्थिति सबसे अधिक दयनीय हो गई l
दूसरे विचार का परिणाम यह हुआ कि कुछ लोगों ने बॉन्ड , शेयर , प्रतिभूति आदि में निवेश कर के बहुत धन कमा लिया और अब उसके ब्याज से बिना परिश्रम किए ही दिन - प्रति दिन अमीर होते जा रहे हैं दूसरी ओर दिन - रात मेहनत करने वाले , कठोर परिश्रम से अपने परिवार का पेट पालने वाले भोजन के लिए लाइन में हाथ पसारे खड़े हैं या भूखों मरने की नौबत आ गई l यह स्थिति विश्व के अधिकांश देशों की है l इस विकट समय में भी कुछ लोग दिन दूने रात चौगुने अमीर हो रहे और अधिकांश आँखों में आँसू लिए एक - एक दाने को तरस रहे l आसुरी प्रवृतियों का तो मुख्य लक्षण ही यह है कि वे लोगों को निचोड़कर , उन्हें सता कर ही प्रसन्न होती हैं l
लेकिन गरीब के आँसू व्यर्थ नहीं जाते , संसार में तबाही ला देते हैं l ऐसे भयानक परिणाम से हमारे प्राचीन ऋषि परिचित थे , इसलिए हमारी प्राचीन संस्कृति में श्रम और ईमानदारी से धन- उपार्जन को महत्व दिया गया l अथर्ववेद में कहा गया है -- व्यापार में से श्रम और चरित्र को ही यदि हटा दिया जाये तो फिर वह व्यापार नहीं होता है , कुछ और हो जाता है l
आज संसार को जागरूक होने की , अपनी आत्मशक्ति को जाग्रत करने की जरुरत है l
श्री अरविन्द का यह कथन आज सम्पूर्ण विश्व पर लागू होता है l कोई विचार किस तरह समाज पर हावी हो जाता है और फिर एक निश्चित अवधि के बाद उसका दुष्परिणाम संसार के सामने आता है l इसका उदाहरण है --- ' चार्वाक दर्शन ' -- इस साहित्य ने उधार लेकर घी पीने की सीख दी , जिसे माध्यम वर्ग ने बहुत ख़ुशी से स्वीकार किया l इसकी दूसरी प्रमुख बात यह है कि सम्पति अर्जित करने के लिए मेहनत और ईमानदारी की आवश्यकता नहीं , बल्कि अपने दिमाग का प्रयोग कर के कम - से - कम समय में अमीर हुआ जा सकता है l इसी का परिणाम हुआ की विश्व में शेयर मार्केट चल पड़ा है l
ये विचार सारे संसार में छा गए l भारत , अमेरिका आदि विभिन्न देशों में लोगों ने बैंकों से भारी लोन लेकर घर , कार आदि विभिन्न सुविधाएँ जोड़ लीं l शुरू में तो सब कुछ बहुत अच्छा लगा , लेकिन वर्तमान समय जब संसार में करोड़ों लोग बेरोजगार हो गए तो ऐसे उधार में दबे हुए मध्यम वर्ग की स्थिति सबसे अधिक दयनीय हो गई l
दूसरे विचार का परिणाम यह हुआ कि कुछ लोगों ने बॉन्ड , शेयर , प्रतिभूति आदि में निवेश कर के बहुत धन कमा लिया और अब उसके ब्याज से बिना परिश्रम किए ही दिन - प्रति दिन अमीर होते जा रहे हैं दूसरी ओर दिन - रात मेहनत करने वाले , कठोर परिश्रम से अपने परिवार का पेट पालने वाले भोजन के लिए लाइन में हाथ पसारे खड़े हैं या भूखों मरने की नौबत आ गई l यह स्थिति विश्व के अधिकांश देशों की है l इस विकट समय में भी कुछ लोग दिन दूने रात चौगुने अमीर हो रहे और अधिकांश आँखों में आँसू लिए एक - एक दाने को तरस रहे l आसुरी प्रवृतियों का तो मुख्य लक्षण ही यह है कि वे लोगों को निचोड़कर , उन्हें सता कर ही प्रसन्न होती हैं l
लेकिन गरीब के आँसू व्यर्थ नहीं जाते , संसार में तबाही ला देते हैं l ऐसे भयानक परिणाम से हमारे प्राचीन ऋषि परिचित थे , इसलिए हमारी प्राचीन संस्कृति में श्रम और ईमानदारी से धन- उपार्जन को महत्व दिया गया l अथर्ववेद में कहा गया है -- व्यापार में से श्रम और चरित्र को ही यदि हटा दिया जाये तो फिर वह व्यापार नहीं होता है , कुछ और हो जाता है l
आज संसार को जागरूक होने की , अपनी आत्मशक्ति को जाग्रत करने की जरुरत है l