सूफी संत अहमद बहुत नेक दिल इनसान थे l एक दिन उनका पड़ोसी बहराम रोता हुआ उनके पास आया l पूछने पर पता चला कि जब वह सौदे का माल ऊंटों पर लादकर ला रहा था तो लुटेरों ने उसे रास्ते में लूट लिया l वह इतना दुःखी था कि आत्महत्या करने को तत्पर था l संत अहमद ने उससे पूछा ---- " बहराम ! जब तुम पैदा हुए थे तो क्या ये सारा धन तुम अपने साथ लाये थे ? " बहराम ने जवाब दिया --- " नहीं , धन तो परिश्रम कर के बाद में कमाया था l " संत अहमद ने पुन: पूछा ---- " क्या मेहनत करने वाले तुम्हारे हाथ - पैरों को भी डाकुओं ने लूट लिया है ? " बहराम ने उत्तर दिया --- " नहीं मेरे हाथ - पैर तो सही - सलामत हैं l " संत अहमद बोले --- "जब तुम्हारा मेहनत करने वाला शरीर सही - सलामत है तो चिंतित क्यों हो ? " उनकी बात सुनकर बहराम के अंदर नई ऊर्जा का संचार हो गया और वह पुन: परिश्रम करने को उद्दत हो गया l
8 January 2021
WISDOM ----- चिंतन की उत्कृष्टता जरुरी है
पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं ---- ' चिंतन को उत्कृष्टता की दिशा न मिली तो बढ़ी हुई सम्पति का परिणाम , विपत्ति के अतिरिक्त और कुछ न होगा l बढ़ा हुआ शरीरबल गुंडागर्दी की , बढ़ा हुआ धन व्यसन - व्यभिचार की , बढ़ा हुआ बुद्धिबल उपद्रव - उत्पातों की अभिवृद्धि करेगा l इसका प्रत्यक्ष प्रमाण हम आज के शरीरबल संपन्न, धनी - मानी , सत्ताधारी और सुशिक्षितों की गतिविधियों को देखकर , सहज ही प्राप्त कर सकते हैं l ' आचार्य श्री आगे लिखते हैं कि ----- ' वैभव और वर्चस्व का दुरूपयोग देखकर कई बार खीज में यह कहना पड़ता है कि इन बलवानों , धनवानों और विद्यावानों की अपेक्षा रुग्ण , निर्धन एवं अनपढ़ समाज के लिए कम हानिकारक हैं l ' पुराण की एक कथा है ------- असुर ऋषियों के आश्रम में तोड़फोड़ करते , उनकी गायों को ले जाते , कुटिया में आग लगा देते , अपनी आसुरी विद्या से तरह - तरह के उत्पात मचाते l आचार्य मुद्गल ने असुरों के संहार के लिए अपने एक शिष्य जिसका नाम था ' पुष्ठिपर्व ' को उपयुक्त पाया और एक दिन उसे एकांत में बुलाकर असुरसंहारकारी अनेक विद्याओं से विभूषित किया l विद्याएं प्रदान करते हुए आचार्य ने कहा --- ' वत्स ! मैं तुम्हें विशिष्ट विद्याओं से युक्त करता हूँ l किन्तु इस संहारकारी विद्या से केवल असुरों और अवांछित तत्वों को ही नष्ट करना l निरीह और निर्दोष प्राणी पर इनका प्रयोग नहीं करना l अन्यथा ये प्रयोग करने वाले को ही नष्ट कर देती हैं l " पुष्ठिपर्व ने इन विद्याओं से असुरों का नाश तो कर दिया , जो बचे थे वे सब वहां से पलायन कर गए l इन शक्तियों के प्रयोग से उसके अंदर अहंकार आ गया l अहंकार विवेक का नाश कर देता है , उचित , अनुचित का भेद समाप्त हो जाता है l उसका अहंकार इतना बढ़ गया कि कोई उसके विरुद्ध एक शब्द भी बोल देता तो असुरों के साथ वह उनका भी संहार कर देता l असुरों के साथ अनेक सामान्य जन , महिलाएं और बच्चे भी उसके हाथों मारे गए l यह सब देखकर आचार्य मुद्गल बहुत क्रोधित और चिंतित हो गए हुए सोचने लगे कि इससे तो अच्छा होता कि असुरों की विनाशलीला को धैर्य पूर्वक सहन करते रहते l लेकिन ऐसा करने से तो असुरता को फलने - फूलने का अवसर मिल जाता l उन्होंने पुष्ठिपर्व को पुन: समझाया कि इन शक्तियों का प्रयोग बहुत सावधानीपूर्वक करना चाहिए l अत्याचार और अन्याय को मिटाने के लिए और उसके स्थान पर सुख शांति और सृजन करने के लिए ही ध्वंस उचित है l इसमें जरा सी चूक स्वयं को ध्वंस कर देती है l '