19 October 2020

WISDOM -----

  ऋषि  कहते  हैं  --- लोग  पूजा - कर्मकांड  तो  बहुत  करते  हैं  लेकिन  उनकी  भावनाएं  ईश्वर  को  समर्पित  नहीं  होतीं  l   हजारों - लाखों  ठोकरें  खाने  के  बावजूद  संसार  से  कभी   अपनापन  टूटता  नहीं   l   प्राय:  सभी  लोग   अपना  नाता   उन  पुरखों  से  सहज  अनुभव  कर  लेते  हैं  ,  जिन्हे   उन्होंने कभी  देखा  ही  नहीं    परन्तु  आदिशक्ति  माँ  ,  जिनकी  कोख  से  हमारी  आत्मा  जन्मी  ,  जो  अनेकों  बार  हमें  संकटों  की  यातना  से  त्राण   दिलाती  हैं  ,  उनके  स्मरण  से   हृदय  में  न  तो  कोई  पुलकन  होती  है    और   न  ही  भवानी  के  प्रति  भावनाएं  आकृष्ट   हो   पाती    हैं   l    संसार  द्वारा   दिए  गए  आघात - प्रतिघात   मानव  मन  में  थोड़ी  देर  के  लिए  विवेक  और  वैराग्य  को  जन्म  देते  हैं  ,  किन्तु  थोड़ी  ही   देर  बाद  पुन:  मन  संसार  में  भटकने  लगता  है  l 

WISDOM ------

     मानव  शरीर  परमात्मा  की  सर्वश्रेष्ठ  कृति   है  l   यदि  शरीर  में  कोई  अंग  काम  है  या  अपंग   हो  तो    उस  स्थिति  में  सामान्य  जीवनक्रम  बिताना  कठिन  होता  है  l  पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं  --- "  शरीर  की  कमी  वस्तुत:  इतनी  बड़ी  कमी  नहीं  है  ,  जिसे  मनोबल  द्वारा  पूरा  न  किया  जा  सके  l   महत्वपूर्ण  काम  तो  मस्तिष्क  करता  है  ,   दूसरे    अंग  तो   उसकी  आज्ञाओं  का  पालन  भर  करते  हैं  l  यदि  एक  अंग  बिगड़  गया  है   तो  उसकी   आवश्यकता  दूसरा  अंग  पूरी  कर  सकता  है   l  अपनी  इच्छा  शक्ति  से  शरीर  के  अन्य  अंगों  को   अधिक  सक्षम  बनाकर    उस  विकृत  अवयव  की  आवश्यकता  पूरी  की  जा  सकती  है  l   इसी  का  एक  उत्कृष्ट  उदाहरण  सोलहवीं  सदी  के    प्रसिद्ध   नृत्यशास्त्री   सीवस्टीन   स्पिनोला  फ्रेंच  हैं  ,  जिन्हे   नृत्य  एवं   संगीत  का  पिता  माना   जाता  है  l   ग्यारह  वर्ष  की  उम्र  में   एक  दुर्घटना  में   घुटनों   के  नीचे   से   उनके  दोनों  पैर   कट   गए  थे  ,  पर  उन्होंने  अपने  को  कभी  अपंग  नहीं  माना   और  जब  कभी  उनके  पैरों  की  चर्चा  होती   तो  वे  यही  कहते   कि ----- " पैर   तो  शरीर  का   सबसे  निचला  और   कम  उपयोगी  अंश  है  l   जब  तक  मेरा  मस्तिष्क  और   हृदय  मौजूद  है    तब  तक  मुझे  अपंग  न  कहा  जाये   और  न  ही  दयनीय  माना  जाये   l "   वे  कटे  हुए  पैरों  को  ही  प्रशिक्षित  करते  रहे   और  नृत्य  विद्द्या  में   इतने  पारंगत  हो  गए   कि   उनकी  कला  को  देखकर   दर्शक  मंत्रमुग्ध  रह  जाते  थे    और  उस  विषय  में  रूचि  रखने  वाले   उनसे  शिक्षा  भी  प्राप्त  करते  थे   l