16 October 2022

WISDOM ----

  गोस्वामी  तुलसीदास जी  ने  लिखा  है --- ' प्रभुता  पाइ  काहि  मद  नाहीं  l '  अर्थात   किसी  भी  तरह  से   धन , पद , सत्ता  पाते  ही   व्यक्ति  के  अंदर  अहंकार  पैदा  हो  जाता  है  l  शक्ति  व्यक्ति  को   उन्मादी , अहंकारी  बना  देती  है   और  वह  अपनी  शक्ति  का  दुरूपयोग  करने  लगता  है  l  संसार  में  जब  भी  युद्ध  हुए  हैं  वे  शक्ति  के  दुरूपयोग  के  ही  उदाहरण  हैं  l   पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं   कि  यदि  शक्ति  के  साथ  भक्ति  का  समन्वय  हो  तो   शक्ति  का  सदुपयोग  संभव  होगा  l   जो  ईश्वर  का  सच्चा  भक्त  है  वह  संवेदनशील  होगा  l '  आज  संसार  में  जितनी  भी  अराजकता , आतंकवाद , अपराध  और  बेगुनाह  लोगों  पर  अत्याचार  और  हत्याएं  हैं  ,  इन  सब  समस्याओं  का  एकमात्र  हल  है ---- संवेदना  l    पुराण  में  एक  कथा  है ----- कौशल  नरेश  और  काशी  नरेश    दोनों  ही  देवी  के  भक्त  थे  लेकिन  दोनों  का  स्वभाव  और  विचार  भिन्न  थे   l  कौशल  नरेश  शक्ति  की  ओर  आकर्षित  थे  लेकिन  काशी  नरेश  की  रूचि  भक्ति  में  थी  ,  उनके  ह्रदय  में  संवेदना  थी ,  प्रजा  के  सुख -दुःख  को  समझते  थे  l  इस  कारण  उनकी  कीर्ति  चारों  ओर  फ़ैल  रही  थी  l   उनकी  कीर्ति  का  विस्तार  देख  कौशल  नरेश  जल -भुन  गए  और  उन्होंने  काशी  पर  आक्रमण  कर  दिया  l  युद्ध  में  काशीराज  हार  गए  और  वन  में  भाग  गए  l  अब  कौशल  नरेश  का  काशी  पर  कब्जा  हो  गया  लेकिन  वहां  की  प्रजा  ने  उनका  स्वागत  नहीं  किया   और  काशीराज  की  पराजय  से  वहां  की  प्रजा  दिन -रात  रोने  लगी  l  कौशल  नरेश  ने  सोचा  कि  कहीं  प्रजा  विद्रोह  न  कर  दे   इसलिए  शत्रु  को  समाप्त  ही  कर  दो  ल  उन्होंने  घोषणा  करा  दी  कि  जो  काशी नरेश  को  ढूंढ  कर  लाएगा  उसे   सौ  मोहरें  दी  जाएँगी  l   यह  घोषणा  सुन  वहां  की  प्रजा  ने  अपने  आँख -कान , मुँह  सब  बंद  कर  लिए  , बहुत  दुखी  हो  गई  l  इधर  काशी नरेश   दीन -मलिन  जंगलों  में  भटक  रहे  थे  l  एक  दिन  एक  पथिक  उनके  सामने  आया   और  पूछने  लगा --- " वनवासी  !  काशी  का  मार्ग  कौन  सा  है  ?  '  राजा  ने  पूछा  --- " तुम्हारे  वहां  जाने  का  कारण  क्या  है  ? "  पथिक  बोला  --- 'मैं  व्यापारी  हूँ  l  मेरी  नौका  डूब  गई  है  ,  अब  द्वार -द्वार  भीख  मांगता  हूँ  l  मैंने  सुना  है  काशीराज  बहुत  दयालु  हैं   इसलिए  कुछ  मदद  के  लिए  उनके  दरवाजे  जा  रहा  हूँ  l  "  थोड़ी  देर  सोचकर   उन्होंने  कहा --- ' तुम  बहुत  परेशान  हो , चलो  मैं  तुम्हे  वहां  पहुंचा  दूँ  l "  दूसरे  दिन  कौशल  नरेश  की  सभा  में  एक  अति  सामान्य  वस्त्रों  में  एक  व्यक्ति  आया  जिसके  बाल , दाढ़ी  सब  बढ़े  हुए  थे  l  कौशल  नरेश  के  पूछने  पर   उसने  कहा  ---' आपने  काशीराज  को  पकड़  लाने  वाले  को  सौ  मोहरें  देने  की  घोषणा  की  है   तो  आप  मेरे  इस  साथी  को  सौ  मोहरें  दे  दो  ,  मैं  ही  काशीराज  हूँ  l  '  यह  सुनकर  वह  व्यापारी  और  सारी  सभा  सन्न  रह  गई  , प्रहरी  की  आँखों  में  आंसू  आ  गए  l  कौशल  नरेश  का  भी  विवेक  जाग  गया  , उन्होंने  आगे  बढ़कर  काशीराज  को  ह्रदय  से  लगा  लिया   और  उनके  मलिन  मस्तक  पर  मुकुट  चढ़ा  दिया  l  सारी  सभा  धन्य -धन्य  कह  उठी  ,  व्यापारी  को  भी  मोहरें  मिल  गईं   l  कौशल  नरेश  ने  कहा  --यह  सत्य  है  कि  शक्ति  के  साथ  भक्ति  न  हो  तो  विवेक  नहीं  रह  जाता  l  उन्होंने  काशीराज  को  उनका  राज्य  वापस  किया  और  ईश्वर  से  भक्ति  प्रदान  करने  की  प्रार्थना  की  l