29 March 2024

WISDOM -----

  पं . श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं  ---- " हमारे  पूर्वजों  ने   छूत -अछूत  का  भेद  , अच्छे  -बुरे   कर्मों  के   आधार  पर  बनाया  था  l  जन्म  से  कोई  छूत -अछूत  नहीं  होता  l "    उच्च  कुल  में   जन्म  लेकर  भी  यदि  व्यक्ति   छल , कपट , धोखा  , षडयंत्र , अत्याचार   और  नकारात्मक  शक्तियों  के  साथ  काम  करता  है   तो   वह  व्यक्ति  अछूत  है  , ऐसे  व्यक्ति  की  छाया  से  भी  बचना  चाहिए   क्योंकि  ऐसे  लोगों   के  संस्कार , उनकी  मानसिकता   दूषित  होती  है   इसलिए  उनकी  संगत  से  बचना  चाहिए  l    एक  कथा  है -------- एक  महात्मा  प्रतिदिन  जेल  जाते  और  एक  बंदी  को   उपनिषद  पढ़ाया  करते  l  वह  बंदी  काल कोठरी  में  था  लेकिन  उपनिषद  का  ज्ञान  उसकी  आत्मा  में  ऐसे  समा  गया   कि  उसके  जीवन  में  आनंद  और  शांति  थी  l  महात्मा  उसे  नियमपूर्वक  उपनिषद  पढ़ाने  जाते  थे  l  एक  दिन  महात्मा  ने  देखा  कि  उनके  शिष्य  के  चहरे  पर  प्रसन्नता  नहीं  है  l  महात्मा  ने  उससे  पूछा  कि   उपनिषद  पढ़कर  भी  मन  में  शांति  क्यों  नहीं  है  ?  तब  बंदी  ने  कहा   कि  उसने  रात्रि  में  एक  भयानक  स्वप्न  देखा   , जिसमें  वह  निर्ममता  से  अपने  किसी  प्रिय  की  हत्या   कर    रहा  है  l  बंदी  ने  कहा  कि  इस  स्वप्न  की  वजह  से  ही  वह  बहुत  परेशान  है  l  तब  महात्मा जी  ने   उससे  उसकी  पूरी  दिनचर्या  के  बारे  में  पूछा  कि  वह  किस  से  मिला  था ,  क्या  खाया  था  ?   फिर  महात्मा जी  ने  बंदीगृह  के  अधिकारी  से  पूछा  ---- " क्या  कल  किसी  नए   बंदी  ने  भोजन  पकाया  था  ?  "  अधिकारी  ने  कहा  --' हाँ  '  और  उस  बंदी  का  रिकार्ड  मंगाकर  देखा   तो  पता  चला  कि   उस  बंदी  ने  जिसने  खाना  बनाया  था  , उसने  अपने  प्रिय  की  हत्या  उसी  निर्ममता  से  की  थी   जैसा  कि  उस  उपनिषद  पढने  वाले  बंदी  ने  स्वप्न  में  देखा  था  l  तब  महात्मा  ने  अपने  शिष्य  को  कहा   --- ' व्यक्ति  के  दूषित  मानसिक  संस्कार  के  स्पर्श  मात्र  से  उस  भोजन  में   वह  दूषित  संस्कार  आ  गए   l  उस  भोजन  को  ग्रहण करने  से  ही  उसे  ऐसा  स्वप्न  आया  l  तब  महात्मा जी  की  सलाह  पर   उस  बंदी  को   खाना  बनाने  के  काम  से  हटाकर  अन्य  कोई  काम  दिया  गया  l