17 February 2024

WISDOM ------

  पं . श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं  ---- 'मानव  मन  की  स्थिति  ऐसी  है  कि  अनेक  बातें  जानने , सुनने  और  समझने  के  बावजूद   वह  वही  करता  है  , जिधर  उसके  संस्कार  खींचते  हैं  , जिसके  लिए  उसकी  वृत्तियाँ  उसे  वशीभूत  करती  हैं  l  मन  में  संसार  की  आसक्ति   और  कर्म बंधन  ऐसे  होते  हैं  कि  वह  इन  जटिल  संस्कारों  से  मुक्त  नहीं  हो   पाता  l  प्रवचन , पुस्तकें  सब  मन  को  समझाने  में  नाकाम  रहती  हैं  l  '                                अपने  संस्कारों  के  वशीभूत  होकर  व्यक्ति   छल  , कपट  , षड्यंत्र  करता  है , धोखा  देता  है   और   अपने  किए  जाने  वाले  हर  कार्य  को  सही  साबित  करने  के  लिए  अनगिनत  तर्क  भी  देता  है  l  कहते  हैं  अच्छी  संगत   हो  तो  व्यक्ति  का  कल्याण  होता  है  लेकिन   यदि  संस्कार  जटिल  हों , कुटिल  हों   तो  श्रेष्ठ  संगत  का  भी  कुछ  असर  नहीं  होता  l    महाभारत  में  दुर्योधन  का  चरित्र  ऐसा  ही  था   l  दुर्योधन  को  पितामह  भीष्म , गुरु  द्रोणाचार्य  और  कुलगुरु  कृपाचार्य   का  संरक्षण  मिला   लेकिन  इस  संगत  का  उस  पर  कुछ  असर  नहीं  हुआ  , उसे  तो  कुटिल , कुमार्गगामी  शकुनि  ही  पसंद  आया  l   जब  व्यक्ति  के  संस्कार  ही  षड्यंत्र  और  धोखा  देने  के  होते  हैं  तब  साक्षात्  भगवान  भी  समझाने  आएं  ,  तो  व्यक्ति  समझता  नहीं  है  l  भगवान  श्रीकृष्ण  स्वयं  दुर्योधन  को  समझाने  गए   कि  तुम  पांडवों  को  केवल  पांच  गाँव  दे  दो  ,    हिंसा  और  युद्ध  के  उत्तरदायी  न  बनो  l  लेकिन  दुर्योधन  नहीं  माना   और  कहने  लगा  --- धर्म  को  मैं  भी  जानता  हूँ  लेकिन  धर्म  में  मेरी  कोई  प्रवृत्ति  नहीं  है  l  जिसे  आप  अधर्म  कहते  हैं  , उसे  भी  मैं  जानता  हूँ   लेकिन  उसे  मैं  छोड़  नहीं  सकता  l  भगवान  की  बात  को  समझना  तो  बहुत  दूर  की  बात  ,  वह  उन्हें  ही  बन्दी  बनाने  चला  l    इस  प्रसंग  से  यही  स्पष्ट  होता  है  कि  कुसंस्कार  इतने  जटिल  होते  हैं  उनमें  परिवर्तन  और  सुधार  संभव  नहीं  होता  l  इसलिए  यदि   जीवन  में   हमारा  पाला  ऐसे  लोगों  से  पड़े   जो  धोखा  देते  हैं , हमारे  विरुद्ध  छल  , कपट  और  षड्यंत्र  रचते  हैं   तो  यथासंभव  उनका  सामना  अवश्य  करें   लेकिन  अपने  मन  पर  बोझ  न  आने  दें   क्योंकि  उनके  संस्कार  ही  ऐसे  हैं  वे  ऐसे  अनैतिक  कार्य  करने  से  कभी  नहीं   चूकेंगे  , कभी  नहीं  सुधरेंगे  l  दुर्योधन  तो  वीर  था , युद्ध  में  वीरगति  प्राप्त  हुई  तो   उसे  स्वर्ग  मिला   लेकिन      तृष्णा , कामना  और  वासना  में   डूबा  प्राणी   जन्म -जन्मान्तर  तक   कर्म -बन्धनों  में  उलझकर   भटकता  ही  रहता  है  l