पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी का कहना था ---- ' कर्मयोग परिश्रम की पराकाष्ठा का नाम है और जो परिश्रम को ही त्याग बैठते हैं , वे जीवन के किसी भी आयाम में न तो उन्नति कर पाते हैं और न ही व्यक्तित्व की समग्रता को प्राप्त कर पाते हैं l श्रम की उपेक्षा ही हमारे समाज में दरिद्रता का कारण है l वे कहते हैं कि भारतीय समाज ने विकास के दोहरे मानदंड तय कर लिए हैं l हम श्रम करने वालों से तो घृणा करते हैं और बिना मेहनत , आराम का अन्न खाने वालों को ऊँचा स्थान देते हैं , इसलिए यह देश दरिद्रता के गर्त में गिरता चला गया और अपनी समृद्धि गँवा बैठा l
आचार्य जी कहते हैं --- अध्यात्म का पहला पाठ परिश्रम और ईमानदारी से प्राप्त समृद्धि है और यह कर्मयोग से ही प्राप्त होती है l '
आचार्य जी कहते हैं --- अध्यात्म का पहला पाठ परिश्रम और ईमानदारी से प्राप्त समृद्धि है और यह कर्मयोग से ही प्राप्त होती है l '