5 April 2024

WISDOM -----

   इस  संसार  में  गुरु  की  कृपा  से  सब  कुछ  संभव  है  l  कहते  हैं   यदि  भगवान  शिव  स्वयं  रूठ  जाएँ   तो  श्री गुरु  की  कृपा  से  रक्षा  हो   जाती  है  ,  लेकिन  यदि  गुरु  रूठ  जाएँ   तो  कोई  भी  रक्षा  करने  में  समर्थ  नहीं  होता  l    सद्गुरु के  बताए  मार्ग  पर  चलकर  ,  बिना  किसी  तर्क  के  उनके  आदेश  को  स्वीकार  कर  के  ही  गुरु कृपा  संभव  है  l  जो  शिष्य  अपने  गुरु  की  कृपा  की  छाँव  में  रहता  है  ,  उसका  कोई  कुछ  नहीं  बिगाड़  सकता  l    एक  सत्य  घटना  है  बंगाल  के  महान  साधक   सुरेन्द्रनाथ  बनर्जी  के  बारे  में  l  वे  सर्वेयर  के  पद  पर  कार्यरत  थे  l  पारिवारिक  परिस्थिति  कुछ  ऐसी  हुई  कि  पहले  बेटी  की  मृत्यु  हुई  , फिर  लंबी  बीमारी  के  बाद  पत्नी  की  मृत्यु  हो  गई  l  सुरेन्द्रनाथ   बहुत  दुःखी  थे  , ऐसे  में  उन्होंने   बंगाल  के  महान  संत  सूर्यानंदगिरी   की  शरण  में  रहना  चाहा  l  इस  उदेश्य  से  वे   उन  महान  संत  की  कुटिया  में  गए   और  उनसे  दीक्षा  देने  की  प्रार्थना  की  l   इस  प्रार्थना  को  सुनकर  संन्यासी  महाराज  नाराज  हो  गए  और  उन्हें  डपटते  हुए  बोले  --- " आज  तक  तुमने  सत्कर्म  किया  है  , जो  मेरा  शिष्य  बनना  चाहते  हो  l  जाओ  पहले  सत्कर्म  करो  l "    इस  झिड़की  को  सुनकर  सुरेन्द्रनाथ  विचलित  नहीं  हुए  और  बोले --- " आज्ञा  दीजिए  महाराज  l "   संत  सूर्यानंदगिरी  ने  कहा ---- " इस  संसार  में  पीड़ित  मनुष्यों  की  संख्या  कम  नहीं  है  l  उन  पीड़ितों  की  सेवा  करो  l "    सुरेन्द्रनाथ  ने  कहा ---- "   जो  आज्ञा  प्रभु  l  मैंने  सम्पूर्ण  अंतस  से  आपको  गुरु  माना  है  l  आपके  द्वारा  कहा  गया  प्रत्येक  वाक्य , प्रत्येक  अक्षर   मेरे  लिए  मूल मन्त्र  है  l  ऐसा  कहकर  सुरेंद्र्नाथ   कलकत्ता  आ  गए   और  अभावग्रस्त  , , लाचार    व  दुःखी   मनुष्य  की  सेवा  करने  लगे  l  निराश्रितों  के  सिरहाने  बैठकर  उनकी  सेवा  करते  वे  गरीबों  के   मसीहा   बन  गए  l  जब  अपने  पास  की  सारी रकम  समाप्त  हो  गई   तो   जिस  गली  का  नाम  उनके  पिता  के  नाम  पर  था , उसी  गली  में  वे  कुली  का  काम  करने  लगे  l  इससे  जो  आमदनी  होती  उससे  वे  अपाहिजों  की  सहायता  करते  l   ऐसा  करते  कई  वर्ष  गुजर  गए  l  इस  अवधि  में  उनकी  उन  संत  से  कोई  मुलाकात  नहीं  हुई  l  एक  दिन  जब  वे  कुली  का  काम  कर  के  जूट  मिल  से  बाहर  निकले   तो  देखा  सामने  गुरुदेव  खड़े  हैं  l  आशीर्वाद  देते  हुए    उन्होंने  कहा --- " सुरेन्द्र  तुम्हारी  परीक्षा   समाप्त  हो  गई  , अब  मेरे  साथ  चलो  l "  इस  आदेश  को  शिरोधार्य  कर  के  वे  चुपचाप  गुरु   के  पीछे -पीछे  चल  पड़े   गुरुदेव  उन्हें  बंगाल , आसाम  पार  कराते  बर्मा  के  जंगलों  में  ले  गए  , यहीं  उनकी  साधना  का  क्रम  शुरू  हुआ  l  गुरु  कृपा  से  वे   महान  सिद्ध  संत  महानंद  गिरी  के  नाम  से   प्रसिद्ध  हुए  l