4 July 2018

WISDOM ---- प्रतिशोध भी सकारात्मक हो

    युवराज  आदित्यसेन   भगवती  के  मंदिर  में  दर्शन  हेतु  आने  वाले  थे  l  पूरा  मंदिर  सजा  हुआ  था  l   वे  आये ,  उन्होंने  अपनी  चरण - पादुकाएं  द्वारपाल  चित्रक  के  पास  छोड़ी और  स्वयं  मंदिर  में  दर्शन  के  लिए  चले  गए  l  रेशमकढ़ी  पादुकाओं  में  धूल  के  कण  देखकर   चित्रक  ने  उन्हें  अपने  अंगोछे  से  साफ  किया  l  लेकिन  पादुकाएं  और  गन्दी  हो  गईं  l  युवराज  बाहर  आये , उद्दंड   स्वभाव   के  तो  थे  , उनने  देखा  चित्रक  सिर  झुकाए  खड़ा  है   l  बिना  सोचे - समझे  उनने  चित्रक  के  कपाल  पर  पादुका  दे  मारी   l  खून  निकल  आया  l  चित्रक  अपमानित  स्थिति  में  ,  क्रोध  की  ज्वाला  में  भरा  हुआ  घर  पहुंचा  l  कई  दिन  उसने  अन्न  नहीं  खाया ,  प्रतिशोध  की  ज्वाला  में  वह  जल  रहा  था  l
  चित्रक  की  पत्नी  कुशला  ने  समझाया --- " स्वामी  !  यह  प्रतिशोध  की  अग्नि  आपको  नष्ट  कर  देगी  l  प्रतिशोध  का  सही  तरीका  मैं  बतलाती  हूँ  l  l  स्वस्थ चित्त  हो  नहाकर  चित्रक  भोजन  को  बैठे   l  भोजन  के  बाद  कुशला  ने  सारी  व्यवस्थाओं  के  साथ   चित्रक  को  विद्दा अध्ययन  के  लिए   वाराणसी  भेज  दिया  l   दस  वर्ष  के  कठोर  तप , विद्दा अध्ययन   और  इन्द्रिय  संयम  ने  उन्हें   आचार्य  चित्रक  बना  दिया  ,  जिनकी  ख्याति   चारों  ओर  फैल  गई   l  
  युवराज   भी  अब  महाराज  बन  गए  l  राजमाता  की  सेहत  के  लिए  एक  यज्ञ   आयोजित  किया  गया ,  जिसका  आचार्य  चित्रक  को   ही  बनाया  गया  l   उन  दिनों  आचार्य  ब्रह्मा  के  रूप में  महाराज  से  भी  ज्यादा  सम्मान  पाते  थे   l  चित्रक  ने  सफलता पूर्वक  यज्ञ  संपन्न  किया  l  दक्षिणा  का  समय  आया  ,  तो  वे  बदले  के  रूप  में  कुछ  भी  मांग  सकते  थे  ,  लेकिन  उनने  आदित्यसेन  की  पुरानी  पादुकाएं  मांग  लीं  l  प्रतिदिन  उनकी  पूजा  करते  l  महाराज  मिलने  आते  तो  देखते  कि  उनकी  पादुकाओं  की  पूजा  हो  रही  है  l   एक  दिन  राजा  ने  पूछा   --- "  आचार्य प्रवर  ! पुरानी पादुकाएं  ,  वह  भी  मेरे जैसे  साधारण  पुरुष  की  ,  आप  क्यों  इनकी  पूजा  करते  हैं  ? "
 चित्रक   ने  कहा ---- "  आज  मैं  जो  कुछ  भी  हूँ , इनकी  एवं  अपनी  पत्नी  की  शिक्षा  की  वजह  से  हूँ   l  मैं  प्रतिशोध  से  जल  रहा  था ,  जब  आपने  इन्हें  मेरे  सिर  पर  मारा  था  l  पत्नी  ने  काशी  भेजा  ,  तब  मैं  आचार्य  बन  सका  l  "    अपने  द्वारपाल  को  इस  रूप  में  देखकर   राजा  शर्मिंदा  हुए  ,  फिर  पुन:  प्रणाम  कर    राज्य  स्तर  पर  उन्हें   सम्मानित  किया   एवं  राजपुरोहित  बनाया   l