19 July 2020

WISDOM ------ मानसिक पराधीनता सबसे बुरी है

 कहते  हैं  कम  से  कम   21  दिन  या  एक - दो  महीने  किसी  भी  कार्य  को  लगातार  किया  जाये ,  या  कोई  स्थिति    लगातार  बनी   रहे     तो  उसकी  आदत  बन  जाती  है   l   फिर  यदि  कोई  बात  युगों  तक  बनी  रहे     तो  वह  लोगों  के  मन - मस्तिष्क  में  गहरी  जड़  जमा  लेती  है l    लोग  यह  समझने  लगते  हैं  कि   उनका  जन्म  ही  इस  स्थिति  के  लिए  हुआ  है  l   यह  बात   सब  पर    लागू    होती  है   जैसे -- पुरुष - प्रधानता --पुरुष  द्वारा  नारी  पर  अत्याचार ,  उच्च  जाति   का  समझने  के  कारण  अपने  से  निम्न  का  शोषण ,  अमीर  द्वारा  गरीब  का  शोषण ,  शक्तिशाली  देश  द्वारा  कमजोर  राष्ट्र  को  गुलाम  बनाना  l  संक्षेप  में  कहें  तो   जिसे  दूसरों  को  गुलाम  बनाने  की  आदत  है  ,  वह  अपनी  इस  आदत  को  कार्य  रूप  देने  के  लिए  नए - नए  तरीके  खोज  लेता  है    और  जिसे  गुलामी  में  रहने  की  आदत  है  ,  वह  इस  सुप्त  अवस्था  में   रहने  को    अपना  भाग्य  मानकर  स्वीकार  कर  लेता  है  ,   जागता    नहीं  है  l   कोई  इक्का - दुक्का   जागरूक  हो  भी  जाये    तो  उसे  ऊँचा  उठने  में  कोई  सहयोग  नहीं  करता ,  लेकिन  गिराने  के  लिए  सब  संगठित  हो  जाते  हैं  l   ' जियो  और  जीने  दो '  को  नहीं  मानता   l   अपने  अहंकार  के  लिए  दूसरे  के  अस्तित्व  को  मिटाने   को  आतुर  है  l
  यह  मानव  जाति   का  सबसे  बड़ा  दुर्भाग्य  है    कि   जो  प्रकृति  उसे  बिना  मांगे  जीवन  देती  है  ,  भूमि , जल , वायु  , प्राण शक्ति  सभी  कुछ  स्नेह  से  देती  है  ,  अब  उसी   पर  अपना  नियंत्रण  कर के  मनुष्य   पता  नहीं   और  क्या  चाहता  है  l   अपनी  इस   महत्वाकांक्षा  से  वह  प्रकृति  को  क्रुद्ध  कर  देता  है  l प्रकृति  कितना  भी  प्रकोप  दिखाए ,  मनुष्य  सुधरता  नहीं  है  l

WISDOM -----

          पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  ने  लिखा  है ---- " जब - जब  मनुष्य  पर    बेअकली   सवार  होती  है    तो  वह  जाति ,  सम्प्रदाय ,  रंग - रूप  ,  भाषा    और  देश  के  आधार  पर   विभाजित   होता  चला  जाता   है   और  अपनी   शांति  व  खुशहाली  नष्ट  करता  रहता  है    l   "   
   अहंकार  एक  प्रकार   का  पागलपन  है    l   कुछ  लोगों  के  अहंकार    का  परिणाम   मानव  समाज  भुगतता  है   l ------------- एक  देश  का  बँटवारा   हुआ  l   विभाजन  रेखा  एक  पागलखाने   के  बीच   में  से  गुजरी   l   तो  अधिकारियों   को  बड़ी  चिंता  हुई  कि   अब  क्या  किया  जाये  l  दोनों  देश    के  अधिकारियों   में  से  कोई  भी  पागलों  को  अपने  देश  में   लेने  को  तैयार  न  था  l   अधिकारी  इस  बात  पर  सहमत  हुए  कि   पागलों  से  ही  पूछा  जाये   कि   वे  किस  देश  में  रहना  चाहते  हैं  l
 अधिकारियों   ने  पागलों  से  कहा  --- देश  का  बँटवारा   हो  गया  है  ,  आप  उस  देश  में  जाना  चाहते  हैं   या  इस  देश  में   l '     पागलों  ने  कहा  --- " हम  गरीबों  का  पागलखाना  क्यों  बांटा  जा  रहा  है  ? हम  में  आपस  में  कोई  मतभेद  नहीं ,  हम  सब  मिलकर  रहते   हैं   , इसमें  आपको  क्या  आपत्ति  ? '
 अधिकारियों   ने  कहा ---- ' आपको  जाना  कहीं  भी  नहीं  है  ,  आप  तो  यह  बताएं  कि   इस  देश  में  रहना  चाहते  हैं  या  उस  देश  में  l '
 पागल  बोले ---- ' यह  भी  क्या  अजीब  पागलपन  है  ,  जब  हमें  जाना  कहीं  नहीं  है   तो  उस  देश  या  इस  देश  से  क्या  मतलब   l  '
अधिकारी  बड़ी  उलझन  में  पड़   गए  ,  उन्होंने  सोचा  व्यर्थ  की  माथापच्ची  से  क्या  लाभ   ?  उन्होंने  विभाजन  रेखा  पर     पागलखाने  के   बीचोंबीच   एक  दीवार  खड़ी  कर  दी  l
  कभी  कभी  पागल  उस  दीवार  पर  चढ़  जाते  ,  और  एक  दूसरे  से  कहते  --- देखा  !  समझदारों  ने  देश  का   विभाजन  कर  दिया   l   न  तुम  कहीं  गए  न  हम  l   व्यर्थ  में  हमारा - तुम्हारा    मिलना - जुलना ,  हँसना - बोलना  बंद  कर  के    इन्हे  क्या  मिला  ? '
  यह  एक  चिंतन  का  विषय  है   कि   पागलपन  किस  पर  हावी  है  ?