पं. श्रीराम शर्मा आचार्य ने लिखा है ---- ' जब स्रष्टि का सृजेता ईश्वर स्वयं को श्रेष्ठ सिद्ध करने का कभी कोई प्रयास नहीं करता , तब हम मरणधर्मा होते हुए भी स्वयं को श्रेष्ठ मानने व सिद्ध करने का उपाय किस आधार पर कर सकते हैं ? इसलिए मनुष्य को जो कुछ भी विशेषता प्राप्त हो उसका सदुपयोग स्वयं के विकास में और दूसरों के कल्याण के लिए करना चाहिए l जिन उपलब्धियों के कारण वह आज गर्वोन्मत हो रहा है , उन्हें नष्ट होने में क्षण भर भी नहीं लगेगा l इसलिए अपनी उपलब्धियों व सफलताओं को ईश्वर की कृपा मानते हुए उनके प्रति कृतज्ञ होना चाहिए l "
अहंकारी व्यक्ति का पतन निश्चित है l हिरण्यकशिपु , रावण , कंस , दुर्योधन के उदाहरण सर्वविदित हैं , कोई भी अमर नहीं हुआ l जब इनका अहंकार पराकाष्ठा पर पहुँच गया तो काल ने उनको समाप्त कर दिया l
अहंकारी व्यक्ति का पतन निश्चित है l हिरण्यकशिपु , रावण , कंस , दुर्योधन के उदाहरण सर्वविदित हैं , कोई भी अमर नहीं हुआ l जब इनका अहंकार पराकाष्ठा पर पहुँच गया तो काल ने उनको समाप्त कर दिया l