15 September 2021

  एक   चोर  चोरी  करते  पकड़ा  गया  l   राजा  ने  उसे  फांसी  की  सजा  दे  दी  l   जब  उसकी  अंतिम  इच्छा  पूछी  गई   तो  उसने  कहा  --- " मैं  प्रजापालक  महाराज  के  एक  बार  दर्शन  करना  चाहता  हूँ   l "  राजा  दयालु  था  l   वह  मिलने  चोर  के  पास  आया   l   चोर  ने  कहा ---- "राजन  !  मैंने  अपराध  किया  है  ,  मुझे  मरने  का  कोई  अफ़सोस  नहीं  ,  पर  एक  विद्या  मेरी  मृत्यु  के  साथ  ही   इस  लोक  से  लुप्त  हो  जाएगी  l "  राजा  ने  पूछा  ---- कौन  सी  विद्या  ? '  चोर  बोला  ---- " सोने की  कृषि   की   l  मैं  खेतों  में  सोना  देने  वाला  पेड़  उगा   सकता  हूँ   l "  राजा  ने  फाँसी   स्थगित    कर    दी   और  चोर  के  कहने  पर  एक  बड़ा  सा  खेत  जुतवा  दिया  l   दिन  रात  हल  चलने  लगे   l   राजा  स्वयं  दिन  में   तीन - चार  बार  जाकर  देखता   l   एक  ,महीना  बीत  गया   l   जिस  दिन   बीज  बोन  का  क्रम  आया   ,   सारी   प्रजा  खेत  के  चारों  और  खड़ी   थी   ,  चोर  ने  अपनी  जेब  से  काले - काले   बीज  निकाले  और  एक  ऊँची  जगह  पर  खड़ा  होकर  बोला ----- " यह  स्वर्णलता  के  बीज  हैं  ,  जो  मैं  शल्य  देश  से  लाया  था  ,  पर  काश  !  मैं  पहले  से  चोर  न  होता   तो  खुद  ही  सोना  उगाकर  पृथ्वी  का  सबसे  बड़ा  कुबेर  बन  जाता   l "  फिर  वह  बोला ---- " इन  बीजों  को  वही  बो  सकता  है  ,  जिसने  पहले  कभी  चोरी  न  की  ही  ,  कोई  अपराध  न  किया  हो  l   यदि  अपराध  किया  होगा   तो  शरीर  तुरंत  संज्ञाशून्य   हो  गिर  जायेगा   l   आप  तो  सभी  धर्मात्मा  हैं  , आइये  l  "  प्रजा  ही  नहीं  राजा  भी  चुपचाप  खड़े  थे   l   सभी  ने  कभी  न  कभी  कोई  अपराध   या  चोरी  की  ही  थी   l   सब  वहां  से  खिसक  गए  l   जब  राजा  भी  जाने  लगा   तो   वह  बोला ----  महाराज  !  आप  तो  बो  ही  सकते  हैं   l  "  वे  कैसे  बोते   ?  जब  से  होश  संभाला  ,  हर  दिन  की  घटनाएं  आँखों  के  सामने   घूमने  लगीं ,  निरपराध     तो  वे  भी  नहीं  थे     l   फिर  चोर  बोला   ---- महाराज  !  मुझे  अकेले  को  फाँसी   क्यों  दे  रहे  हैं   ? "       -------     ----------                                                                                                                                                                                  चाणक्य  ने    एक  साधारण  बालक  चन्द्रगुप्त  मौर्य  को   राष्ट्र     निर्माता  बना  दिया   l   चाणक्य  ने  अपने  शिष्य  को  शस्त्र  और   शास्त्र   में  पारंगत  बनाने  के  साथ - साथ   उसके  चरित्र  गठन  की   ओर   भी  ध्यान  दिया   l  उनका  यह  स्पष्ट  मत  था  कि  चरित्र  ही  समस्त  सफलताओं  और  सदुद्देश्यों  को  प्राप्त  करने  का   मुख्य  आधार  है   l   इसके  आभाव  में  बड़े - बड़े  शक्तिशाली  साम्राज्य   और  सम्राटों  का  नाश  व  पतन  हुआ  है   l