11 November 2023

WISDOM ----

 पं. श्रीराम  शर्मा   आचार्य जी  लिखते  हैं ---- " जीवन  निर्वाह  के  लिए  दूसरों  के  सहारे  रहना  पराधीनता  है  l  इसी  तरह  मन  और  बुद्धि  को  ताला  लगाकर  किसी  बात  को  , किसी  विचार  को   मान  लेना  भी  मानसिक  पराधीनता  है  ,  विचारों  की  गुलामी  है  l  "        विचारों  की  यह  गुलामी   हर  युग  में  रही  है   l  जिसने  अपने  को  इस  गुलामी  से  मुक्त  किया  , वही  स्वतंत्र  है  l     जो   निर्भय  है  ,  विशेष  रूप  से  जिसे  मृत्यु  का  भी  भय  नहीं  है  , वही  आज़ादी  का  आनंद  उठा  सकता  है  l  हमारे  धर्म ग्रन्थ   हमें   जीवन  जीने  की  कला  सिखाते  हैं  l   रावण  का  आतंक  दसों  दिशाओं  में  था  l  उसने  काल  को  भी  बंदी  बना  लिया  था  l  वह  अत्यंत  शक्तिशाली  और  महान  तांत्रिक  व  मायावी  था  l  उसकी  शक्ति  से  सब  थर -थर  कांपते  थे  , उसकी  हर  बात  को  आँख  बंद  कर  स्वीकार  करते  थे   लेकिन  उसके  भाई  विभीषण  ने  उसे  कई  बार  समझाया  कि  उसकी  राह  गलत  है , वह  शक्ति  का  दुरूपयोग  कर  रहा  है  l   जब  उसने  भरी  सभा  में   रावण  से  कहा   कि  माँ  सीता   साक्षात्  भगवती  हैं  ,  भगवान  राम  से  वैर  नहीं  लो  l  तब  रावण  ने  विभीषण  को  भला -बुरा  कहा  और  लात   मारकर    सभा  से  निकाल  दिया  l  विभीषण  ईश्वर  विश्वासी  था  ,  उसे  विश्वास  था  कि  हमारी  साँसे  ईश्वर  की  दी  हुई  है  ,  रावण  अपनी  ताकत  से  ईश्वर  के  विधान  को  नहीं  बदल  सकता  l   उसने  उसी  पल  सोने  की  लंका  को  त्याग  दिया   और  भगवान  श्रीराम  की  शरण  में  चला  गया  l   ईश्वर  की  शरण  में  जाने  का   क्या  फायदा  हुआ   ?  यह  इस  संसार   अपने  स्वार्थ  और  सिर्फ  अपने  ही  लाभ  को  देखने  वालों  को  समझना  चाहिए   l  भगवान  ने  विभीषण  को  सोने  की  लंका  का  राजा  बना  दिया   और  कहते  हैं   मृत्यु  से  न  डरने  वाले  विभीषण  को  भगवान  ने  अमर  कर  दिया  l  इस  कलियुग  में   विभिन्न  परिवारों  में , संस्थाओं  में  और  समूचे  संसार  में   अपने  धन  और  शक्ति  के  अहंकार  में    हर  शक्तिशाली   अत्याचार  और  अन्याय  करता  है   और  उसे  सही  सिद्ध  करने  के  लिए  विभीषण  को  ' घर  का  भेदी ' कहता  है   लेकिन   सत्य  तो  यह  है  कि  असुर  कुल  में  पैदा  होकर  भी    वह  सन्मार्ग  पर  था ,  अत्याचार  और  अन्याय  के  खिलाफ  खड़े  होने  की  उसमें  हिम्मत  थी  और  साथ  ही  उसे  तरीका  भी  पता  था  l  वह   जानता    था  कि  रावण  से  सीधे  मुकाबला  संभव  नहीं  है   इसलिए  वह  ईश्वर  के  शरणागत  हुआ  ,  अपने  जीवन  की  बागडोर  भगवान  के  हाथों  में  सौंप  दी  l  भगवान  ने  उसकी  नैया  पार  लगा  दी  l  इसी  तरह  अर्जुन  ने  अपने  जीवन  रूपी  रथ  की  बागडोर  भगवान  श्रीकृष्ण  को  सौंप  दी  l  भगवान  ने  उसे  हर  खतरे  से  बचाया   और  पांडव  विजयी  हुए  l