16 February 2024

WISDOM ------

   लघु कथा ---- ' मारने  वाले  से  बचाने  वाला  बड़ा  होता  है  l '     सुबह -सुबह   एक  लोहार  घर  से  बाहर  निकला  l  रास्ते  में  उसे  लोहे  के  दो  टुकड़े  मिल  गए  l  उसने  उन्हें  उठा  लिया  l  घर  लौटने  पर  लोहार  ने  एक  टुकड़े  से  तलवार  बनाई  और   दूसरे  टुकड़े  से  ढाल  बना  दी  l   कुछ  दिनों  के  बाद  एक  योद्धा  आकर  तलवार  और  ढाल  खरीद  कर  ले  गया  l  उस  योद्धा  ने  कई  युद्धों  में  उस  तलवार  और  ढाल  का  उपयोग  किया  l  एक  युद्ध  में  तलवार  टूट  गई  और  ढाल  ज्यों  की  त्यों  सलामत  रही  l   टूटी  तलवार  को  योद्धा  घर  ले  आया   और  एक  कोने  में  उसे  रख  दिया  l  ढाल  भी  पास  ही  पड़ी  थी  l  रात  में  जब  सब  सो  गए  तो  तलवार  कराहती  हुई  ढाल  से  बोली  ----- "  बहन  !  देखो  मेरी  कैसी  दुर्दशा  हो  गई    और  एक  तू  है  जो   ज्यों  की  त्यों  सुरक्षित  है  l "  ढाल  ने  कहा ---- " हम  दोनों  में  एक  ही  फर्क  है  ,  तू  सदैव  किसी  को  मारने -काटने  का  काम  करती  है    और  मैं  बचाने   का  काम  करती  हूँ  l  मारने  वाले  से  बचाने  वाला  बड़ा  होता  है  l  "                           यह  सत्य  ईर्ष्या , द्वेष  और  अहंकार  से  पीड़ित  लोगों  की  समझ  में  आ  जाये  तो  संसार  में  शांति  और  सुकून  आ  जाये  l   जन्म  और  मरण   विधाता  के  हाथ  में  है  ,  ईश्वर  की  इच्छा  के  बिना  एक  पत्ता  भी  नहीं  हिल  सकता  l  संसार  में  आज  यही  दुर्बुद्धि  व्याप्त  है  , अहंकारी  स्वयं  को  भगवान  समझने  लगा  है  l  

WISDOM -----

   श्रीमद भगवद्गीता  में  भगवान  कहते  हैं  ---  जो  मान -अपमान  , निंदा -प्रशंसा  में सम  रहता  हैं  , इनसे  विचलित  नहीं  होता  , ऐसा  भक्त  मुझे  प्रिय  है  l  '  ऐसी  स्थिति  तभी  संभव  है  जब  व्यक्ति  में  अहंकार  न  हो  l  यदि  अहंकार  होगा  तो  मान -सम्मान  मिलने  पर  व्यक्ति  के  अहंकार  को  पोषण  मिलेगा  , वह  और  अहंकारी  हो  जायेगा   l  इसके  विपरीत   यदि  निंदा  और  अपमान  मिलता  है   तो  अहंकार  पर  चोट  पहुँचती  है   और  पोषण  न  मिलने  पर  यही  अहंकार  घाव  की  भांति  रिसने  लगता  है   l  इसलिए   भगवान  हमें  समझाते  हैं  कि  यदि  हम  अपने  अहंकार  को  छोड़  दें  तो  मान -अपमान  स्वत:  ही  समाप्त  हो  जाएंगे   अर्थात   लोग  अपना  काम  करते  रहेंगे  , हमें  अपमानित  करें  या  प्रशंसा  करे  , हमारा  मन  विचलित  नहीं  होगा  l  अहंकार  समाप्त  होते  ही  हम  में  न  तो  मान  पाने  की  लालसा  रहेगी   और  न  ही  अपमानित  होने  का  भय  सताएगा  l  -------- ----------------स्वामी  रामतीर्थ   अमेरिका  प्रव्रज्या  हेतु  गये  थे  l  उनका  उद्बोधन  प्रसिद्द  चिंतकों  व  विचारकों  के  मध्य  हुआ  तो  सभी  ने  एक  स्वर  से   उनके  अद्भुत  व्यक्तित्व  और  प्रकांड  पांडित्य  की  प्रशंसा  की  l  उद्बोधन  के  पश्चात्   वे  जिस  महिला  के  घर  रुके  हुए  थे  , उनके  घर  पहुंचे  और  उस  महिला  से  बोले  ---- "  बहन  !  आज  ईश्वर  ने  इस  नाचीज  को  अन्यथा  ही  बहुत  प्रशंसा  दिलवाई  l "  कुछ  दिनों  उपरांत  वे  न्यूयार्क   के  ब्रौंक्स  क्षेत्र  से  गुजर  रहे  थे  कि  उनकी  वेशभूषा  को  देखकर  कुछ  अराजक  तत्वों  ने  उनके  साथ  दुर्व्यवहार  किया  ,  उन  पर  छींटाकशी  करने  लगे  l  घटना  की  खबर  जब  उस  महिला  को  लगी   तो  वो  कुछ  साथियों  को  लेकर   स्वामीजी  को  लेने  पहुंची  l  स्वामी  रामतीर्थ  उसी  निर्विकार  भाव  से  बोले  ---- "  बहन  !  आप  हस्तक्षेप  न  करो  l  आज  ईश्वर  का  अपने  इस  भक्त  को   अपमान  से  भेंट  कराने  का  मन  है  l  भगवान  के  भक्त  के  लिए  मान  क्या  और  अपमान  क्या  ? "  श्रीमद् भगवद्गीता  में  जिस  स्थितप्रज्ञ   का  वर्णन  है  , उस  स्वरुप  का  दर्शन  उनमें  सबको  उन  क्षणों  में  हुआ  l