लघु कथा ---- एक राजा ने अपने राज्य में एक नए पुरस्कार की घोषणा की l मंत्रियों से सलाह करने पर उन्होंने सुझाव दिया कि राज्य के किसी वृद्ध व्यक्ति को यह सम्मान दिया जाये l महामंत्री इस बात से सहमत नहीं थे , उनका कहना था कि लंबी उम्र की प्रशंसा करने से कोई उदेश्य पूर्ण नहीं होता , यदि सम्मान प्रदान करना है तो उसको दिया जाए , जिसने अपने जीवन में सत्कर्म किए हों , स्वयं सन्मार्ग पर चला हो और अपने आचरण से लोगों को शिक्षा दी हो l " पर राजा ने महामंत्री की बात नहीं मानी और अपने चाटुकारों की बात मानकर एक व्यक्ति को यह पुरस्कार देने की घोषणा की l वह व्यक्ति पूर्व में दुर्दांत अपराधी था और जेल की सजा भी काट चुका था l जब वह राजदरबार में पुरस्कार लेने आया तो महामंत्री ने उसके निकट फूलों को चढ़ाकर उन फूलों को प्रणाम किया l राजा को महामंत्री का यह व्यवहार विचित्र लगा , उन्होंने इसका कारण पूछा तो महामंत्री ने कहा --- " राजन ! प्रणाम मैंने उन पुष्पों को किया है , जो अल्प आयु में ही अपनी सुगंध सब ओर फैला जाते हैं l यदि आपने किसी ऐसे व्यक्ति को पुरस्कार दिया होता जिसने अपना जीवन सार्थक किया होता तो पुरस्कार की और आपकी गरिमा रह जाती l " राजा को अपनी गलती का भान हुआ l
30 June 2023
29 June 2023
WISDOM -----
1 . संत रैदास की एक बार इच्छा हुई कि वे चित्तौड़ की रानी झाली के यहाँ जाएँ , जिसने काशीवास में आमंत्रण दिया था l संत के आने पर भंडारा हुआ l सभी विद्वानों को आमंत्रित किया गया l एक अछूत चमड़ा गांठने वाले का इतना सम्मान देखकर ब्राह्मणों ने यह निर्णय लिया कि आवश्यक खाद्य सामग्री लेकर वे स्वयं भोजन बनाएंगे l जब वे अलग से भोजन करने बैठे तो देखा कि हर ब्राह्मण पंडित की बगल में , एक रैदास बैठें हैं l यह देख सभी रैदास के चरणों में गिर पड़े और क्षमा मांगी l ईश्वर की नजर में कोई बड़ा , छोटा , ऊँच -नीच नहीं है l जाति और धर्म के आधार पर भेदभाव तो मनुष्य ने अपने स्वार्थ और अहंकार की पूर्ति के लिए किया है l
2 . रामकृष्ण परमहंस परस्पर चर्चा में शिष्यों को बता रहे थे --- मनुष्यों में कुछ देवता होते हैं , शेष तो नर पिशाच ही होते हैं l नरेंद्र ने पूछा --- भला इन नर पिशाचों , मनुष्यों और देवताओं की पहचान क्या है ? ' परमहंस जी ने कहा ----वे मनुष्य देवता हैं जो दूसरों को लाभ पहुँचाने के लिए स्वयं हानि उठाने के लिए तैयार रहते हैं l मनुष्य वे हैं जो अपना भी भला करते हैं और दूसरों का भी l नर पिशाच वे हैं जो दूसरों की हानि ही सोचते और करते हैं , भले ही इस प्रयास में उन्हें स्वयं भी हानि उठानी पड़े l "
28 June 2023
WISDOM -----
लघु कथा ---- एक गृहस्थ को सर्वोत्तम सौन्दर्य की खोज थी l सो वो एक तपस्वी के पास पहुंचे और अपनी जिज्ञासा प्रकट की l तपस्वी ने कहा --- श्रद्धा है तो पत्थर में भी भगवान हैं , मिटटी के ढेले से गणेश जी बन जाते हैं l एक भक्त से पूछा , तो उसने कहा --- प्रेम ही सुन्दर है साँवले कृष्ण गोपियों के प्राणप्रिय थे l उसका समाधान नहीं हुआ l वह आगे बढ़ा तो उसे एक सैनिक मिला , जो युद्ध भूमि से लौट रहा था l गृहस्थ ने उससे पूछा ---सच्चा सौन्दर्य कहाँ है ? " सैनिक का उत्तर था ----- ' शांति में l ' जितने मुँह उतनी बातें l निराश वह अपने घर लौटा l दो दिन से उसकी प्रतीक्षा में सभी व्याकुल थे l उसे देखकर दोनों छोटे बच्चे उछल -उछलकर अपनी ख़ुशी प्रकट कर उससे लिपट गए l माँ की आँखें इंतजार में रो -रोकर सूज गईं थीं , उन्होंने उसे ह्रदय से लगा लिया l पत्नी के मुरझाये चेहरे पर ख़ुशी लौट आई l गृहस्थ की सर्वोत्तम सौन्दर्य की खोज पूरी हुई l वह कहने लगा --- मैं कहाँ भटक रहा था l श्रद्धा , प्रेम और शांति --इन तीनों के दर्शन तो घर में ही हो रहे हैं l यही सबसे श्रेष्ठ और सर्वोत्तम सौन्दर्य है l
2 . लघु कथा --- एक देव मंदिर का पुजारी भगवान की पूजा तो पूरे विधि -विधान से करता था , किन्तु सुबह -शाम पूजा करने के बाद बचे हुए समय में वह स्वार्थ के वशीभूत होकर ऐसे कर्म करता जिससे अन्य प्राणी कष्ट पाते l और इतना कर्मकांड करने के बाद भी उसके जीवन में सुख -शांति नहीं थी l बहुत दुःखी होकर एक दिन उसने भगवान की प्रार्थना की --- 'हे प्रभु ! बताइए , इतनी पूजा -पाठ करने के बाद भी क्यों जीवन में दुःख है , अशांति है ? ' उसके ह्रदय में बैठे भगवान बोले , अंत:करण से आवाज आई ---' मूर्ख !मेरी पूजा करने के बाद भी यदि सेवा की इच्छा न हो तो ऐसी पूजा व्यर्थ है l क्या मैं इन पत्थर की मूर्तियों में ही हूँ , इन जीते -जागते प्राणियों में तुझे मेरा रूप नहीं दीखता l मेरी पूजा के बाद भी सत्कर्म करने की , सन्मार्ग पर चलने की और श्रेष्ठ विचारों को मन में रमने की प्रवृत्ति नहीं जागती तो ऐसी पूजा व्यर्थ है l ' अब पुजारी को पूजा का सही अर्थ समझ में आया और उसने पूजा के साथ लोकसेवा को अपने नित्य कर्म में सम्मिलित किया l
27 June 2023
WISDOM -----
पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं ---- 'प्रशंसा के अनेक भेद हैं l प्रशंसा को अपना स्वार्थ साधने के लिए , अपना काम निकालने के लिए , देश-काल-परिस्थिति का ज्ञान किए बगैर करने को चाटुकारिता कहा जाता है l जो इनसान चाटुकारिता प्रिय होता है , उसमे विवेक का घोर अभाव होता है और वह बिना विचारे अपनी प्रशंसा करने वालों पर मेहरबान हो जाता है l ' राजतन्त्र में राजा को खुश करने के लिए विशेष रूप से चाटुकारों की व्यवस्था की जाती थी l उनका काम ही था कि वे राजाओं के विभिन्न कार्यों , गुणों आदि की प्रशंसा करें l वे लोग बड़े विशेषज्ञ होते थे और वही बोलते थे , जो राजा को पसंद हो फिर चाहे वह सत्य हो या झूठ हो l वर्तमान समय में चाटुकारिता का दायरा बहुत व्यापक हो गया है l अब केवल मुँह से बोलकर ही चापलूसी नहीं होती l कहीं अपार धन दे कर , चुनाव जिताने में योगदान देकर , अपने नेता की वाहवाही करने वालों की संख्या बढ़ाकर आदि अनेक तरीकों से चापलूसी की जाती है l अपने अधिकारी को खुश करने के लिए लोग उनकी पत्नी और बच्चों तक की खुशामद करते हैं l कहीं तो हाल ऐसा भी है कि सुबह जागने से रात को सुलाने तक चापलूस पीछा नहीं छोड़ते l इस कारण चाहे छोटा अधिकारी हो या बड़ा नेता , उनकी स्वयं की बुद्धि काम करना बंद कर देती है , पूरी व्यवस्था चाटुकारों के इशारे पर चलती है l वर्तमान युग में जब सम्पूर्ण विश्व एक मंच पर है , चाटुकारिता का एक नया रूप संसार में है जो मानव सभ्यता के लिए खतरे की घंटी है l स्वयं को चापलूस कहलाने से कद कुछ कम हो जाता है , इसलिए जिनके पास अपार धन -वैभव है , वे उस धन का दान -पुण्य भी करते हैं लेकिन इसमें उनका नि :स्वार्थ भाव नहीं होता , वे अपने धन के बल पर बड़े -बड़े नेताओं , अधिकारियों , संस्थाओं को भी अपने नियंत्रण में कर लेते हैं l मानव जीवन के विभिन्न क्षेत्रों से संबंधित नीति निर्धारण में भी उनका दखल हो जाता है l फिर वे ही नीतियाँ लागू होती हैं जिसमे उनका हित हो , उनकी संपदा बढ़े l प्रजा का हित उपेक्षित हो जाता है l धन मानव जीवन के लिए अति आवश्यक है लेकिन जब यही धन मानव जीवन के विभिन्न क्षेत्रो ---शिक्षा , चिकित्सा , कृषि , मनोरंजन आदि पर अपना कब्ज़ा कर लेता है तो वह उसे व्यवसाय बन देता है और व्यापार का मुख्य उदेश्य ही लाभ कमाना है l
25 June 2023
WISDOM ----
पुराण में एक कथा है ---- समुद्रमंथन के दौरान भगवान शिव ने जगत कल्याण के लिए विष का पान कर लिया था l इससे उनका कंठ नीला पड़ गया l ऐसा माना जाता है कि जिस माह में महादेव ने विषपान किया , वह सावन माह था l विषपान से भगवान शिव के शरीर का ताप बढ़ने लगा , जिसे शांत करने के लिए देवों ने शीतलता प्रदान की , लेकिन इससे भी भगवान शिव की तपन शांत नहीं हुई , तब उन्होंने शीतलता पाने के लिए चंद्रमा को अपने सिर पर धारण किया l देवराज इंद्र ने घनघोर वर्षा की जिससे भगवान शिव को शीतलता मिले l इसी घटना के बाद से सावन के महीने में शिवजी को प्रसन्न करने और शीतलता प्रदान करने के लिए जलाभिषेक किया जाता है l
24 June 2023
WISDOM ----
लघु कथा ---- एक बार महाराजा पुरंजय ने राजसूय यज्ञ का आयोजन किया l इसमें उन्होंने दूर -दूर से ऋषि -मुनियों को आमंत्रित किया l यज्ञ की पूर्णाहुति का दिन आया l महाराज , महारानी , राजकुमार सभी यज्ञ मंडप में विराजमान थे l वेद मन्त्रों की ध्वनि से वातावरण गुंजित हो रहा था l अचानक एक किसान के रोने की आवाज सुनाई दी l वह रोते हुए कह रहा था --- " डाकुओं ने मेरी संपत्ति लूट ली , मेरी गाय छिनकर ले गए l अभी वे थोड़ी ही दूर गए होंगे , राजा तुरंत उनको पकड़कर मेरी संपत्ति दिलाएं l " पंडितों ने कहा --- "इस व्यक्ति को दूर ले जाओ , यदि राजा इस पर दया कर के पूर्णाहुति किए बिना उठ गए तो देवता कुपित हो जायेंगे l " लेकिन राजा किसान का रुदन सुनकर व्याकुल हो गए और बोले --- " मेरा पहला कर्तव्य प्रजा का संकट दूर करना है l मैंने अनेक यज्ञ पूर्ण किए हैं l आज मैं पहली बार यज्ञ पूर्ण किए बिना अपने राज्य के किसान का संकट दूर करने जा रहा हूँ l " उनके यह कहने पर साक्षात् यज्ञ भगवान प्रकट हुए और बोले -- " राजन ! तुम्हे कहीं जाने की आवश्यकता नहीं है l यह तुम्हारी परीक्षा थी कि तुम अपनी प्रजा के प्रति कर्तव्य का पालन करते हो या नहीं l अब तुम्हे सौ राजसूय यज्ञों का फल मिलेगा l "
23 June 2023
WISDOM ---
शिष्य ने गुरु से पूछा --- " शास्त्रों में वर्णित योग प्रणालियों में कौन सी प्रणाली सर्वश्रेष्ठ है ? " गुरु बोले ---- "वत्स ! प्रणालियाँ श्रेष्ठ नहीं होतीं , उनको करने के पीछे की भावना उन्हें उचित स्वरुप प्रदान करती है l शरीर को हिलाने -डुलाने का नाम योग नहीं है , वरन योग का सच्चा अर्थ मनुष्य का भावनात्मक संतुलन है l यदि मनुष्य कर्म संस्कारों का क्षय करते हुए भावनात्मक रूप से संतुलित हो जाता है , तभी वह सच्चा योगी कहलाता है l " आज संसार में कितने ही लोग योग करते हैं , प्राणायाम करते हैं , माला जपते हैं लेकिन फिर भी संसार में कितनी ही घातक बीमारियाँ हैं , सभी सस्ते , महंगे अस्पताल , दवाखाने अस्वस्थ लोगों से भरे हैं l इसके मूल में कारण यही है कि मनुष्य का मन बड़ा चंचल है l योग , प्राणायाम करते समय मन में पवित्र भाव होने चाहिए , लेकिन उसी समय सारे ऊट -पटांग विचार मन में आते है l व्यक्ति चाहे किसी भी धर्म का हो , अपने भगवान का ध्यान करते समय , माला जपते समय , माला के मनगे तो खिसकते जाते हैं लेकिन मन बड़ी तेजी से कहीं का कहीं भागता है l संसार में आकर्षण इतना है कि मन को नियंत्रित करना बड़ा कठिन है l श्रीमद् भगवद्गीता में भगवान कहते हैं ---- निष्काम कर्म से मन निर्मल होता है , जन्म -जन्मान्तर के कुसंस्कार कटते हैं l आचार्य श्री कहते हैं --- अपने विचारों का परिष्कार करो , योग , प्राणायाम के साथ मानसिक पवित्रता भी जरुरी है l जो ऐसा कर पाते हैं वे शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ भी होते जाते हैं l
21 June 2023
WISDOM ------
' कर्म की गति बड़ी गहन है l '----- पुराण की एक कथा है --- एक बार नारद जी अपने एक शिष्य के साथ पृथ्वी पर भ्रमण कर रहे थे l रास्ते में उन्हें प्यास लगी तो प्याऊ पर पानी पीकर एक पेड़ की छाया में सुस्ताने लगे l तभी उन्होंने देखा कि एक कसाई 30 बकरों को लेकर जा रहा है l उनमे से एक बकरा झुण्ड में से निकलकर एक सेठ की दुकान में रखे बोरी में अनाज को खाने लगा l सेठ को उस पर बहुत क्रोध आया , उसने छड़ी से उसे खूब मारा और कसाई के हवाले कर दिया l यह सब देख नारद जी को हँसी आ गई l शिष्य ने उनसे हँसने का कारण पूछा तो नारद जी ने कहा ---- " यह बकरा इसी दुकान का मालिक सेठ मूलचंद है जो अपने कर्मों के कारण बकरा बना l अपने मोह और आसक्ति के कारण ही यह उस दुकान में गया और अन्न के दाने खाने लगा l इस दुकान का वर्तमान सेठ इसी मूलचंद का बेटा है l जिस बेटे के लिए उसने इतना कमाया , मिलावट की , बेईमानी की , वही बेटा आज इसे थोड़ा सा अन्न भी खाने को नहीं दे रहा l इस बकरे ने थोड़ा सा खा भी लिया तो इतनी पिटाई की और कसाई को भी सौंप दिया l कर्म की यह गति और मनुष्य का मोह देखकर मुझे हँसी आ रही है l " जो समझदार हैं , कर्म की गति को समझते हैं उनकी चाहे बड़ी दुकान हो या ठेला , वे अपने पास आने वाले किसी गरीब को कभी निराश नहीं करते , सड़क पर घूमने वाले जानवरों को भी कुछ न कुछ देकर पुण्य संचित कर लेते हैं l आचार्य श्री लिखते हैं --" -मृत्यु के बाद हमारे कर्म हमारा पीछा नहीं छोड़ते l हम समस्याओं से भागकर दुनिया के किसी भी कोने में चलें जाएँ , हमारे कर्म हमें उसी तरह ढूंढ लेते हैं जैसे बछड़ा हजार गायों में भी अपनी माँ को ढूंढ लेता है l कर्मों का फल तो भुगतना ही पड़ता है , लेकिन कब और कैसे यह भुगतान करना होगा इसे काल निश्चित करता है l l '
19 June 2023
WISDOM ------
संत स्वामी करपात्री जी महाराज ने रामायण मीमांसा नामक ग्रन्थ की रचना की l ग्रन्थ को प्रकाशन के लिए उन्होंने प्रेस में भेज दिया l बहुत दिनों तक ग्रन्थ प्रकाशित न होने पर उन्होंने राधेश्याम खेमका जी से इसका कारण पूछा l उन्होंने उत्तर दिया --- " महाराज , ग्रंथ तो तैयार है , लेकिन कुछ लोगों का मानना है कि उसमें आपका एक सुंदर चित्र छापा जाए l चित्र के तैयार होने में विलंब हो जाने के कारण ही ग्रन्थ अब तक तैयार नहीं हो पाया l " स्वामी जी ने तुरंत प्रतिवाद करते हुए कहा ----- " ख़बरदार ! ऐसी गलती नहीं करना l मेरी पुस्तक भगवान राम के पवन चरित्र पर लिखी गई है l उसमें मेरा नहीं , बल्कि भगवान श्रीराम का चित्र होना चाहिए l " खेमका जी ने कहा --- " ठीक है , जैसा आप कहते हैं , वैसा ही होगा l "कुछ क्षण मौन रहकर करपात्री जी बोले ---- " संन्यासी को अपनी प्रशंसा व प्रचार से बचना चाहिए l समाज के लिए अच्छे विचार उपयोगी हैं , न कि मेरे चित्र l भगवान श्रीराम का चित्र देने से ही ग्रंथ की गुणवत्ता बढ़ेगी l "
18 June 2023
WISDOM ----
पुराणों में गोवर्धन पर्वत के संबंध में कथा आती है कि वह कभी सुमेरु पर्वत का शिखर हुआ करता था l जब श्री हनुमान जी सेतुबंधन के समय उसे ला रहे थे तो उनके ब्रजभूमि तक पहुँचते -पहुँचते घोषणा हो गई कि सेतुबंधन का कार्य पूरा हो गया है l अब पर्वत लाने की आवश्यकता नहीं है l यह घोषणा सुनकर हनुमान जी ने गोवर्धन को वहीँ रख देना चाहा , जहाँ से वे उसे उठाकर ला रहे थे l ऐसे में गोवर्धन पर्वत ने श्री हनुमान जी से कहा ----" तुम मुझे घर से , परिवार से , कुटुंब से अलग कर के भगवान की सेवा के लिए ले जा रहे थे , सो तो ठीक था , लेकिन अब मुझे भगवान की सेवा में लगाए बिना मार्ग में यों ही छोड़ देना , यह किसी भी द्रष्टि से उचित नहीं है l हमारे लिए उचित व्यवस्था बनाए बिना छोड़कर मत जाओ l " हनुमान जी ने फिर भगवान राम से पूछा ---- ' क्या किया जाए ? ' भगवान ने उत्तर दिया ---- " गोवर्धन को ब्रज में स्थापित कर दो l अभी तो मेरा राम अवतार है , जब मैं कृष्ण अवतार में आऊंगा तब गोवर्धन को अपना लीला केंद्र बनाऊंगा l अभी तो इसे यहाँ सेतु पर रख दिया जाये तो मैं सेतु पार करते समय उस पर पैर रखकर निकल जाऊँगा l लौटते समय संभव है कि सेतु का प्रयोग न करना पड़े l इसलिए ब्रज में गोवर्धन स्थापित हो जाने पर मई उस पर गाय चराने के लिए नंगे पांव विचरण करूँगा , उसके झरनों के जल में स्नान करूँगा , उसकी मिटटी को अपने शरीर पर लगाऊंगा, उसके फूलों से अपना श्रंगार करूँगा और अपना सम्पूर्ण किशोर काल वहीँ गुजरूँगा l " भगवान की इस घोषणा से संतुष्ट होकर गोवर्धन ब्रजभूमि में स्थापित हो गए l
WISDOM -----
एक बार रानी रासमणि के गोविन्द जी की मूर्ति पुजारी के हाथ से गिरने के कारण खंडित हो गई l रानी रासमणि ने ब्राह्मणों से उपाय पूछा l ब्राह्मणों ने खंडित मूर्ति को गंगा में विसर्जित कर नई मूर्ति बनवाने का सुझाव दिया l उनके इस सुझाव से रानी बहुत दुःखी हुईं कि अब तक जिन गोविन्द जी को श्रद्धा -भक्ति के साथ पूजा जाता रहा , उन्हें अब गंगा में विसर्जित करना पड़ेगा l उन्होंने रामकृष्ण परमहंस से इस संबंध में पूछा तो वे बोले ---- " यदि आपके किसी संबंधी का पैर टूट जाता तो आप उसकी चिकित्सा करवातीं या उसे नदी में प्रवाहित करतीं ? " रानी रासमणि उनका आशय समझ गईं l उन्होंने म खंडित मूर्ति को ठीक करवाया और पहले की भांति पूजा आरम्भ कर दी l एक दिन किसी ने स्वामी रामकृष्ण परमहंस से पूछा --- " मैंने सुना है कि इस मूर्ति का पैर टूटा है l " इस पर वे हँसकर बोले ---- " जो सबके टूटे को जोड़ने वाले हैं , वे स्वयं टूटे कैसे हो सकते हैं l "
17 June 2023
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मानव शरीर होने के नाते मनुष्य से जाने -अनजाने अनेक गलतियाँ हो जाती हैं l प्रकृति के कर्मफल विधान के अनुसार उनका दंड भुगतना ही पड़ता है l महाभारत में कर्ण का चरित्र कुछ ऐसा ही है l कर्ण महादानी था , उसने देवराज इंद्र को अपने जन्म -जात कवच -कुंडल दान कर दिए थे l लेकिन उससे कुछ ऐसी गलतियाँ हो गईं जो उसकी मृत्यु का कारण बनी ----- एक दिन कर्ण अकेला बाण चलाने का अभ्यास कर रहा था , उसी समय दैवयोग से आश्रम के नजदीक चरने वाली एक गाय को उसका बाण लग गया और वह गाय मर गई l जिस ब्राह्मण की वह गाय थी उसने क्रोध में आकर कर्ण को शाप दिया कि युद्ध में तुम्हारे रथ का पहिया कीचड़ में धंस जाएगा और तुम भी उसी तरह मारे जाओगे जैसे मेरी गाय मरी है l इसी तरह कर्ण से एक और गलती हो गई थी कि उसने परशुराम से ब्रह्मास्त्र की विद्या सीखने के लिए झूठ बोला कि वह ब्राह्मण है क्योंकि परशुराम जी केवल शीलवान ब्राह्मणों को ही यह विद्या सिखाते थे l उन्होंने कर्ण को ब्रह्मास्त्र चलाने और वापस लेने का सारा रहस्य समझा दिया l एक दिन परशुराम जी कर्ण की गोद में सिर रखकर सो रहे थे अल उस समय कर्ण की जांघ में एक भौंरा घुस गया , उसके काटने से कर्ण की जांघ से खून बहने लगा l कष्ट होने पर भी वह हिला नहीं कि कहीं गुरु की नींद में विध्न न हो l लेकिन जब उसके गर्म -गरम लहू के स्पर्श से परशुराम जी की नींद खुल गई और उन्होंने देखा कि इतनी पीड़ा सहते हुए भी कर्ण अविचलित भाव से बैठा है तो उन्हें समझते देर न लगी कि कर्ण ब्राह्मण नहीं है क्षत्रिय है और उन्होंने क्रोध में आकर शाप दे दिया कि जो विद्या तुमने मुझसे सीखी है वह ऐन वक्त पर तुम्हारे काम नहीं आएगी ,तुम उसे भूल जाओगे l यह दोनों ही शाप फलित हुए और कर्ण का अंत हुआ l गलतियाँ सबसे होती हैं लेकिन यदि हम ईश्वर की शरण में जाएँ और उनके आदेशानुसार कार्य करें तो रूपांतरण संभव है l कर्ण ने अधर्म और अन्याय करने वाले दुर्योधन का साथ दिया l नारद जी ने , उनके पिता सूर्यदेव ने और स्वयं भगवान कृष्ण ने उसे समझाया था कि वह दुर्योधन का साथ न दे l अत्याचारी और अन्यायी का साथ देना अपने पतन को आमंत्रित करना है लेकिन कर्ण ने किसी की बात नहीं मानी और महादानी , महावीर होते हुए भी अनीति पर चलने वाले दुर्योधन का साथ देने के कारण उसका अंत हुआ l
16 June 2023
WISDOM ------
संत उड़िया बाबा गंगा तट पर ठहरे हुए थे l उनसे मिलने वालों में एक खूंखार व्यक्ति भी मिलने पहुंचा , जो एक बंदूक लिए हुए था l बाबा के पूछने पर पता चला कि वह एक डाकू है l बाबा उससे बोले --- " बेटा ! दो कार्य नहीं करना ---- किसी महिला का अपमान नहीं करना और लूटते समय सोचना कि क्या किसी की परिश्रम की संपत्ति चुराना सही बात है l " उस रात्रि उस व्यक्ति की नींद उड़ गई l उसे लगने लगा कि वह पापकर्म कर रहा है l अगले दिन उसने अपने द्वारा लूटी गई समस्त संपत्ति बाबा के चरणों में अर्पित कर दी और ईश्वर भजन में जुट गया l महापुरुषों के साथ थोड़ा सा सत्संग भी जीवन बदल देता है l
13 June 2023
WISDOM ------
कहते हैं भगवान अपने भक्तों का बहुत ध्यान करते हैं और भक्तों को बिना वजह कष्ट देने वालों को दंड देते हैं l भगवान का सच्चा भक्त चारों ओर से शत्रुओं से घिरा होने पर भी निश्चिन्त रहता है क्योंकि उसे पता है कि उसके साथ ईश्वर हैं l ------ बात उन दिनों की है जब भगवन के भक्त विजयकृष्ण गोस्वामी जी वृन्दावन में बाँकेबिहारी मंदिर में रहते थे l वह समय था जब आधे पैसे ( अधेला ) का भी कुछ मिल जाता था l गोस्वामी जी ने अपने एक शिष्य से कहा --- जाओ आधे पैसे के पेड़े ले आओ l शिष्य भी आज्ञाकारी और भगवान का परम भक्त था l दुकानदार बड़े -बड़े सौदे कर रहा था l उसने उस शिष्य का अधेला उठाकर नाली में फेंक दिया l शिष्य ने धैर्य पूर्वक उस अधेले को उठाया , धोया फिर दिया और कहा -" हमें नहीं खाना है , गुरु महाराज ने मंगाया है , दे दो भाई l " दुकानदार ने उसे फिर नाली में फेंक दिया l शिष्य ने फिर उठाया , धोया और दिया और बड़ी विनम्रता से कहा --- " गुरु जी ने प्रसाद के लिए मंगाया है , दे दो l " दुकानदार ने उसे फिर नाली में फेंक दिया , शिष्य ने फिर धोया , उठाया और दिया --- ऐसा दस बार हुआ l मालिक ने नौकरों से कहा --- " इसे पीटकर भगा दो l " वह गोस्वामी जी के पास गया और बोला --- 'नहीं दिया l बार -बार अधेला फेंकता ही रहा l " गोस्वामी जी ने कहा --- " तुमने गाली क्यों नहीं दी ? उसका स्वभाव ही गाली सुनकर काम करने का है l तुम्हे मालूम है कि तुम्हारे धैर्य के कारण वहा देवत्व इतना बढ़ा कि दुकान में आग लग गई l तुम बुरा -भला कह देते तो आग नहीं लगती l भगवान अपने भक्तों का अपमान कभी सहन नहीं करते l इसीलिए उसे दंड मिला l " उसी समय दुकानदार दौड़ा -दौड़ा पेड़े का पैकेट लिए आया और बोला --- " महाराज ! आपके चेले का अपमान हमसे हो गया l हमारी पूरी दुकान जल गई l
12 June 2023
WISDOM -----
लघु कथा ---- एक नगर में एक कुख्यात चोर रहा करता था l उसने अपने पुत्र को भी चोरी करना सिखा दिया था l मरते समय उसने अपने पुत्र को शिक्षा दी कि -- ' बेटा ! तू चाहे जो कुछ करना , परन्तु कभी किसी संत से सत्संग का हिस्सा न बनना l " एक बार वह लड़का रात में चोरी करने निकला तो मार्ग में एक संत का आश्रम पड़ा l उसे सुनाई दिया कि संत अपने शिष्यों से कह रहे थे ---- " इस संसार में कर्म की गति है l हर व्यक्ति को अपने शुभ और अशुभ कर्मों का फल भुगतना पड़ता है l " बस , इतना सा वाक्य उसके कान में पड़ने की देरी थी कि उसके मन में उथल -पुथल मच गई l चोरी करना भूलकर वह संत के पास पहुंचा और उनसे पूछने लगा कि क्या उसे भी उसके दुष्कर्मों का फल भुगतना पड़ेगा ? " संत बोले ---" निश्चित रूप से l " संत की बात सुनकर उसे अपनी जिन्दगी पर बहुत पश्चाताप हुआ और अपने कुकर्मों का प्रायश्चित करने हेतु उसने साधक का जीवन अपना लिया l क्षण भर के सत्संग से उसका पूरा जीवन बदल गया l
11 June 2023
WISDOM ----
ऋषि का वचन है कि ----- ' जब आप अति क्रोध में , आवेश में हों या अत्यधिक अपमान हुआ हो , तो ऐसी स्थिति में कभी भी कोई महत्वपूर्ण निर्णय नहीं लेना चाहिए l जब मन: स्थिति सामान्य हो जाये तो उस विषय पर चिन्तन ,मनन कर और अपने निर्णय से मिलने वाले परिणामों पर संतुलित मन से विचार कर ही कोई महत्वपूर्ण कदम उठाना चाहिए , बड़ा निर्णय लेना चाहिए l ' ------- गंगा तट पर एक ऋषि अपनी पत्नी के साथ रहते थे l उनका एक पुत्र था जो ज्ञानी तो था , साथ ही बहुत चिन्तन -मनन भी करता था l एक बार ऋषि पति -पत्नी में किसी बात पर विवाद हुआ तो ऋषि को बहुत क्रोध आया और उन्हें अपना अपमान महसूस हुआ l क्रोध में आकर उन्होंने अपने पुत्र को माँ का सिर काटने की आज्ञा दी और स्वयं जंगल चले गए l पुत्र विचारशील था वह सोचने लगा कि पिता ने अति क्रोध में ऐसी कथीर आज्ञा दी है न, क्या जन्म देने वाली माँ को मारना उचित होगा ? या पिता की आज्ञा की अवहेलना करना उचित होगा ? वह ऐसे जघन्य कार्य और उसके परिणामों के बारे में सोच -विचार में डूब गया l तभी उसके पिता क्रोध शांत हो जाने पर दौड़ते हुए आए और पत्नी के देखकर उनका मन शांत हुआ l उन्होंने अपने पुत्र को ह्रदय से लगा लिया l उन्होंने कहा --क्रोध में मैं अँधा हो गया था , मेरी बुद्धि का नाश हो गया था l तुमने मुझे एक भयानक पापकर्म से बचा लिया l
10 June 2023
WISDOM--------
पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं --- "मन को कुविचारों और दुर्भावनाओं से बचाए रखने के लिए स्वाध्याय और सत्संग अनिवार्य है l संग का प्रभाव इतना गहरा होता है कि जिससे जीवन की दिशा धारा ही परिवर्तित हो जाती है l " तुलसीदास जी लिखते हैं --- सत्संग के बिना विवेक जाग्रत नहीं होता और राम कृपा के बिना यह सत्संग सहज में नहीं मिलता l ' आचार्य श्री लिखते हैं ---- 'क्रोध , अहंकार और कुसंग ऐसे महाविष हैं , जो पवित्र दिव्य प्रेम पर भी ग्रहण लगा देते हैं l " महारानी कैकेयी को मंथरा जैसी दासी का कुसंग मिला l महारानी कैकेयी अपनी प्रकृति से अभिमानी और अहंकारी थीं , फिर मंथरा जैसी दासी के कुसंग ने उनके अहंकार और क्रोध को इतना उभार दिया कि वे राजा दशरथ से अपने प्रिय पुत्र राम के लिए चौदह वर्ष का वनवास मांगने लगीं l कैकेयी भरत से भी अधिक राम के प्रति स्नेह रखतीं थीं लेकिन कुसंग का ऐसा असर हुआ कि वे भरत के लिए राजसिंहासन और राम के लिए वनवास मांग बैठीं l इसी कारण कहते हैं कि व्यक्ति योगियों के साथ रहकर योगी और भोगियों के साथ रहकर भोगी बन जाता है l नारद जी का सत्संग पाकर वाल्मीकि --- महर्षि कहलाए l भगवान बुद्ध का सत्संग पाकर अंगुलिमाल डाकू से भिक्षु बन गया l
8 June 2023
WISDOM ----
संवेदना -करुणा -मानव धर्म ------ पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं --- " संवेदना होश का बोध का दूसरा नाम है l जिसके ह्रदय में संवेदना है , आसपास का दुःख उसे बेचैन करता है l विकास की अंतिम सीढ़ी संवेदना , करुणा का विस्तार है और यही मानव धर्म है l " --------- एक बार युद्ध के मैदान में दो घायल सैनिक पास -पास पड़े थे l एक सिपाही था दूसरा उसका अफसर l अफसर बुरी तरह घायल हो चुका था , उसका प्यास से गला सूख रहा था l उसने अपनी कमर से बंधी पानी की बोतल निकाली और प्रयत्न कर के उसे पीने ही जा रहा था कि उसकी द्रष्टि अपने पास उससे भी अधिक घायल हुए सिपाही पर पड़ी l वह मरणासन्न था , मुंह से बोल भी नहीं फूट रहे थे , लेकिन टकटकी लगाकर वह सिपाही उसके पानी की बोतल की ओर देख रहा था l उसकी आँखों में याचना थी l वह जीवन के अंतिम क्षणों में पानी की एक बूंद चाहता था l अफसर में इंसानियत जागी l उसके अंदर के इनसान ने कहा कि मुझसे ज्यादा पानी की जरुरत इस सिपाही को है l वह घिसटता हुआ सिपाही के पास पहुंचा और पानी की बोतल किसी तरह घायल सिपाही के मुंह से लगा दी l सिपाही ने पानी पिया , उसे तृप्ति हुई , उसने अपनी आधी बंद पलकें पूरी खोल दीं l आचार्य श्री कहते हैं यही मानव धर्म है l दूसरों के हित के लिए कार्य करने से ही जीवन सार्थक और सफल बनता है l l " आज के युग की सबसे बड़ी विडंबना है कि मनुष्य संवेदनहीन हो गया है l बिना वजह के युद्ध , साम्प्रदायिक दंगे और विभिन्न अमानवीय तरीकों से नकारात्मकता फ़ैलाने के कारण मानवता और सम्पूर्ण प्रकृति ही घायल है ! ' समरथ को नहीं दोष गुंसाई ' l संसार को नवजीवन कौन दे ?
7 June 2023
WISDOM -----
लघु कथा ---- एक राजा वेश बदलकर नगर में यह जानने के लिए अक्सर निकलता था कि उसकी प्रजा सुखी है या नहीं l एक दिन वह एक ग्रामीण के वेश में था l उसने देखा कि एक बहुत बूढ़ा आदमी एक बाग़ के किनारे काजू का पेड़ लगा रहा है l राजा रुक गया l उसने उस बूढ़े आदमी से पूछा --- " बाबा ! यह पेड़ तुम किसके लिए लगा रहे हो ? जब इसमें फल लगेंगें , तब तुम इसे देखने के लिए नहीं रहोगे l फल भी तुम्हारे किसी काम न आएंगे l तुम्हारे जीवन के थोड़े से ही दिन शेष रह गए हैं , फिर इसे लगाने से तुम्हे क्या फायदा ? " वृद्ध ने सहज स्वर में उत्तर दिया --- " फलों के पेड़ इसलिए नहीं लगाए जाते कि हम लगाते ही उनके फल खायेंगे l पेड़ को लगाता कोई और है और खाता कोई और है l यह दुनिया की बहुत पुरानी रीत है l जो फल मैं आज खा रहा हूँ , उसके पेड़ मेरे पूर्वजों ने लगाए थे l मेरे इस पेड़ के फल आने वाली पीढियां खाएँगी l " नदी अपने लिए नहीं बहती , पेड़ अपने फल नहीं खाता l इससे यह सीख मिलती है कि व्यक्ति को सदैव दूसरों के हित के लिए कार्य करना चाहिए l सबके हित में ही हमारा हित है l
6 June 2023
WISDOM -----
5 June 2023
WISDOM ---
1 . ' मन से भी संयमी बनो '---- एक व्यक्ति ने कन्फ्यूशियस से प्रश्न किया ---- 'संयमित जीवन बिताकर भी मैं रोगी हूँ , महात्मन ! ऐसा क्यों ? ' कन्फ्यूशियस ने कहा ---- "भाई , तुम शरीर से संयमित हो , पर मन से नहीं l अब जाओ ईर्ष्या , द्वेष , छल -कपट करना बंद कर दो तो तुम्हे संयम का पूर्ण लाभ मिलेगा l "
2 .' ह्रदय शुद्धि ' ----- भक्त कर्माबाई भगवान पंढरीनाथ को पुत्र भाव से पूजती थीं और प्रेम करतीं l वे प्रात:काल बिना स्नान किए ही खीर बनातीं और भगवान का बाल -भोग इस भाव से लगातीं कि भगवान को शैया त्यागते ही भूख लगती है l एक दिन एक पंडितजी ने उन्हें इस तरह बिना स्नान के भोग लगाते देखा तो कहा --- कर्माबाई ! भगवान को भोग नहा -धोकर ही लगाना चाहिए , बिना स्नान के भोग लगाना उचित नहीं l " कर्माबाई को बात समझ में आ गई और उस दिन उन्होंने स्नान कर के ही भोग लगाया l स्वाभाविक है स्नान आदि से निवृत्त होने में कुछ देर हो गई l रात उन्होंने स्वप्न में देखा ---भगवान पंढरीनाथ खड़े भूख -भूख चिल्ला रहे हैं l कर्माबाई ने पूछा --- " देव ! आज खीर नहीं खाई क्या ? " भगवान बोले ---- " माँ ! खीर तो मैंने खा ली , पर आज तेरा वह प्रेम , वह भावना नहीं मिली जो रोज मिला करती थी l " कर्माबाई उस दिन से बिना नहाए ही फिर भोग चढ़ाने लगीं l
4 June 2023
WISDOM ------
पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं --- ' कर्तव्य की चोरी सबसे बड़ी चोरी है l ' कलियुग में कर्तव्यपालन को ही सबसे बड़ा तप कहा गया है l जो जहाँ हैं , जिस भी क्षेत्र में है , वहां अपना कर्तव्यपालन ईमानदारी से करे तो यही सबसे बड़ी पूजा है , तप है l कर्तव्य धर्म को मनीषियों ने ' ऋण से मुक्ति ' माना है l ऋण चुका दिया तो उसका कोई पुरस्कार नहीं , नहीं चुकाया तो वह अपराध है और उसका दंड मिलेगा l कर्तव्य का ईमानदारी से पालन करना धर्म है , उस के लिए किसी पुरस्कार या सम्मान का दावा नहीं किया जा सकता लेकिन कर्तव्यपालन में चूक करने पर लिया गया ऋण नहीं चुकाने की तरह ही अपराध है l योग की विभिन्न साधनाएं भी तप के बिना अधूरी हैं l पहले लोग हिमालय पर जाकर , एकांत में तप किया करते थे लेकिन यदि मन को नहीं साधा गया तो वह एकांत साधना व्यर्थ है l इसलिए भगवान ने गीता में कर्मयोग को प्रधानता दी l संसार में रहकर ईमानदारी से अपना कर्तव्य करना ही सबसे बड़ा तप है l ऋषियों का कहना है --- कर्तव्यपालन में नैतिकता अनिवार्य है l कलियुग में दुर्बुद्धि का प्रकोप होने के कारण और धन -वैभव को बहुत अधिक महत्त्व देने के कारण व्यक्ति बेईमानी , भ्रष्टाचार , जालसाजी , हेराफेरी , आर्थिक , सामाजिक अपराध में लिप्त हो जाता है और इसे ही अपना कर्तव्य समझकर इसमें ही विशेषज्ञ हो जाता है l ऐसे अनैतिक और अमर्यादित कार्यों के कारण ही विभिन्न बीमारियाँ , तनाव , दुःख , पर्यावरण प्रदूषण , बड़े पैमाने पर धन-जन की हानि , आपदाएं आती हैं l प्रकृति का क्रोध कब और किस रूप में सामने आ जाए , यह कोई नहीं जानता l आचार्य श्री कहते हैं --- मनुष्य जन्म बार -बार नहीं मिलता इसलिए सन्मार्ग पर चलो , सत्कर्म कर अपने जीवन को सार्थक करो l
3 June 2023
WISDOM ------
लघु कथा ---- 1 . मूर्ख को सीख न दो --- पेड़ पर एक बन्दर बैठा ठंड से सिकुड़ रहा था l उसके पास ही एक टहनी पर बया नामक पक्षी का घोंसला था l बया ने बन्दर की दुर्दशा देखकर उससे कहा --- " ए बन्दर ! तेरे हाथ -पाँव मनुष्य के समान हैं , फिर भी तू इस प्रकार क्यों कष्ट पाता है , अपने लिए एक घोंसला क्यों नहीं बना लेता ? देख मैं तो एक छोटा सा पक्षी हूँ , फिर भी मैंने अपने लिए एक घोंसला बना लिया है और उसमें सुख से रहता हूँ l " बन्दर को बया का यह कहना बहुत बुरा लगा और उससे उसका सुख से होना भी सहन नहीं हुआ उसने हाथ मारकर उसका घोंसला तोड़ दिया l बया तो बहुत मेहनती थी उसने पुन : अपना घोंसला बना लिया और वह समझ गई कि मूर्ख को कोई उपदेश नहीं देना चाहिए l
2 . बड़ा कौन ---- स्वामी रामकृष्ण परमहंस के दो शिष्यों में विवाद छिड़ गया कि उनमें बड़ा कौन है ? अंत में दोनों स्वामी जी के सम्मुख गए l स्वामी जी ने उत्तर दिया ---- " बड़ा सरल हल है , तुममे से जो दूसरे को बड़ा समझे , वही बड़ा है l " अब तो विवाद का स्वरुप ही बदल गया l दोनों एक दूसरे को " तू बड़ा , तू बड़ा " कहने लगे l
2 June 2023
WISDOM -----
महाभारत के कुछ प्रसंग इस सत्य को बताते हैं कि मनुष्य के जीवन में आने वाली समस्या या दुर्घटना के लिए ईश्वर उसे सचेत करते हैं l अब यह व्यक्ति के विवेक पर निर्भर है कि वह ईश्वर के उन संकेतों को समझ पाता है या नहीं , और यदि समझ गया है तो उसके अनुरूप आचरण करता है या नहीं l जैसे ---- महाभारत में --- कर्ण के शरीर में जन्मजात कवच और कुंडल थे , जो अभेद्य थे , उनके रहते उसे कोई भी मार नहीं सकता था l एक रात भगवान सूर्यदेव स्वयं उसके स्वप्न में आए और उससे कहा कि देवराज इंद्र तुम्हारे कवच -कुंडल मांगने आयेंगे l तुम्हारी सुरक्षा के लिए इनका होना जरुरी है इसलिए तुम उन्हें कवच -कुंडल देने से मना कर देना l कर्ण था महादानी , उसने सूर्यदेव की बात नहीं मानी और जब देवराज वेश बदलकर आए , कवच कुंडल माँगा तो कर्ण ने सहर्ष ही अपने शरीर से निकालकर उन्हें कवच कुंडल दान कर दिया और स्वयं ही अपनी सुरक्षा में एक कमी कर ली l पांडव प्रभु की हर बात को बिना किसी प्रतिरोध के स्वीकार कर लेते थे , उनमे समर्पण का भाव था l जब महाभारत का युद्ध समाप्त हो गया और अश्वत्थामा ने सोचा कि पांडवों को सोते समय कपट से मार दूंगा l भगवान कृष्ण तो अन्तर्यामी थे , सब जान गए , उन्होंने पांडवों को सोते से जगाया और कहा --- मेरे साथ गंगा किनारे चलो l पांडवों ने बिना किसी प्रतिरोध के उनकी बात मन ली और उठकर चल दिए l श्रीकृष्ण ने द्रोपदी पुत्रों से भी साथ चलने को कहा , परन्तु बाल बुद्धि होने के कारण उन्होंने इनकार कर दिया और कहा --- आप जाओ , हमें तो नींद आ रही है , सोयेंगे l अश्वत्थामा ने शिविर में आग लगा दी l प्रभु के जगाने पर जो जग गए , वे बच गए और जिन्होंने सोने की जिद की , वे लंबी नींद सो गए l आज भी हमारे ह्रदय में विद्यमान परमेश्वर हमें समय -समय पर विभिन्न संकेत देते हैं l यदि हमारा मन निर्मल है और कुछ समय हम मौन रहते हैं तो उन ईश्वरीय संकेतों को समझकर , उनके अनुरूप आचरण कर अपने जीवन को सँवार सकते हैं l