19 June 2019

WISDOM ---- वैज्ञानिक प्रगति ने मनुष्य को संवेदनहीन बना दिया

लगभग  प्रथम  विश्व  युद्ध  से  पूर्व  तक   मनुष्य  को  अपने  से  ऊँची  किसी  ऐसी  सत्ता  के  प्रति  आस्था  थी   जो  केवल  उसका  ही  नहीं   वरन  सम्पूर्ण  जड़ - चेतन  का  नियमन  करती  है  l  विश्व  भर  के  प्रबुद्ध  व्यक्ति   मनुष्य  को  नैतिक , अनुशासित  तथा  मर्यादित  रहने  के  लिए  ईश्वर  के  प्रति  आस्था  को  आवश्यक  समझते  थे   और  मानते  थे  कि  ईश्वर  बुरे  कर्मों  का  दंड  देता  है  और  अच्छे  कर्मों  का  पुरस्कार  प्रदान  करता  है  l
परन्तु  वैज्ञानिक  प्रगति , शक्ति  और  साधन  के  अहंकार  ने   उसकी  आस्था  को  चोट  पहुंचाई   और  धर्म , जो   मनुष्य  को  नैतिक  जीवन  जीने  के  लिए  प्रेरित  करता  था  , वही   विद्वेष  और  विध्वंस  का  कारण  बन  गया  l  अब  मनुष्य  को  यह  भ्रम  होने  लगा  है  कि  वह  सर्वशक्तिमान  है  , और  मत्स्य  न्याय  के  अनुसार  उसे  अपने  से  कमजोर  लोगों  को  चट  कर  डालने  का  पूरा - पूरा  अधिकार  है  l 
 विज्ञान  ने  मनुष्य  के  आगे  सुख - सुविधाओं  का  अम्बार  लगा  दिया  लेकिन  चेतना  के  स्तर  पर  वह  वही  है  , जहाँ  कि  आदिम  युग  में  था  , जब  मनुष्य  रोटी  के  एक  टुकड़े  के  लिए  अपने  भाई  का  क़त्ल  कर  देता  था  और  इंच  भर  जमीन  के  लिए  अपने  से  कमजोर  को  गाजर मूली  की  तरह  काट  देता  था  l प्रथम  व  द्वितीय  विश्व  युद्ध  में  सबने  देखा  कि  शक्ति  जब  उन्मत  हाथों  में  आ  जाती  है  तो  लाखों  निर्दोष  व्यक्ति  कीड़े - मकोड़ों  की  तरह  मसल  दिए  जाते  हैं  l
अब  यह  जागरूकता  जरुरी  है  कि  केवल  कोरे  कर्मकांड और  आडम्बर  को  ही  धर्म  न  समझें ,  सत्कर्म  और  सन्मार्ग  पर  चलना  भी  जरुरी  है   l  सत्साहित्य  के  माध्यम  से  चेतना  का  परिष्कार  अनिवार्य  है  l  संवेदनशील  ह्रदय  से  ही  सुन्दर  समाज  का  निर्माण  संभव  है  l