19 April 2020

WISDOM ----- अनीति ही हिंसा है

  ऋषि  का  कहना  है ----  अनीति  का  प्रतिकार  करने  के  लिए   जब  अहिंसा   समर्थ  न  हो   तो  हिंसा  भी   अपनाई  जा  सकती  है   l  अन्याय  के  विरुद्ध  क्रुद्ध  होना  मानवता  का  चिन्ह  है  l  यदि  अन्याय  को  सहन  करते    रहा  जायेगा    तो  इससे  अनीति  बढ़ेगी   और  इस  सुन्दर  संसार  में   अशान्ति   उत्पन्न  होगी   l   स्वार्थ  और  अन्याय  के  लिए  आक्रमण  वर्जित  है   लेकिन  आत्मरक्षा  और  अनाचार  की  रोकथाम  के  लिए   हिंसा  अपनानी  पड़े  तो  उसे  अनुचित  नहीं  माना  जा  सकता   l   आवश्यकता  पड़ने  पर  कांटे  से  काँटा  निकालना ,  विष  से  विष  मारने  की  नीति  उचित  कही  जाती  है  l
  सज्जनता  और  दुष्टता  की  अति  कहीं  भी  नहीं  होनी  चाहिए   l 

WISDOM -----

   इस  संसार  में  शुरू  से  ही   अंधकार  और  प्रकाश  में  संघर्ष  रहा  है    और  जब  भी  अंधकार  या  दुष्प्रवृतियों  की  अधिकता  रही  है   तब  संसार  में  अत्याचार , अन्याय  और  भीषण  नर - संहार  के  दृश्य  दिखाई  दिए  हैं  l   आदिकाल  से  देखें   तो  रावण  इतना  विद्वान्  था ,  उसकी  सोने  की  लंका  थी   लेकिन  राक्षसी  प्रवृति  की  वजह  से   वह   राक्षसों  को   विभिन्न  क्षेत्रों  में  भेजता  था  ,  जहाँ  वे  उत्पात  मचाते  थे  ,  निर्दोष  लोगों  का  वध  करते   और  ऋषियों  के  यज्ञ , हवन   आदि  को  अपवित्र  करते  थे  l   इस  कारण  सारे  धार्मिक  कृत्य  बंद  हो  गए  थे  l   राक्षसों  के  अत्याचार  इतने  बढ़  गए  थे  कि   सामान्य जन   का  जीना  मुश्किल  हो  गया  था  l
  वर्तमान  स्थिति  कुछ  इसी  तरह  है  ,  सभी  धार्मिक  स्थल  बंद  हो  गए  ,  लोग  भयभीत  हैं  ,  घरों  में  बंद  हैं  l    तब  भी  राक्षस  मायावी  थे  ,  अदृश्य  होकर   सबको  सताते  थे   और  अब  भी  अदृश्य  हैं  l    उस  समय   यह  स्पष्ट  अवश्य  था  कि   वे  राक्षस  रावण  के  भेजे  हुए  थे   लेकिन   अब  विज्ञान   ने   उसे  भी  अदृश्य  कर  दिया  l
अत्याचार  और  अन्याय  के  कारण  ही  संसार  के  विभिन्न  देशों  में  क्रान्ति   हुई ,  दो  विश्व युद्ध  हुए  l  ऐसा  लगता  है    कि    लोगों  को  शारीरिक  और  मानसिक  रूप  से  उत्पीड़ित  करना  ,  उन्हें  बेमौत  मारना   राक्षसी  प्रवृति  के  लोगों  का  मनोरंजन  का  साधन  है    क्योंकि  ये  उत्पात  कभी  खत्म   नहीं  हुए   समय - समय  पर  विभिन्न  रूपों  में   वे  अपनी  शक्ति  का   प्रद्रशन  कर  देते  हैं  l
यह  सिलसिला  तभी  थमेगा  जब  लोगों  की  चेतना  जाग्रत  होगी ,  लोग  जागरूक  होंगे  l   आज  के  समय  में   बुद्धि  और  विवेक  से  ही  दुश्मन  को  पराजित  किया  जा  सकता  है  l 

WISDOM ---- अति सर्वत्र वर्जयेत

  हमारे  आचार्य , ऋषियों  आदि  का  कहना  है   कि   किसी  भी  स्थिति  में  अति  नहीं  होनी  चाहिए  l   महात्मा  बुद्ध  ने  कहा  भी  है --- वीणा  के  तार  को  इतना  मत  कसो  कि   वह  टूट  जाए ,  और  इतना  ढीला  भी  मत  छोड़ो   कि   वह  बजना  ही  छोड़  दे   l
  अति  जहाँ  भी  है ,  वह   मनुष्य  के  लिए  मुसीबत  उत्पन्न  करती  है   l   यदि  लालच , तृष्णा   , अहंकार  अति  का  है  तो  ये  दुर्गुण   उस  व्यक्ति  के  हृदय  की  संवेदना  को  सोख  लेते  हैं   , फिर  उसके  अमानुषिक  व्यवहार  से  सारा  समाज  त्रस्त   होने  लगता  है  l
  पूंजीवादी  व्यवस्था  में  अति उत्पादन  की  समस्या  है  l   अनेक  कारण  हैं  जिनकी  वजह  से  अति  उत्पादन  हो  जाता  है  ,  इससे  एक  नई   समस्या   उत्पन्न  होती  है  कि   इसे  खपाएं  कहा  ?    उपभोग  सामग्री  का  अतिउत्पादन  हो  तो  उसे  तो   कहीं  भी  खपाया  जा  सकता  है    लेकिन  यदि    नशीले  मादक  पदार्थ ,   कीटनाशक ,  अस्त्र - शस्त्र ,  हथियार ,  विभिन्न  तरह  की  दवाएं ,  इनके  उपकरण  आदि  का  अतिउत्पादन  हो  तो  उसे    किसी  बाजार  में  खपाना , बेचना  एक  कठिन  समस्या  होती  है  l   यदि  पूंजीपति  में   मानवीयता  नहीं  है  तो  वह  साम , दाम , दंड , भेद  किसी  भी  नीति   से  अपने  माल  को  बेचकर  लाभ  कमा  लेगा  ,  उसे  केवल  अपने  लाभ  की  चिंता  है  ,  लोगों  के  हित    की  परवाह  नहीं  है   l
     इसलिए  ऋषियों  ने  मध्यम   मार्ग  पर  बल  दिया  है  l   अपना  भी  हित   हो  जाये   और  संसार  का  अहित  न  हो  l  ' अति  का  अंत  होता  है  l   इसलिए ' जियो  और  जीने  दो ' l
  व्यवस्था  चाहे  जो  हो --- पूंजीवाद , समाजवाद ,  प्रजातंत्र ,  राजतन्त्र --- यदि   इनमे  मानवता ,  संवेदना ,  करुणा , भाईचारे ,  परहित  आदि  सद्गुणों  का  समावेश  होगा   तभी  इस  धरती  पर  लोग  सुख - शांति  से  जीवन  जी  सकेंगे  l