वाल्मीकि रामायण में एक कथा आती है कि एक बार एक कुत्ता भगवान राम के दरबार में अपनी समस्या लेकर पहुंचा l उसने भगवान राम से कहा --- " प्रभु ! मुझे नगर के एक ब्राह्मण ने अकारण ही डंडे से मारा और प्रताड़ित किया l मैं आपसे प्रार्थना करता हूँ कि उसे कलिंजर पीठ का महंत बना दीजिये l " भगवान राम बोले ---- " पर उसने तुम्हारे साथ दुर्व्यवहार किया है तो सजा के बदले उसके लिए पुरस्कार की चाह क्यों ? "
कुत्ता बोला ---- " भगवन ! मैं पूर्व जन्म में कलिंजर का महंत ही था l मैंने जीवन भर सदाचरण ही किया , दान की सम्पति का निजी कार्यों में उपभोग नहीं किया l पर एक बार मुझसे भूलवश मंदिर में चढ़ाये घी का उपयोग अपने भोजन में डालने हेतु हो गया l आज उसी के प्रायश्चित स्वरुप इस श्वान योनि में मेरा जन्म हुआ है l फिर ये व्यक्ति तो स्वभाव से ही दुराचारी और लालची है l इसका क्या परिणाम होगा , ये आपसे अच्छा कौन जान सकता है l "
दायित्वपूर्ण स्थानों पर आसीन व्यक्तियों को सदा पद की गरिमा और मर्यादा का ध्यान रखना चाहिए , अन्यथा पतन होते देर नहीं लगती l
कुत्ता बोला ---- " भगवन ! मैं पूर्व जन्म में कलिंजर का महंत ही था l मैंने जीवन भर सदाचरण ही किया , दान की सम्पति का निजी कार्यों में उपभोग नहीं किया l पर एक बार मुझसे भूलवश मंदिर में चढ़ाये घी का उपयोग अपने भोजन में डालने हेतु हो गया l आज उसी के प्रायश्चित स्वरुप इस श्वान योनि में मेरा जन्म हुआ है l फिर ये व्यक्ति तो स्वभाव से ही दुराचारी और लालची है l इसका क्या परिणाम होगा , ये आपसे अच्छा कौन जान सकता है l "
दायित्वपूर्ण स्थानों पर आसीन व्यक्तियों को सदा पद की गरिमा और मर्यादा का ध्यान रखना चाहिए , अन्यथा पतन होते देर नहीं लगती l