17 October 2022

WISDOM----

   ' जाके  पैर  न  फटे  बिवाई ,  वो  क्या  जाने  पीर  पराई  l  '----- यह  कहानी  है  उस  व्यक्ति  की  जिसका  नाम  था  पुन्नाग  ,  ये  अपराध  का  पर्याय  बन  चुका  था  l   पथ  पर  भटका  हुआ  कोई  भी  यात्री  उसके  रहते  सुरक्षित  घर  नहीं  पहुँच  सकता  था  l  मनुष्य  हो  या  जानवर , पशु -पक्षी  ,  उन्हें  पीड़ित  करना , मारना  यही  उसका  काम  था  l  उसकी  एक  छोटी  बेटी  थी  --विपाशा  l  जब  वह  हुई  थी  तभी  उसकी  माँ  का  देहांत  हो  गया  था  l  एक  छोटे  से  हिरण  के  शिशु  के  साथ  वो  खेला  करती  थी  l  पुन्नाग  बहुत  निर्दयी  था  लेकिन  अपनी  पुत्री  के  लिए  उसके  ह्रदय  में  बहुत  स्नेह  था  l   वह  उसे  बहुत  लाड़ -प्यार  से  रखता  l  विपाशा  नहीं  जानती  थी  कि  कष्ट -पीड़ा  क्या  होती  है   विपाशा  थोड़ी  बड़ी  हुई  तो  अपने  पिता  से  पूछा  करती  थी  कि  आप  मेरे  लिए  इतने  वस्त्र , आभूषण  आदि  कहाँ  से  लाते  है  ?  पुन्नाग  बात  को  टाल  जाता  l  धीरे -धीरे  वह  अपने  पिता  के  कृत्यों  को  समझ  गई  l  l   एक  दिन  उसके  हिरण  ने  ऐसी  छलांग  भरी  कि  उसकी  टांग  टूट  गई , वह  पीड़ा  से  छटपटाने  लगा , चल  भी  नहीं  पा  रहा  था  l  विपाशा  ने  उस  दिन  पहली  बार  पीड़ा  देखी  l  यह  पीड़ा  कैसी  होती  है  ?  यह  जानने  के  लिए  उसने  एक  बड़े  पत्थर  से  अपने  पैर  पर  प्रहार  किया   जिससे  उसके  पैर  की  हड्डी  टूट  गई  l  अब  वह  पीड़ा  से  छटपटाने  लगी  l  अब  उसे  समझ  में  आ  गया  कि  उसका  पिता  अब  तक  सहस्त्रों  प्राणियों  को   इस  तरह  कितनी  पीड़ा  दे  चुका  होगा  ,  कितना  तड़पाया  होगा  उसने  l  उसकी  आँखों  से   आँसू  रुक  नहीं  रहे  थे  l  वह  और  उसका  हिरन  दोनों  ही  घायल  अवस्था  में   थे  , हिरण  उसे  चाटकर  अपना  प्रेम   प्रकट  कर  रहा  था  l  शाम  हुई  जब  पुन्नाग  वापस  आया   तो  हमेशा  की  तरह  विपाशा  दौड़ती  हुई  बाहर  नहीं  आई  l  वह  घबरा  गया  ,  सब  तरफ  देखा  तो  बगीचे  में  विपाशा  और  हिरन  दोनों  घायल  पड़े  थे  l  विपाशा  को  ऐसी  हालत  में  देखकर  उसका  ह्रदय  चीत्कार  कर  उठा  ,  वह  बोला  --- यह  तुम्हे  क्या  हुआ  ?   विपाशा  ने  क्षीण  स्वर  में  कहा --- ' तात  !  मैं  देखना  चाहती  थी  कि  जीवों   को  किस  तरह  पीड़ा  होती  है  ,  सुना  है  आप  भी  तो  ऐसे  ही   लोगों  को  कष्ट  दिया  करते  हैं   l ' इतना  कहते  हुए  वह  बेहोश  हो  गई  l  अपनी  बेटी  का  कष्ट  देखकर  उसे  समझ  आया  कि  पीड़ा  कैसी  होती  है  l  उसने   प्राणियों  को  कितना  कष्ट  दिया  , वह  दर्द  उसे  समझ  में  आया  ,  उसके  ह्रदय  में  संवेदना  जाग  गई  l  उस  दिन  से  उसने  हिंसा  न  करने  की  सौगंध  ली  और  अपना  शेष  जीवन   पीड़ित  जानवरों  और  पशु -पक्षियों  के  उपचार  और  सेवा  में  लगा  दिया  l