20 June 2021

WISDOM------ समर्पण सक्रियता का नाम है

   गोस्वामी  तुलसीदास जी  के  जीवन  का  प्रसंग  है  ---- बात  उस  समय  की  है  जब  रामचरितमानस  की  रचना  नहीं  हुई  थी   l   नवरात्री  के  दिनों  में  वे  स्वयं  वाल्मीकि  रामायण  का  नौ  दिन  का  पाठ  कर  रहे  थे  l   उन   दिनों   के  लिए  उन्होंने  यह  निश्चय  किया  था  कि     भिक्षाटन  नहीं  करेंगे ,  अपनी  कुटीर  से  सरयू  नदी  के  तट   तक  आने  जाने  में  कुछ  मिल  गया  तो  खा  लेंगे  अन्यथा  मागेंगे  नहीं   l    परायण  का  पांचवां  दिन  था  ,  श्री   नरहर्यानन्द   जी  वहां  पधारे  ,  उन्होंने  तुलसीदास जी  से  सब  हाल  पूछा  फिर  कहा  --- ' जब  आप  कहीं  मांगने  नहीं  जायेंगे  तो  भोजन  कहाँ  से  आएगा   ? ' तुलसीदास जी  बोले  --- ' आएगा  महाराज  l   यदि  राम  की  अनुकम्पा  हुई  तो  वे  स्वयं  लेकर  आएंगे   l   इसी  समर्पण  योग  का  अभ्यास  इन  दिनों  चल  रहा  है  l  '    श्री  नरहर्यानन्द  जी  ने  कहा  ----   ' समर्पण  की  तुम्हारी  परिभाषा  अत्यंत  संकीर्ण  है  ,  इससे  तो  संसार  में  निष्क्रियता  पनपेगी  ,  यह  समर्पण  योग  नहीं  है   l  जो   समर्पण  योग   की  दुहाई  देकर     निकम्मेपन   का  प्रपंच  रचते  हैं    उनका  इस  लोक  और  परलोक  कहीं  भी  कल्याण  नहीं  होता    l    समर्पण  स्वार्थों  का ,  इच्छाओं  का ,   वासनाओं , तृष्णाओं  और  अहंताओं  का  होता  है   l   समर्पण  किसी  को  निष्क्रिय  व  निष्चेश्ट   नहीं  बनाता  और  न  ही  इसकी  शिक्षा  देता  है   l   फिर  भी  जहाँ  ऐसी  निष्क्रियता  दिखाई  पड़े  तो  उसे  ढकोसला  ही  समझना  चाहिए   l   इसलिए  तुम  समर्पण  के  उच्च  आदर्श  को  अपनाओं   इसी  में  तुम्हारा  और  विश्व  का  कल्याण  है   l  "    तुलसीदास जी  के  आग्रह  पर  श्री  नरहर्यानन्द  जी  ने  उन्हें  दीक्षा  दी   l   उसी  दिन    तुलसीदास जी  ने  वाल्मीकि  रामायण  के  परायण  को  अधूरा  छोड़ा  और  समाज  के  लिए  कुछ  करने  और  देने  की  ललक  से  काशी   चले  गए   l   उनके  मन  में  बड़ी  उहापोह  थी  कि   समाज  को  क्या  दें   ?  एक  दिन  श्री  हनुमान जी  उनके  सम्मुख  प्रकट   हुए    और   कहा  ---- "  आप  अच्छे  कवि   हैं  ,  फिर  किस  उधेड़बुन  में  पड़े   हैं  ?  क्यों  नहीं   लोकभाषा  में  वाल्मीकि  रामायण  का  प्रणयन  कर  डालते  हैं   l   यह  अद्भुत  ग्रन्थ  है  ,  इससे  समाज  को  प्रकाश  मोलेगा  और  तुम्हारा  यश  दसों   दिशाओं  में  फैलेगा   -----------   -