आचार्यजी का मत है कि मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु असंयम है l शक्ति तथा सम्पन्नता का लाभ तभी मिलता है जब उसका सदुपयोग बन पड़े l दुरूपयोग होने पर तो अमृत भी विष बन जाता है l माचिस जैसी छोटी और उपयोगी वस्तु अपना तथा पड़ोसियों का घरवार भस्म कर सकती है l इस दुर्गुण के रहते कुबेर का खजाना भी खाली हो सकता है l ईश्वर प्रदत्त सामर्थ्यों का सदुपयोग कर सकने की सूझ - बूझ एवं संकल्प शक्ति को ही मर्यादा पालन एवं संयमशीलता कहते हैं l
27 April 2019
17 April 2019
WISDOM ------ उत्तम ज्ञान जाग्रत देवता
पं. श्रीराम शर्मा आचार्यजी ने अखंड ज्योति में लिखा है --- ' मंदिर , गिरजे , गुरूद्वारे टूटकर खंडहर बन जाते हैं , गिरकर नष्ट हो जाते हैं , लेकिन उत्तम ज्ञान और सच्चे विचार कभी नष्ट नहीं होते l ज्ञान वह सीपी है , जिसमे प्रवेश कर मनुष्य का जीवन मोती बन जाता है l '
आचार्यजी का कहना है ---- " दुर्भाग्य कभी हाथ धोकर पीछे पड़ जाये , ऐसा लगे कि एक भी उपाय प्रगति पथ पर स्थिर रखने में समर्थ नहीं है , सभी ओर असफलता ही असफलता , अंधकार ही अंधकार प्रतीत हो रहा हो तब तुम महापुरुषों के ग्रन्थ पढ़ना l विचारों का सत्संग तुम्हारे जीवन में फिर से प्रकाश लायेगा l तुम्हारे दुर्भाग्य को सौभाग्य में बदलने की शक्ति उत्तम ज्ञान में सन्निहित है l जब समस्त शक्तियां साथ छोड़ दें तब तुम उत्तम पुस्तकों को मित्र बनाकर आगे बढ़ना l एकाकी और असहायपन के बीच तुम्हे मौन मैत्री और प्रकाश की वह किरण मिल जाएगी जो तुम्हारा हाथ पकड़कर तुम्हे निर्दिष्ट लक्ष्य तक पहुंचा देगी l
आचार्यजी का कहना है ---- " दुर्भाग्य कभी हाथ धोकर पीछे पड़ जाये , ऐसा लगे कि एक भी उपाय प्रगति पथ पर स्थिर रखने में समर्थ नहीं है , सभी ओर असफलता ही असफलता , अंधकार ही अंधकार प्रतीत हो रहा हो तब तुम महापुरुषों के ग्रन्थ पढ़ना l विचारों का सत्संग तुम्हारे जीवन में फिर से प्रकाश लायेगा l तुम्हारे दुर्भाग्य को सौभाग्य में बदलने की शक्ति उत्तम ज्ञान में सन्निहित है l जब समस्त शक्तियां साथ छोड़ दें तब तुम उत्तम पुस्तकों को मित्र बनाकर आगे बढ़ना l एकाकी और असहायपन के बीच तुम्हे मौन मैत्री और प्रकाश की वह किरण मिल जाएगी जो तुम्हारा हाथ पकड़कर तुम्हे निर्दिष्ट लक्ष्य तक पहुंचा देगी l
12 April 2019
WISDOM ------- अन्य किसी के साथ वैसा व्यवहार नहीं करना चाहिए जैसा कि हम अपने लिए नहीं चाहते ---- पं. श्रीराम शर्मा आचार्य
आचार्य जी ने अखंड ज्योति में लिखा है - ' यह कोई जरुरी बात नहीं कि सब लोग अपना धर्म , जातीयता , भाषा , पहनावा छोड़कर एक से बन जाएँ पर अपनी संस्कृति , धर्म की रक्षा करते हुए हमें दूसरे की संस्कृति और धर्म का आदर करना चाहिए l कलह या संघर्ष की वृद्धि तब होती है जब मनुष्य दुराग्रह या पक्षपात के कारण उचित को छोड़कर अनुचित का समर्थन करता है l इसलिए यदि हम संसार व्यापी शांति , सुख , प्रगति के पक्षपाती हैं और चाहते हैं कि हम तथा संसार के अन्य लोग सुखी जीवन व्यतीत करें तो उसके लिए आध्यात्मिक मार्ग पर चलना ही हमारा कर्तव्य है l इसके लिए हमारा प्रथम कर्तव्य यही है कि अपने सुख - दुःख के समान दूसरों के सुख - दुःख को समझें l
10 April 2019
WISDOM ---- महान आत्माएं कभी मरती नहीं , अपने विचारों के रूप में सदा सर्वदा जीवित रहती हैं
आज के समय में जब पद और धन - वैभव के लिए लोग किसी के हाथ की कठपुतली बन जाते हैं , अपना मान - सम्मान , स्वाभिमान सब कुछ दांव पर लगा देते हैं , ऐसे समय में खलील जिब्रान के विचार प्रेरणादायक हैं l समाज के पीड़ित , शोषित और गरीब वर्ग के पक्ष में बोलने और उनमे अपने अधिकारों की चेतना जाग्रत करने के कारण शासक वर्ग और स्वार्थपरायण लोगों ने उन्हें देश निकला दे दिया , उस समय उन्होंने कहा था ---- " लोग मुझे पागल समझते हैं कि मैं अपने जीवन को उनके सोने - चांदी के टुकड़ों के बदले नहीं बेचता l और मैं इन्हें पागल समझता हूँ कि वे मेरे जीवन को बिक्री की एक वस्तु समझते हैं l "
8 April 2019
WISDOM -----
अष्ट भुजा दुर्गा की आठ भुजाएं शक्ति के आठ साधन हैं --- 1.स्वास्थ्य 2. विद्दा 3. धन 4. .व्यवस्था 5. संगठन 6. यश 7. शौर्य 8. सत्य l इन शक्तियों में से जिसके पास जितना भाग होगा , वह उतना ही शक्तिवान समझा जायेगा l प्रकृति का , मनुष्यों का , रोगों का , शैतान का आक्रमण अपने ऊपर न हो l इसको रोकने का एकमात्र तरीका यह है कि हम अपने शारीरिक , बौद्धिक और आत्मिक बल को इतना बढ़ा लें कि उसे देखते ही आक्रमणकारी पस्त पड़ जाये l
सबलता एक मजबूत किला है जिसे देखकर शत्रुओं के मनसूबे धूल में मिल जाते हैं l
सबलता एक मजबूत किला है जिसे देखकर शत्रुओं के मनसूबे धूल में मिल जाते हैं l
7 April 2019
WISDOM ------ संकल्प , बल और बुद्धि का सम्मिलित रूप ही सफलता का श्रेय प्राप्त कर सकता है l
सच्ची लगन और निष्ठा के साथ विवेकपूर्ण प्रयत्न करने से ही सफलता प्राप्त होती है l परिश्रम और प्रयत्न से मनुष्य के भीतर छिपी हुई अनेकानेक शक्तियां और योग्यताएं प्रस्फुटित होती हैं l
फिर उनके द्वारा वह सब सम्पदाएँ प्राप्त हो जाती हैं जो कि कल्प वृक्ष द्वारा प्राप्त होनी चाहियें l जो अपनी मदद आप करता है , परमात्मा उसकी मदद जरुर करता है l
संकल्प , बल और बुद्धि एकाकी रूप में तीनों अधूरे हैं l इन तीनो का सम्मिलित रूप ही सफलता का श्रेय प्राप्त कर सकता है l
फिर उनके द्वारा वह सब सम्पदाएँ प्राप्त हो जाती हैं जो कि कल्प वृक्ष द्वारा प्राप्त होनी चाहियें l जो अपनी मदद आप करता है , परमात्मा उसकी मदद जरुर करता है l
संकल्प , बल और बुद्धि एकाकी रूप में तीनों अधूरे हैं l इन तीनो का सम्मिलित रूप ही सफलता का श्रेय प्राप्त कर सकता है l
5 April 2019
WISDOM ------ शक्ति और सामर्थ्य के साथ चेतना का स्तर भी ऊँचा होना चाहिए
' चेतना का स्तर ऊँचा होने पर ही शक्ति और सम्पदा का सदुपयोग संभव है इसके बिना बन्दर के हाथ तलवार पड़ने की संभावना ही अधिक रहेगी l '
जिसका अंतरंग निकृष्ट होता है तो अभावग्रस्त स्थिति में उसकी यह बुराई दबी रहती है , लेकिन शक्ति और साधन मिलने पर वह और अधिक खुला खेल खेलने लगती है l दुर्बुद्धि ग्रस्त और कुकर्मी व्यक्ति यदि शक्तिशाली हो जाये तो वह विनाश के गर्त में अधिक तेजी से गिरेगा l कुकर्मी का वैभव उसके स्वयं के लिए , असंख्य व्यक्तियों तथा समाज के लिए अभिशाप होता है l
समर्थता और सम्पन्नता का उस व्यक्ति व समाज को लाभ तभी संभव है जब व्यक्ति शालीन हो , उसकी चेतना का स्तर उत्कृष्ट हो l
जिसका अंतरंग निकृष्ट होता है तो अभावग्रस्त स्थिति में उसकी यह बुराई दबी रहती है , लेकिन शक्ति और साधन मिलने पर वह और अधिक खुला खेल खेलने लगती है l दुर्बुद्धि ग्रस्त और कुकर्मी व्यक्ति यदि शक्तिशाली हो जाये तो वह विनाश के गर्त में अधिक तेजी से गिरेगा l कुकर्मी का वैभव उसके स्वयं के लिए , असंख्य व्यक्तियों तथा समाज के लिए अभिशाप होता है l
समर्थता और सम्पन्नता का उस व्यक्ति व समाज को लाभ तभी संभव है जब व्यक्ति शालीन हो , उसकी चेतना का स्तर उत्कृष्ट हो l
4 April 2019
WISDOM ----- व्यस्त रहें ----- मस्त रहें
चिंता व्यक्ति को तभी होती है , जब वह खाली बैठा होता है , उसके पास करने के लिए कोई महत्वपूर्ण काम नहीं होता l चिंता व्यक्ति को चिता की तरह सुलगाती है , घुन की तरह शरीर में लग कर उसे कमजोर व निकम्मा बना देती है l चिंता करने के दौरान अत्याधिक मानसिक ऊर्जा का क्षरण होता है l
इसका समाधान है -- विवेक पूर्ण विचार करना , और सोचे गए विचार और योजनाओं पर कार्य करना l पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी का कहना था ---- " व्यस्त रहो ---- मस्त रहो l "
जो जीवन को सच्चिन्तन और सत्कर्मों में लगते हैं , वे न केवल मस्त रहते हैं , बल्कि आंतरिक और बही रूप से इतने आनंदमय रहते हैं कि उनके संपर्क में आने वाले भी अपनी चिंताओं से मुक्त हो जाते हैं l
इसका समाधान है -- विवेक पूर्ण विचार करना , और सोचे गए विचार और योजनाओं पर कार्य करना l पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी का कहना था ---- " व्यस्त रहो ---- मस्त रहो l "
जो जीवन को सच्चिन्तन और सत्कर्मों में लगते हैं , वे न केवल मस्त रहते हैं , बल्कि आंतरिक और बही रूप से इतने आनंदमय रहते हैं कि उनके संपर्क में आने वाले भी अपनी चिंताओं से मुक्त हो जाते हैं l
3 April 2019
WISDOM ----- सत्य में हजार हाथियों का बल होता है
' जो अपने जीवन में सच्चा होता है और जिसका संग उत्तम होता है उसके डगमगाते कदम को रोकने वाले संयोग आ ही जाते हैं l '
छत्रपति शिवाजी महाराज के जीवन की घटना है --- बीजापुर का नवाब आदिलशाह चाहता था कि शिवाजी उसकी आधीनता स्वीकार करें और जीते हुए किले उसे लौटा दें l शिवाजी स्वाभिमानी थे उन्होंने ऐसा करने से साफ मना कर दिया l इससे नवाब आपे से बाहर हो गया , बोला मैं उनकी बढ़ती हुई ताकत को कुचल डालूँगा l किन्तु वह मन ही मन शिवाजी की वीरता से भयभीत था l वह नवाब स्वार्थी और कायर था , छल - कपट ही उसका संबल था l उसने एक जाति- द्रोही बाजी घोर पांडे की मदद से शिवाजी के पिता शाहजी को एक छोटी सी कोठरी में बंदी बना लिया और उसका द्वार ईंटों से चुनवाकर थोड़ी सी सांस रहने दी l फिर शाहजी को विवश किया कि शिवा को पत्र लिखकर यहाँ आने और बीजापुर दरबार में आत्मसमर्पण करने के लिए मजबूर करो , अन्यथा तुम्हे इसमें जिन्दा दफ़न कर देंगे l
शिवाजी के सामने गहरा संकट था - समर्पण करने से उनके यश को कलंक लगता , कैसे पिता को बचाएं और कैसे सिद्धांतों की रक्षा करें ? पिता के प्रति मोह प्रबल हो रहा था उन्होंने बीजापुर जाकर नवाब से संधि करने का विचार बनाया --- ' यदा - कदा मनुष्य का मोह और मानसिक दुर्बलताएं उसे गलत दिशा की और प्रेरित कर देती हैं l किंचित कमजोरी से शिवाजी का मोह ' सर्व जन हिताय ' की महानता पर आच्छादित हो गया l लेकिन जो अपने जीवन में सच्चा होता है उसके डगमगाते कदम को रोकने वाले संयोग आ ही जाते हैं l
इस समय शिवाजी की पत्नी ने उन्हें अंधकार में प्रकाश दिया l उसने कहा -- मेरी आत्मा कहती है कि बीजापुर जाने में कल्याण नहीं है , आदिलशाह आपके पिता को भी नहीं छोड़ेगा , और आपको भी बंदी बना लेगा इससे हिन्दू - जाति का भविष्य खतरे में पड जायेगा l उसने कहा कि आप दिल्ली के बादशाह शाहजहाँ को पत्र लिखें कि वह पिताजी की रक्षा में आपकी मदद करे , बदले में आप उसे दक्षिण के मुस्लिम राज्यों को जीतने में उसकी मदद करेंगे l साम्राज्य लिप्सु मुग़ल बादशाह इससे सहमत हो गया और उसने आदिलशाह को फरमान भेजकर शाहजी को मुक्त करा दिया l शिवाजी की सफल राजनीति से पराजित हो बीजापुर का नवाब आदिलशाह और जल गया और छल - कपट की योजनायें बनाने लगा l
समयानुकूल कार्य प्रणाली और अपनी सुझबुझ के कारण महाराज शिवाजी ने अनुपम सफलता प्राप्त कीं l
छत्रपति शिवाजी महाराज के जीवन की घटना है --- बीजापुर का नवाब आदिलशाह चाहता था कि शिवाजी उसकी आधीनता स्वीकार करें और जीते हुए किले उसे लौटा दें l शिवाजी स्वाभिमानी थे उन्होंने ऐसा करने से साफ मना कर दिया l इससे नवाब आपे से बाहर हो गया , बोला मैं उनकी बढ़ती हुई ताकत को कुचल डालूँगा l किन्तु वह मन ही मन शिवाजी की वीरता से भयभीत था l वह नवाब स्वार्थी और कायर था , छल - कपट ही उसका संबल था l उसने एक जाति- द्रोही बाजी घोर पांडे की मदद से शिवाजी के पिता शाहजी को एक छोटी सी कोठरी में बंदी बना लिया और उसका द्वार ईंटों से चुनवाकर थोड़ी सी सांस रहने दी l फिर शाहजी को विवश किया कि शिवा को पत्र लिखकर यहाँ आने और बीजापुर दरबार में आत्मसमर्पण करने के लिए मजबूर करो , अन्यथा तुम्हे इसमें जिन्दा दफ़न कर देंगे l
शिवाजी के सामने गहरा संकट था - समर्पण करने से उनके यश को कलंक लगता , कैसे पिता को बचाएं और कैसे सिद्धांतों की रक्षा करें ? पिता के प्रति मोह प्रबल हो रहा था उन्होंने बीजापुर जाकर नवाब से संधि करने का विचार बनाया --- ' यदा - कदा मनुष्य का मोह और मानसिक दुर्बलताएं उसे गलत दिशा की और प्रेरित कर देती हैं l किंचित कमजोरी से शिवाजी का मोह ' सर्व जन हिताय ' की महानता पर आच्छादित हो गया l लेकिन जो अपने जीवन में सच्चा होता है उसके डगमगाते कदम को रोकने वाले संयोग आ ही जाते हैं l
इस समय शिवाजी की पत्नी ने उन्हें अंधकार में प्रकाश दिया l उसने कहा -- मेरी आत्मा कहती है कि बीजापुर जाने में कल्याण नहीं है , आदिलशाह आपके पिता को भी नहीं छोड़ेगा , और आपको भी बंदी बना लेगा इससे हिन्दू - जाति का भविष्य खतरे में पड जायेगा l उसने कहा कि आप दिल्ली के बादशाह शाहजहाँ को पत्र लिखें कि वह पिताजी की रक्षा में आपकी मदद करे , बदले में आप उसे दक्षिण के मुस्लिम राज्यों को जीतने में उसकी मदद करेंगे l साम्राज्य लिप्सु मुग़ल बादशाह इससे सहमत हो गया और उसने आदिलशाह को फरमान भेजकर शाहजी को मुक्त करा दिया l शिवाजी की सफल राजनीति से पराजित हो बीजापुर का नवाब आदिलशाह और जल गया और छल - कपट की योजनायें बनाने लगा l
समयानुकूल कार्य प्रणाली और अपनी सुझबुझ के कारण महाराज शिवाजी ने अनुपम सफलता प्राप्त कीं l
2 April 2019
WISDOM ----- जियो और जीने दो
इनसान चाहे वह स्त्री हो या पुरुष , एक इनसान ही है , वस्तु नहीं , जिसका जब चाहे इस्तेमाल कर लिया जाये l इनसान है तो उसके भीतर सब प्रकार की भावनाएं हैं l
शोषण की मानसिकता है कि दूसरे की कमियों का लाभ उठाकर उसे सदा नियंत्रण में रखो और अपना हित साधने के लिए उसका उपयोग करो l जब तक वह उपयोगी है , तब तक उसका उपयोग करो और अनुपयोगी होने पर उसे उठा कर फेंक दिया जाये l शोषण के साथ एक प्रकार की क्रूरता का भाव है , जिसमे मानवीय संवेदनशीलता और सहकारिता का कोई स्थान नहीं है l यही सिद्धांत आज आज परिवार , समाज , संस्थाएं , राजनीति आदि विभिन्न क्षेत्रों में कार्य करता नजर आता है l शोषण से विकार उत्पन्न होते हैं , इससे ही सम्पूर्ण समाज में अशांति उत्पन्न होती है l
शोषण के विपरीत यदि पोषण हो , तभी किसी देश का सही अर्थों में विकास होगा l यह पोषण कई तरीके से हो सकता है जैसे कोई आर्थिक रूप से कमजोर है तो उसे स्वावलंबी बनाने के लिए विभिन्न उपाय करना , प्रशिक्षण देना आर्थिक पोषण है l एक दूसरे की कमियों , कमजोरियों का फायदा न उठाकर संवेदनशील ढंग से उनका समाधान करना ही मानवता है l
आज के समय में दुर्बुद्धि के कारण , तुरंत लाभ पाने के लिए लोग अन्यायी का , गलत राह पर चलने वाले का साथ निभाते हैं l यह सहयोग नहीं है l सद्गुणों में नैतिकता की प्रधानता होती है l
शोषण की मानसिकता है कि दूसरे की कमियों का लाभ उठाकर उसे सदा नियंत्रण में रखो और अपना हित साधने के लिए उसका उपयोग करो l जब तक वह उपयोगी है , तब तक उसका उपयोग करो और अनुपयोगी होने पर उसे उठा कर फेंक दिया जाये l शोषण के साथ एक प्रकार की क्रूरता का भाव है , जिसमे मानवीय संवेदनशीलता और सहकारिता का कोई स्थान नहीं है l यही सिद्धांत आज आज परिवार , समाज , संस्थाएं , राजनीति आदि विभिन्न क्षेत्रों में कार्य करता नजर आता है l शोषण से विकार उत्पन्न होते हैं , इससे ही सम्पूर्ण समाज में अशांति उत्पन्न होती है l
शोषण के विपरीत यदि पोषण हो , तभी किसी देश का सही अर्थों में विकास होगा l यह पोषण कई तरीके से हो सकता है जैसे कोई आर्थिक रूप से कमजोर है तो उसे स्वावलंबी बनाने के लिए विभिन्न उपाय करना , प्रशिक्षण देना आर्थिक पोषण है l एक दूसरे की कमियों , कमजोरियों का फायदा न उठाकर संवेदनशील ढंग से उनका समाधान करना ही मानवता है l
आज के समय में दुर्बुद्धि के कारण , तुरंत लाभ पाने के लिए लोग अन्यायी का , गलत राह पर चलने वाले का साथ निभाते हैं l यह सहयोग नहीं है l सद्गुणों में नैतिकता की प्रधानता होती है l
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