22 December 2020

WISDOM -----

   सम्राट  अकबर  के  समय  की  एक  अलौकिक  घटना  है  , अखण्ड   ज्योति   में प्रकाशित  हुई  थी  ----   1562   में   जोधाबाई  का  विवाह  अकबर  के  साथ  हुआ  था  l  जोधाबाई  का  महल  भव्य  और  आलीशान   था  , फतेहपुर  सीकरी  में  उसे  आज  भी  देखा  जा  सकता  है  l   जोधाबाई  शाम  को  भगवान  कृष्ण  के  भजन  गाती   थीं  ,  घी   का  दीपक  जलाती   थीं  ,  उन्हें  पूरी  धार्मिक  स्वतंत्रता  थी  l   एक  बार  वे  यमुना  नदी  में  नहाने  गईं   थीं  , तभी  उनकी  नजर  यमुना  में  डूबती  हुई  छोटी  सी  लड़की  पर  पड़ी   l   अपनी  परवाह  न  कर  वे  नदी  में  कूद  गईं  और  उस  कन्या  को  बचाकर  अपने  साथ  ले  आईं  और  अपनी  कन्या  की  भांति  उसका  पालन - पोषण  करने  लगीं  l   अब  वह  कन्या  तेरह   वर्ष  की  हो  गई  l   रोज  शाम  को  वह  जोधामाता  के  वस्त्र  भंडार  में  से  सुन्दर  सी  साड़ी   निकालती , सोलह   श्रृंगार    करती   और  छत  पर  जाने  किसकी  प्रतीक्षा  करती  l   माँ  के  बार - बार  पूछने  पर  मौन  रहती  l  जन्माष्टमी  का  दिन  था  , कन्या  ने भी  जोधामाता     के  साथ    व्रत  रखा  l   माँ  ने  फिर  पूछा  --- " श्रृंगार   कर  के  तुम  किसकी  प्रतीक्षा  करती  हो   ? "  बेटी  आग्रह  को  टाल   न  सकी ,  बोली ---- " माँ  !  शाम  को  मेरे  पति  गाय  चराकर  कन्हैया  के  साथ    लौटा  करते   हैं  l  अब  आप   सोचो  ,    उन  सबके  सामने  मलिन  वेश  में  रहना  ठीक  है  क्या  ? '   जोधाबाई  बोलीं ---- ' क्या  आज  मुझे  भी   उन  सबका  दर्शन  करा  दोगी  ? '  आज  जोधाबाई  भी   कन्या  के  साथ  छत  पर  चलीं  गईं  l   वे  मुरली  की   क्षीण   ध्वनि   ही  सुन   पाईं   और  मूर्च्छित  हो  गईं  l   फिर  उन्होंने  ऐसा  आग्रह  नहीं  किया  l   अनेक  दिन  बीत  गए   l    जोधाबाई  को  उदास - हताश   देखकर  कन्या  ने  पूछा  ---- " क्या  बात  है  माता   !  आप  इतनी  उदास  क्यों  हो  ? "  जोधाबाई  बोलीं  ---- " अब  मैं  बूढ़ी   हो  गई  हूँ  पुत्री  l   तेरे  धर्मपिता   अब  मुझसे  उतना  प्यार  नहीं  करते  l  क्या  तुम  मेरा  श्रृंगार   करोगी  ? "  उस  दिन  कन्या  ने  अपने  हाथों  से  माँ  का  श्रृंगार   किया  l   क्या  जादू   था कि   जोधाबाई  अपने  यौवन  को  पा  गईं  l   अकबर  भी  उनके  सौंदर्य  से  मुग्ध  हो  गए   और  उसका  कारण  पूछा  l   जोधाबाई  ने  कहा --- " मेरी  पुत्री  ने  मेरा  श्रृंगार   किया  है  l  "  यह  सुनते  ही  अकबर  का  मन  विषाक्त  वासना  से  भर  गया   और  उनके  मन  में  कुविचार  उठा  l   कुविचार  के  आते  ही  अकबर  के  शरीर  में  भयंकर  जलन  उठी   जो  किसी  भी  औषधि  से  शांत  नहीं  हो  रही  थी   l   अंत  में  उन्होंने  बीरबल  से  उपाय  पूछा  l  बीरबल  ने  कहा  ---- " महाराज  !  एक  पवित्र  कन्या  के  प्रति  उठे  कुविचार  के  कारण  यह  जलन  उठ  रही  है  l   आप  सूरदास   को बुलाएँ  l   वही  इसका  उपचार  कर  सकते  हैं  l  l  "  अकबर  की  दशा  से  द्रवित  होकर  सूरदास   जी महल  में  आये  l   महल   में उनके  पांव  धरते   ही   अकबर   की जलन  शांत  होने   लगी  l   उन्होंने  सूरदास जी  को  बहुत  सम्मान  के  साथ  आसन   दिया  ,  उनके  चरणस्पर्श  करते  ही   अकबर  की  जलन  पूरी  तरह  शांत  हो  गई  थी  l  ठीक  उसी  समय   वह कन्या  भी   माता  जोधाबाई  के  संग  वहां  पहुँच  गई   और  सूरदास जी  से  बोली  --- " आप  कैसे  आ  गए  महात्मन  ! "    सूरदास  जी  बोले  --- "  जैसे   आप  आ   गईं  !    बस ,  इतने  संक्षिप्त  संवाद    के साथ  ही   सबके  सामने  उन  कन्या  की  देह  से   अद्भुत  ज्वाला  फूटी  ,  वह  वहीँ  विलीन  हो  गई  ,  केवल  थोड़ी  सी  राख   बची   l    जोधाबाई  तो  शोक  में  व्याकुल   हो गईं  l   तब   सूरदास जी   ने   कहा  ---- " आप  शोक   न करें  l   पिछले  जन्म  में  मैं  ही  उद्धव  था  l   जब  मैं  कृष्ण  का  सन्देश  देने   गोपियों  के  पास  गया  था    तो   एक  दिन  राधा  जी  की  प्रिय  सखी   ललिता   जी से   उलाहने  भरे  स्वर   में  कुछ  बात   हो  गई   , इसी  से  हमारा  कर्मभोग  बन  गया   l   इसी  कारण   मैं    एक  अंश  से  सूरदास  हूँ   और  ललिता जी   एक  अंश  से  आपके   यहाँ  अपना   भोग  पूरा  करने  आईं  थीं   l  l "  सूरदास जी   ने  वह  राख   बटोरकर   अपने  मस्तक  पर  लगा  ली   और  महल   से  बाहर   चले  गए   l